विदेश मंत्री बनने के बाद जयशंकर के सामने आएंगी ये बड़ी चुनौतियां, अमेरिका और ईरान के साथ अपने…

सु्ब्रमण्यम जयशंकर को देश का नया विदेश मंत्री बनाया गया है. उनके सामने तात्कालिक चुनौती अमेरिका और ईरान के साथ रिश्तों का संतुलन बनाना और भारत के पड़ोसी देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव से निपटना होगा.

जनवरी 2015 से लेकर जनवरी 2018 तक विदेश सचिव रहते हुए उन्होंने मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान उनकी विदेश नीति को आकार देने में अहम भूमिका निभाई, जिसके चलते प्रमुख देशों खासकर अमेरिका और अरब देशों के साथ भारत के संबंध को महत्वपूर्ण विकास विस्तार मिला.

विदेश सचिव बनने से पहले वह 2013 से अमेरिका में भारत के राजदूत रहे. इस दौरान उन्होंने अमेरिकी प्रशासन और मोदी सरकार को करीब लाने में बड़ी भूमिका निभाई. ऐसा माना जाता है कि उनके इस काम से ही पीएम मोदी प्रभावित हुए. अब विदेश मंत्री के रूप में उनके सामने कई चुनौतियां होंगी.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भारत जी-20, एससीओ, ब्रिक्स, इंडो-आसियान, भारत-अफ्रीका मंच जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नेतृत्वकारी भूमिका निभाना चाहता है. इसके लिए नए विदेश मंत्री को काफी मेहनत करनी होगी और इन सभी संगठनों में भारत के हितों की रक्षा करनी प्रमुख चुनौती होगी. खुद पीएम मोदी दुनिया के विभिन्न देशों से रिश्ते बनाने में काफी सक्रिय रहते हैं, ऐसे में विदेश मंत्री के रूप में एस जयशंकर को हमेशा कमर कसकर रखनी होगी और उनके पास शिथिल होने का मौका नहीं होगा.

पड़ोसी देशों से रिश्ते

पाकिस्तान के मामले में भारत के लिए अब भी यह चुनौती है कि किस तरह से आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ न होने के अपने रुख पर कायम रहते हुए उससे रिश्तों को सामान्य बनाया जाए. इसके अलावा नेपाल, बांग्लादेश जैसे BIMSTEC देशों से रिश्ते मजबूत करने की चुनौती है, जहां चीन का पहले से प्रभाव बन गया है.

चीन की चुनौती

हमारे पड़ोस में चीन जैसा देश है जो अपनी आक्रामक सामरिक नीति की वजह से हमेशा मुश्किल खड़ा करता रहा है. चीन के साथ हमारे कई अनसुलझे मसले हैं. नए विदेश मंत्री को पीएमओ और अन्य प्रमुख एजेंसियों के साथ समन्वय बनाकर चीन के साथ रिश्तों के मामले में समेकित प्रयास करना होगा. डोकलाम विवाद सुलझाने में एस जयशंकर की भूमिका को देखते हुए उनकी इस क्षमता पर संदेह नहीं किया जा सकता.

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मध्य पूर्व के देशों की जटिलता

खाड़ी देशों से रिश्तों के मामले में भारत ने अपने पांव मजबूती से जमा लिए हैं. मध्य पूर्व में करीब 80 लाख भारतीय रहते और काम करते हैं. तेल-गैस यानी भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है. लेकिन इस क्षेत्र के देशों की आपसी बैमनस्यता और पाकिस्तान के साथ उनके रिश्तों की वजह से भारत के लिए इस रिश्ते को संभाल पाना काफी जटिल भी है.

अमेरिका और रूस

अमेरिका के साथ हमारे रिश्ते काफी मजबूत हैं. लेकिन एच1 बी वीजा और व्यापार के मोर्चे पर कई विवाद के मसले हैं. ईरान और टैरिफ के कई मसलों पर अमेरिका से रिश्ते थोड़े बिगड़े भी, लेकिन अभी इसे सामान्य ही कहा जा सकता है. भारत अब डिफेंस, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में रूस से फिर अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है. हालांकि एक बड़े सैन्य साजो-सामान आयातक होने के नाते इससे दूरी अमेरिका भी नहीं चाहेगा.

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