वट-सावित्री व्रत : सुहाग को अखंड रखने वाला व्रत, जानिए पूजा विधि

वट-सावित्री व्रतज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट-सावित्री व्रत मनाया जाता है। इसमें सत्यवान, सावित्री तथा यमराज की पूजा की जाती है। यह व्रत रखने वाली महिलाओं का सुहाग अटल रहता है। ऐसी मान्यता है कि सावित्री ने इसी व्रत के प्रभाव से अपने मृत पति सत्यवान को धर्मराज से भी जीत लिया था।

इस व्रत के तीन दिन पूर्व एक लकड़ी के पाटे पर लाल कपड़ा बिछा कर प्रतीक रूप में शुद्ध मिट्टी से सावित्री, सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यमराज की प्रतिमा बना कर स्थापित करें। व्रत के दिन प्रात: काल वट वृक्ष की एक डाल लाकर किसी मिट्टी के गमले में लगाएं तथा प्रतिमाओं को उसी गमले की छाया में रख कर उनका पूजन जल, चंदन, रोली, अक्षत पुष्प, फल धूप-दीप आदि से करने के उपरांत ‘सती सावित्राय नम:’ तथा  ‘यम् धर्मराजाय नम:’ मंत्र का जप एक माला करें। फिर कच्चे सूत या मौलि को वृक्ष की डाली में बांध सात फेरे लेकर सावित्री-सत्यवान कथा कहें।

वट-सावित्री व्रत कथा

राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने द्युत्मसेन के पुत्र सत्यवान की कीर्ति सुन कर उन्हें पति के रूप में चुना। यह बात जब देवर्षि नारद को ज्ञात हुई तो वह राजा अश्वपति से बोले, ‘राजन् सत्यवान की एक वर्ष के बाद मृत्यु हो जाएगी।’ नारद मुनि की बात से अश्वपति विचलित हो उठे। उन्होंने अपनी पुत्री सावित्री को समझाया, ‘ऐसे अल्पायु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं है, इसलिए कोई दूसरा वर चुन लो।’ लेकिन सावित्री ने इनकार कर दिया। सावित्री का विवाह सत्यवान से हो गया। सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय मालूम कर लिया।

जब पति की मृत्यु का दिन नजदीक आ गया है, तब सावित्री ने तीन दिन पूर्व से ही उपवास शुरू कर दिया। मृत्यु वाले दिन सत्यवान अपने समय पर लकड़ी काटने के लिए जब चला तो सावित्री भी साथ चली। जंगल मे पहुंच कर लकड़ी काटते समय सत्यवान की मृत्यु हो गई। सावित्री ने उसी समय दक्षिण से भैंसे पर यमराज को आते देखा। धर्मराज जब सत्यवान के प्राण लेकर चले तो सावित्री भी उनके पीछे चल दी।

पहले तो यमराज ने उसे दैवी विधान सुनाया, पर उसकी निष्ठा देख वर मांगने को कहा। सावित्री बोली, ‘मेरे सास-ससुर नेत्रहीन हैं, आप उन्हें ज्योति प्रदान करें।’ यमराज ने कहा ऐसा ही होगा, अब लौट जाओ। लेकिन सावित्री नहीं लौटी। यह देख यमराज ने फिर वर मांगने को कहा। सावित्री बोली, ‘मेरे ससुर का राज्य छिन गया है, वह उन्हें फिर मिल जाए।’ यमराज ने यह वरदान भी दे दिया पर सावित्री ने पीछा न छोड़ा। अंत में यमराज ने उसे पुत्र होने का वरदान दिया। इस पर सावित्री ने कहा कि बिना पति के पुत्र कैसे संभव है! अंतत: यमराज को सत्यवान को जीवनदान देना पड़ा। तभी से हर वर्ष महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए वट-सावित्री व्रत रखती हैंं।

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