लखीमपुर खीरी का राजनीतिक गणित समझने के लिए जानना पड़ेगा जातियों का समीकरण… पढ़ें खबर

धौरहरा लोकसभा सीट 2008 में वजूद में आई और अब तक इस पर दो चुनाव देख चुकी है। हर वर्ष बाढ़ और इसकी वजह से भूमि-कटान त्रासदी झेलता आ रहा यह संसदीय क्षेत्र पिछड़ेपन का शिकार है। इन समस्याओं को चुनाव में मुद्दा बनने से रोकने के लिए उम्मीदवार जातीय ध्रुवीकरण में पूरी ताकत लगाते हैं।

खीमपुर खीरी का राजनीतिक गणित

यही इस बार भी हो रहा है। दो लाख से ज्यादा ब्राह्मणों की अगुवाई वाले सवर्ण वोट बैंक पर नजर रखते हुए कांग्रेस ने फिर जितिन प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है। वहीं अपनी बिरादरी के करीब ढाई लाख कुर्मी वोटरों के दम पर रेखा वर्मा ने फिर भाजपा का टिकट हासिल किया है। दलित-पिछड़ों और मुसलमानों का गणित जोड़ते हुए सपा-बसपा गठबंधन ने अरशद सिद्दीकी को चुनाव में उतारा है, जिन्होंने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।

शाहजहांपुर की सीमा से शुरू होकर बहराइच सीमा तक फैले धौरहरा लोकसभा क्षेत्र में खीरी जिले के धौरहरा, कस्ता, मोहम्मदी और सीतापुर के हरगांव और महोली विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में ये पांचों सीटें भाजपा ने जीती थीं।

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हालांकि ज्यादातर इलाका पिछड़ेपन का शिकार है। कई इलाके लगभग हर साल बाढ़ में भूमि कटान झेलते हैं। आम जनजीवन में आने वाली समस्याओं के साथ साथ बाढ़ से होने वाले कटान से मुक्ति दिलाने वाला नेता भी यहां के नागरिक चाहते हैं। लेकिन विकास के मुद्दों के बीच जातीय गणित भी अपनी प्रभावशाली भूमिका रखता है। इसीलिए विकास के वादों की आड़ में जातियों को साधने की कोशिश इस बार भी हो रही है।

चुनाव आए तो मिलने लगा गन्ने का बकाया
ईसानगर में चाय दुकान चलाने वाले महेश कहते हैं कि लोग सांसद रेखा वर्मा से खुश नहीं हैं लेकिन मोदी के नाम पर फिर वोट देंगे। सिसैया में रहने वाले रमजानुल कहते हैं कि इस बार गठबंधन को भी आजमाना चाहिए। धौरहरा के कृपाशंकर कहते हैं कि रेखा से नाराज लोग जितिन को वोट देंगे। हालांकि किसानों की सुनने वाला कोई नहीं है। गन्ने का भुगतान भी साल भर बाद तब मिलना शुरू हुआ जब चुनाव आ गए।

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