रिसर्च में हुआ खुलासा , सात साल के बाद इस साल आधे से भी कम हुई प्री-मानसून बारिश…

एक ओर जहां रोज रिकॉर्ड तोड़ पारे और लू ने आमजन को हलकान कर रखा है तो दूसरी ओर प्री-मानसून ने भी देश को निराश कर दिया है। भारत में मार्च से मई माह के बीच होने वाली प्री-मानसून बारिश सात साल बाद सबसे कमजोर रही है। इस साल अब तक प्री-मानसून के दौरान सिर्फ 99 एमएम पानी ही बरसा है जबकि पिछले साल 212 एमएम बारिश हुई थी।

 

मानसून

बता दें की इससे पहले देखें तो 2012 सबसे सूखा साल रहा था, जब महज 90.5 एमएम प्री-मानसून बारिश हुई। वहीं 2009 में भी प्री-मानसून दहाई के आंकड़े में ही सिमट गया था। गौरतलब है कि 2009 में कई राज्यों को सूखे का सामना करना पड़ा था।
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वहीँ प्री-मानसून काल में इस साल दक्षिण के राज्यो में 49 फीसदी तक कम बारिश हुई है, जिसने ज्यादा चिंता बढ़ा दी है। क्षेत्रवार देखें तो मराठवाड़ा-विदर्भ, कोंकण-गोवा, गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ, तटीय कर्नाटक, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी में प्री-मानसून सबसे कमजोर रहा है।

साथ ही जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी कर्नाटक, तेलंगाना, रायलसीमा में भी पानी कम ही बरसा। जानकार मानते हैं कि प्री-मानसून बारिश खेती, भूजल भरण और जमीन में नमी को बरकरार रखने के लिए जरूरी होती है। इसके अभाव में पानी की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।

आईआईटी गांधीनगर ने इस साल अपने पूर्वानुमान में कहा है कि देश के 40 फीसदी से ज्यादा हिस्से में इस साल सूखे की मार पड़ सकती है। इसकी बड़ी वजह कमजोर प्री-मानसून को बताया जा रहा है। देशभर में करीब 61 फीसदी हिस्से में प्री-मानसून का स्तर कम या अत्यंत कम रहा है। केवल 24 फीसदी हिस्से में ही सामान्य बारिश हुई है।

‘अतीत में हुए शोध इशारा करते हैं कि पिछली शताब्दी में पश्चिमी भारत में प्री-मानसून सीजन में होने वाली बारिश में लगातार कमी आई है। ऐसा मानसून के पैटर्न में बदलाव में आने के कारण हो रहा है।  पूरे भारत में ऐसा नहीं दिखाई दिया है। प्री-मानसून सीजन में होने वाली बारिश खेती के लिए अत्यधिक आवश्यक होती है। इससे भूजल का स्तर कायम रहता है और मिट्टी में नमी बनी रहती है।’

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