राम-जानकी मंदिर में दलित महंत का प्रस्ताव, माहौल गर्म

राम जानकी मंदिरलखनऊ| उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में तेंदुरा गांव के राम जानकी मंदिर में जबरन महंत घोषित करने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि ‘पब्लिक एक्शन कमेटी’ (पीएसी) ने दलित हिंदू साधु को महंत नियुक्त करने का प्रस्ताव रखकर नया ‘बखेड़ा’ खड़ा कर दिया है। इस मंदिर में अब तक दलितों का प्रवेश वर्जित रहा है।

राम जानकी मंदिर है 400 साल पुराना

बिसंडा थाना क्षेत्र के तेंदुरा में श्रीराम-जानकी मंदिर करीब 400 साल पुराना है। परंपरा के अनुरूप ब्राह्मण समाज का साधु ही महंत बनता आया है। और तो और, गांव के दलितों को मंदिर में विराजमान भगवान की मूर्तियों की पूजा कर पाना दूर की बात है, उन्हें पट तक छूने का भी अधिकार नहीं है।

11 मई को दिवंगत हुए महंत केशवदास मंदिर में चौथी पीढ़ी के महंत थे, इसके पहले बड़े बाबा, छोटे बाबा और हीरादास महंत हो चुके हैं, और ये सभी ब्राह्मण समाज से थे। गांव के ग्रामीणों के विरोध के बावजूद पांच दिन पूर्व एक गैर हिंदू समुदाय के व्यक्ति द्वारा ब्राह्मण समाज के बाहरी साधु को जबरन महंत घोषित कर मंदिर पर कब्जा करवाने का मामला अब भी गर्म है।

इसी दौरान पीएसी नामक गैर सरकारी संगठन ने गांव वालों के समक्ष मंदिर का महंत दलित साधु को नियुक्त करने का प्रस्ताव रखकर सबको हैरत में डाल दिया है।

पीएसी ने तर्क दिया कि मंदिर निर्माण या मरम्मत से लेकर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, रामनवमी आदि पर्वो में काम करने वाले दलित ही होते हैं। चार पीढ़ी तक यदि ब्राह्मण समाज का साधु महंत हो सकता है तो एक पीढ़ी दलित को मौका क्यों न दिया जाए?

पीएसी की महासचिव श्वेता ने कहा, “इस मंदिर में गैर हिंदू समाज के व्यक्ति को महंत की नियुक्ति का अधिकार है, मगर एक दलित साधु महंत नहीं बन सकता, यह कैसी हिंदूवादी परंपरा है? हिंदू धर्मावलंबी (उच्च वर्ग) दलित साधु को मंदिर का महंत बनाएं या फिर दलितों को हिंदू मानने से ही इनकार करें।”

पीएसी के इस प्रस्ताव की वजह से शनिवार को होने वाली ग्रामीणों की बैठक 23 मई तक के लिए टाल दी गई है। ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि के तौर पर उनके पति सुनील सिंह ने बताया कि पीएसी के प्रस्ताव को ध्यान में रखते हुए यह बैठक 23 मई के बाद आहूत की जाएगी। उनका हालांकि कहना था कि मंदिर में दलित साधु को महंत नियुक्त करने की परंपरा नहीं रही है।

इस गांव के रहने वाले वाल्मीकि समाज के नत्थू मेहतर (54) ने बताया कि पहले उनके पिता मल्हवा, फिर चाचा जगदेव इस मंदिर के बाहर के हिस्से की सफाई करते-करते भगवान को प्यारे हो गए, अब उससे सफाई का काम लिया जाता है।

उन्होंने कहा, “हमारे समाज का कोई व्यक्ति आज तक यह नहीं देख पाया कि मंदिर में विराजमान मूर्तियां किस तरह की हैं।”

बहरहाल, गांव वालों के सामने पीएसी द्वारा रखे गए प्रस्ताव से सभी सकते में हैं और अब प्रशासन के सामने ‘महंती विवाद’ के निपटारे का एक ही विकल्प है कि मंदिर में सरकारी ‘रिसीवर’ नियुक्त हो। इस मुद्दे को लेकर गांव के लोग अब तक दो धड़ों में बंटे थे, अब तीसरा धड़ा दलितों का भी उभर रहा है।

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