राममंदिर के शिलान्यास के साथ अयोध्या ने बनाया एक और बड़ा इतिहास…

अयोध्या में प्रधानमंत्री ने भगवान भास्कर की उपस्थिति में राममंदिर का शिलान्यास किया तो श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर आने वाले वह पहले प्रधानमंत्री ही नहीं बने बल्कि उन्होंने एक और नया इतिहास रच डाला। सिर्फ  इस कारण नहीं कि वह यहां आने वाले पहले प्रधानमंत्री थे बल्कि इसलिए भी कि श्रीराम जन्मभूमि मुद्दे पर महत्वपूर्ण अवसरों की कड़ी में यह पहला मौका था जब प्रधानमंत्री और यूपी के मुख्यमंत्री एक साथ व एक राय मौजूद थे।

इससे पहले कभी ये संयोग अयोध्या को लेकर नहीं दिखा। महत्वपूर्ण मौके पर या यूं कहें अयोध्या मुद्दे को महत्वपूर्ण मोड़ देने वाली घटनाओं के समय एक ही दल या मोर्चा की केंद्र व प्रदेश में सरकार होते हुए भी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अलग-अलग खड़े दिखे। इसी से समझा जा सकता है कि 5 अगस्त की परिस्थितियां अनुकूल बनाने का सफर इतना आसान भी नहीं था। काफी कुछ करने के बाद यह मौका आया कि टकराव की जगह पर सद्भाव, सौहार्द्र, शालीनता और शांति के माहौल में श्रीराम जन्मभूमि स्थल से जुड़ा कोई महत्वपूर्ण काम पूरा हो सका।
नेहरू का निर्देश पंत की टाल-मटोल 
आजादी के तुरंत बाद जब सोमनाथ मंदिर पुनर्निर्माण के पथ पर निष्कंटक आगे बढ़ रहा था तो उस समय अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत के बीच तनातनी चल रही थी। 22-23 दिसंबर 1949 की रात अयोध्या में मूर्तियों के प्राक्ट्योत्सव को एक पक्ष बाबरी मस्जिद में जबरन मूर्ति रखने की घटना को लेकर देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर दबाव बना रहा था। 

वह प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत को हॉटलाइन पर लगातार अयोध्या में संबंधित स्थान से मूर्तियां हटाने का निर्देश दे रहे थे। पर, पंत हीलाहवाली कर रहे थे। पंत अयोध्या के तत्कालीन जिलाधिकारी केके नैयर और सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त से पल-पल हाल ले रहे थे। मुख्यमंत्री पंत नेहरू से अपने नजदीकी रिश्ते को लेकर काफी चर्चित थे। पूर्व केंद्रीय गृह सचिव माधव गोडबोले ने अपनी पुस्तक ‘द बाबरी मस्जिद डेलिमा’ में केके नैयर को पहला कारसेवक बताते हुए इस दृष्टांत का विस्तार से वर्णन भी किया है।

डीएम ने किया मूर्तियां हटाने से इंकार 
गौरतलब है कि तत्कालीन डीएम नैयर ने राम जन्मस्थान से मूर्तियां हटाने से इन्कार कर दिया। साथ ही डीएम और सिटी मजिस्ट्रेट ने धारा 144 का एलान करते हुए अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया। कालांतर में नैयर देश के संसदीय जीवन भी जुड़े ।

केके नैयर की मृत्यु के बाद श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष बाबू बनारसी दास ने कहा, ‘सरकारी सेवा में रहते हुए भी अपनी दृष्टि से अनुचित लगने वाले आदेशों का पालन न करने की दृढ़ता नैयर प्रारंभ से ही दिखाते रहे। सत्र न्यायाधिपति के रूप में उन्होंने अंग्रेज अधिकारियों के भी कई निर्देश ठुकरा दिए थे।’

राजीव गांधी की मंशा के आड़े आए एनडी तिवारी 
जानकार बताते हैं कि शाहबानों प्रकरण से मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोपों से पीछा छुड़ाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अयोध्या में मंदिर का ताला खुलवाने का मन बनाया। पर, प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी आड़े आ गए। उनकी जगह वीर बहादुर मुख्यमंत्री बने तब ताला खुला।

इसी तरह संबंधित स्थल पर शिलान्यास के समय राजीव के विरोध में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी खड़े हो गए। उन्होंने कहा कि अयोध्या में शिलान्यास की कोशिश हुई तो पहला फावड़ा उनके सिर पर चलाना पड़ेगा। पर, राजीव के इशारे पर शिलान्यास की इजाजत मिल गई।

वीपी सिंह और मुलायम सिंह में तनातनी 
राममंदिर मुद्दे पर तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह और तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव में भी टकराव हुआ। मुलायम सिंह ने अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा के एलान से माहौल गरमा दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा ने मुलायम का विरोध किया। उस समय वीपी सिंह की सरकार भाजपा के समर्थन से चल रही थी।

वीपी सिंह ने मुलायम से सीधे टकराव के बजाय बीच का रास्ता तलाशने को कहा। पर, एक ही मोर्चा में होते हुए भी मुलायम ने प्रधानमंत्री वीपी सिंह की बात नहीं मानी। इसी मुद्दे पर मुलायम का देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से भी टकराव हुआ। दोनों लोगों के मतभेद लखनऊ की एक सभा में भी सार्वजनिक हुए। जब चंद्रशेखर ने मुलायम को राजधर्म की सीख देते हुए सिंहल और मौलाना बुखारी से एक जैसा व्यवहार करने की नसीहत दी थी।

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