राजनीति के रंग में डूबा सियारत का पारा, यहां इन पार्टा के बीच होगी सीधी टक्कर

संसदीय क्षेत्र रॉबर्ट्सगंज की चुनावी तस्वीर इस बार बिलकुल अलग है। पहले जनसंघ और बाद में भाजपा का गढ़ माने जाने वाली यह सीट गठबंधन में अपना दल (एस) के पूर्व सांसद पकौड़ी लाल कोल को मिली है। सपा-बसपा गठबंधन के तहत सपा से भाई लाल कोल मैदान में हैं। वहीं, कांग्रेस ने पुराने चेहरे भगवती प्रसाद चौधरी पर दांव लगाकर मुकाबला दिलचस्प बना दिया है। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) ने सपा से दुद्धी की पूर्व विधायक रूबी प्रसाद को उम्मीदवार बनाकर लड़ाई चौतरफा बनाने की कोशिश की है।

गठबंधन

इस सीट पर जातीय समीकरणों के बीच बाहरी और स्थानीय का मुद्दा भी है। पर्यावरण और औद्योगिकीकरण भी मुद्दा नहीं बन पाया है। राॅबट्र्सगंज के कृष्ण कुमार कहते हैं कि बहुचर्चित विकास की तो कोई बात ही नहीं कर रहा है।

रोडवेज के पास रहने वाले दुकानदार कन्हैया केशरी शिकायती लहजे में कहते हैं कि इस बार का चुनाव किस मुद्दे पर हो रहा, समझ में नहीं आ रहा है। चुर्क मोड़ के रहने वाले मंसूर आलम की मानें तो चुनाव में मुद्दे कम और आरोप-प्रत्यारोप ज्यादा हैं। कम्हारी के राजकुमार की राय है कि इस बार मतदाता स्थानीय-बाहरी प्रत्याशी के बजाय राष्ट्रवाद के आधार पर मतदान करेगा। 2014 में मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी छोटेलाल खरवार ने इस सीट से सर्वाधिक वोट और सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड बनाया था।

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भाजपा प्रत्याशी को लेकर गुटबाजी
इस बार तस्वीर अलग है। एक तरफ भाजपा में असंतोष है तो दूसरी तरफ पूर्व सांसद पकौड़ी कोल को भाजपा-अद (एस) गठबंधन के रूप में उम्मीदवारी को एक धड़ा पचा नहीं पा रहा है। हालांकि भाजपा को मोदी मैजिक पर भरोसा है। वहीं, बसपा उम्मीदवार न होने के कारण उसके काडर वोट में सेंधमारी पर भी नजर है।

दूसरी ओर सपा-बसपा गठबंधन मान रहा है कि उनका जातीय समीकरण भाजपा पर भारी है। विपक्षी खेमे में असंतोष, पांच साल में अपेक्षा के अनुरुप विकास कार्य न होने से मतदाताओं की नाराजगी उनके लिए मददगार साबित हो रही है। कांग्रेस को उम्मीद है कि भाजपा और बसपा का उम्मीदवार यहां से न होने से उन्हें इसका फायदा मिल सकता है। वहीं, प्रसपा उम्मीदवार को स्थानीय बनाम बाहरी की लड़ाई का फायदा मिलने की उम्मीद है।

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