रमज़ान : आखिर रमज़ान कैसे हो गया रमादान ? देखें ऐसा क्यों हुआ …

रमज़ान का महीना शुरू हो गया है. इसी के साथ मैसेज, वॉट्सऐप और दूसरे सोशल मीडिया साइट्स पर आपके पास शुभकामना सन्देश आने शुरू हो गए होंगे.

इनमें से कई मैसेजेस में रमज़ान तो कई में रमादान भी लिखा हुआ मिला होगा आपको. पिछले कुछ सालों में रमादान शब्द का इस्तेमाल बढ़ गया है. आखिर इसके पीछे की वजह क्या है? अगर आपने नोटिस किया और कभी इस के बारे में सोचा तो आप अकेले नहीं हैं.

बरखा दत्त तो पिछले सात सालों से पूछ रही हैं. कोई उन्हें बता दे कि लोग रमज़ान को रमादान क्यों लिख रहे हैं. खुदा हाफ़िज़ की जगह अल्लाहाफिज़ क्यों लिख/बोल रहे हैं.

लेकिन उसके पहले, आप ये जान लें कि रमज़ान का महीना इतना महत्वपूर्ण होता क्यों है.

रमज़ान को इस्लाम में सबसे पवित्र महीना माना जाता है. माना जाता है कि इस महीने में जन्नत के दरवाज़े खुल जाते हैं, और जहन्नुम के दरवाजे बंद हो जाते हैं. इस महीने में इस्लाम को मानने वाले सुबह सूर्योदय के बाद से लेकर सूर्यास्त तक कुछ नहीं खाते-पीते. इसे रोज़ा कहते हैं.

रमज़ान शुरू होता है चांद के दिखने से. सऊदी अरब में कमिटी बैठी हुई है जो चांद का हिसाब रखती है. इसलिए शाम को रमज़ान का पहला चांद दिखने के बाद इस महीने की शुरुआत होती है.

चांद का बहुत ही महीन सा हिस्सा दिखाई देता है, इसलिए कई बार कैलकुलेशन करके हिसाब लगाया जाता कि चांद आसमान में इस वक़्त कहां होगा.

रोज़े रखने वाले लोग सिर्फ खाने-पीने से दूरी बनाकर नहीं रहते. बल्कि शराब सिगरेट वगैरह से भी परहेज करते हैं. रोज़े रखने के पीछे वजह सिर्फ खाने का त्याग करना नहीं. बल्कि अपने ऊपर कंट्रोल बनाए रखना, बुरे विचारों, गपबाजी से दूर रहना है.

रोज़े की शुरुआत सहरी से होती है. सूर्योदय से पहले का खाना. जैसे करवाचौथ में सरगी खाते हैं न सुबह. वैसे ही. उसके बाद पूरे दिन कुछ नहीं. पानी भी नहीं. शाम को इफ्तारी होती है.

इफ्तार यानी कुछ खाकर रोज़ा खोलना. आम तौर पर लोग खजूर और पानी से अपना रोज़ा खोलते हैं. क्योंकि पैगम्बर मोहम्मद ने अपना रोजा इसी से खोला था.फिर सभी खाते हैं मिल-बैठकर.

बच्चों, बूढों, प्रेग्नेंट या दूध पिलाने वाली औरतों, वो महिलाएं जिनको पीरियड हो रहे हों, इन सभी को रोज़े रखने से छूट मिली हुई है. जितने भी दिन रोज़े छूटें, उनकी भरपाई बाद में की जा सकती है. अमूमन रोज़े 29 दिन या 30 दिन तक रखे जाते हैं. उसके बाद आती है ईद-उल-फ़ितर. दो-तीन दिन तक ईद की खुशियां मनाई जाती है.

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इसलिए लिखने लगे हैं रमादान-

अब ये तो हुई बात रमज़ान के महीने के महत्व की. लेकिन पिछले कुछ सालों में रमादान शब्द का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है . अंग्रेजी में Ramadan लिखने लगे हैं लोग.

ये इसलिए क्योंकि सऊदी अरब में इस शब्द का इस्तेमाल होता है. ये कहते हैं लोग कि सऊदी अरब ही ‘असली इस्लामिक देश’ है. तो उनकी नक़ल के चक्कर में सहरी को ‘सुहूर’ कहना, रमज़ान की जगह ‘रमादान’ कहना पॉपुलर हो गया है.

सभी ‘असली इस्लामिक देश और उसके कल्चर’ को फॉलो करना चाहते हैं. इसे इस्लाम का ‘अरबीकरण’ भी कहा गया है. ख़ुदाहाफ़िज़ की जगह अल्लाह हाफिज़ कहना भी इस का ही हिस्सा है.

अज़ान की जगह अदान, ये शब्द सऊदी अरब में इस्तेमाल होते हैं. रमज़ान की जगह रमादान लिखने के पीछे एक ये कारण है.

 

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