रक्‍तदान करें… क्‍योंकि आज भी खून न मिलने से मर रहे हैं लोग !

रक्‍तदाता ‘रक्तदान’ को ‘महादान’ कहा गया है, लेकिन आज भी बड़ी संख्या में लोगों की मौत समय पर खून न मिलने के कारण हो रही है। विशाल जनसंख्या वाला हमारा देश हर साल करीब 30 लाख यूनिट खून की कमी से जूझता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार केवल दो प्रतिशत लाेग भी और आगे आ जाएं तो बड़ी संख्‍या में खून के अभाव में होने वाली मौतें रोकी जा सकतींं हैं। खून के रिश्ते को दुनिया का सबसे अटूट बंधन माना जाता है और अपनी रगों में बहते खून के चंद कतरे ‘दान’ करके आप ऐसे अनजाने लोगों से भी खून का रिश्ता जोड़ सकते हैं, जो जरूरत के वक्त आपसे मिले इस तोहफे के दम पर नया जीवन पाकर उम्र भर आपके ऋणी रहेंगे। आज विश्‍व भर में रक्‍तदाता दिवस मनाया जा रहा है।

रोचक है शरीर में रक्‍त बनने की प्रक्रिया

हमारे शरीर में रक्त बनने की क्रिया भी काफी रोचक है। रक्त, श्वेत रक्त कण, लाल रक्त कण, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स से मिलकर बने रक्त में लाल रक्तकण शरीर के हर भाग में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करते हैं, श्वेत रक्त कण रोग प्रतिरोधक होते हैं तो प्लेटलेट्स का काम होता है बहते रक्त को रोकना। कभी चोट लगने पर खून बहता है और प्लेटलेट्स ही उसे बहने से रोकने का काम करते हैं। हर दिन हमारे शरीर के बोन मैरो (अस्थिमज्जा) में रक्त कोशिकाओं का निर्माण होता रहता है।

मनुष्य के शरीर में पांच से छह लीटर रक्त मौजूद होता है। लेकिन किसी कारणवश इसकी कमी होने पर इसकी पूर्ति करना आवश्यक हो जाता है। हर व्यक्ति का एक खास ब्‍लड ग्रुप होता है और कोई भी 18 से 60 वर्ष का स्वस्थ व्यक्ति (महिला या पुरुष) जिनका वजन 45 किलोग्राम या उससे ज्यादा हो किसी भी पंजीकृत ब्‍लड बैंक में रक्तदान कर सकता है। डाक्‍टरों के मुताबिक वर्ष में दो बार कोई भी व्‍यक्ति रक्‍तदान कर सकता है। रक्‍तदान करने  से किसी भी तरह का नकारात्‍मक प्रभाव हमारे शरीर पर नहीं पड़ता है।

रक्‍तदाता दिवस पर किसी जिंदगी को दें खुशियां

दुर्घटनाओं में घायल होने वाले लोग, किसी रोगी के ऑपरेशन के समय और बच्चे के जन्म के समय रक्त चढ़ाने की आवश्यकता पड़ ही जाती है। इसके अलावा थैलसीमिया, एनीमिया, हीमोफिलिया जैसी बीमारियों में भी रक्त चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए विश्व भर में ‘रेड क्रॉस सोसायटी’ या ‘ब्लड बैंक’ की व्यवस्था की गईंं हैं।

भारत में 7 जून 1920 को ‘इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी’ की स्थापना हुई। इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी की निदेशक डॉ. वनश्री सिंह कहती हैं, ‘ब्लड बैंक में जरूरत पड़ने पर कोई भी आकर रक्तदान कर सकता है और रक्त ले जा सकता है। लोगों को रक्तदान के प्रति उत्साहित करने के लिए हम रक्तदाता को ‘वास्तविक हीरो’ के रूप में प्रचारित करते हैं। 14 जून को विश्व रक्‍तदाता दिवस के मौके पर एक सप्ताह का विशेष रक्तदान अभियान चलाया जाता है और इस दौरान रक्तदान से जुड़े कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।’

किसी के रक्त के नमूने को लेने के बाद उसे हेपेटाइटिस ए और सी, सिफलिस, एचआईवी जैसी पांच तरह की जांच प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है। जांच परिणाम नकारात्मक आने पर ही प्रयोग के लिए रखा जाता है।’ विश्व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने 14 जून को रक्‍तदाता के प्रति धन्यवाद व्यक्त करने का दिन घोषित किया है।

तीन श्रेणियां हैं रक्तदाताओं की

  1. बिना किसी आर्थिक लाभ के अपनी इच्छा से रक्तदान करने वाले लोग
  2. परिवार के सदस्यों द्वारा खून की जरूरत पड़ने पर किया जाने वाला रक्तदान
  3. आर्थिक भुगतान पर रक्तदान करने वाले

बिना किसी आर्थिक लाभ की इच्छा से रक्तदान करने वाले काफी महत्वपूर्ण हैं। इन्हें बढ़ावा देकर एचआईवी, हैपेटाइटिस-बी, हैपेटाइटिस-सी व सिफलिस के मामलों में बड़ी मदद मिल सकती है। हमारे यहां बड़े ऑपरेशनों में 27 फीसदी दुर्घटना के कारण होने वाली सर्जरी, 13.5 फीसदी कैंसर से जुड़े उपचार और 4.5 फीसदी गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताओं में खून की आवश्यकता होती है। एनीमिया, थैलेसीमिया और हीमोफीलिया के पीडि़तों को भी नियमित खून चढ़ाए जाने की आवश्यकता होती है।

दान किए खून में पहले खून से फैलने वाली बीमारियों जैसे हैपेटाइटिस-बी, हैपेटाइटिस-सी व एचआईवी की जांच की जाती है। फिर खून के तत्व जैसे लाल रक्त कोशिकाएं, प्लाज्मा, क्रायोप्रेसिपिटेट और प्लेटलेट्स को अलग करके मरीज की जरूरत के अनुसार उनका इस्तेमाल किया जाता है।

रक्‍तदान के लाभ

नियमित अंतराल पर रक्तदान करने से शरीर में आयरन की मात्रा संतुलित रहती है और रक्तदाता को हृदय आघात से दूर रखता है।

इससे रक्‍तदाता व्यक्ति को विभिन्न अंगों में कैंसर के रिस्क से दूर रखता है।

यह कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और रक्तचाप को नियंत्रित करता है।

इससे शरीर में बढ़ी ज्यादा कैलोरी और वसा बर्न हो जाती है, और पूरे शरीर को फिट रखती है।

रक्तदान करने से न केवल किसी व्यक्ति का जीवन बचता है,बल्कि रक्तदाता में नई कोश‍िकओं का सृजन करता है।

इससे आयरन का स्तर नियंत्रित करता है, जिससे रक्त को गाढ़ा बनाता है और उसमें फ्री रेडिकल डैमेज बढ़ता है।रक्तदान करने से, तमाम लोगोंका जीवन बचाया जा सकता है और उन लोगों को जीने की उम्मीद मिलती है, जो उम्मीदखो चुके होते हैं।

भ्रांतियों से बचें

शाकाहारी नहीं कर सकते रक्तदान: यह सच नहीं है कि शाकाहारियों के शरीर में आयरन नहीं बनता।
खून देने पर होती है तकलीफ : सुई की हल्की चुभन के अलावा कोई दर्द नहीं होता।
हो सकता है संक्रमण: सभी स्वास्थ्य केंद्र खून लेने के मानक तरीके अपनाते हैं।
लगता है काफी समय: घंटे भर में खून देने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
सेहत को पहुंचाता है नुकसान:  रक्तदान के दौरान 350 एमएल खून ही लिया जाता है। दो तीन-दिन में ही इसकी पूर्ति हो जाती है।

एक नियमित रक्तदाता,  तीन महीने बाद ही अगला रक्तदान कर सकता है। उन्हें आयरन, विटामिन बी व सी युक्त आहार करना चाहिए। इसके लिए उन्हें नियमित आहार में पालक, संतरे का जूस, फलियां व डेरी उत्पाद आहार में लेने चाहिए। रक्तदान से दो-तीन घंटे पहले पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं व भरपेट भोजन करें। इससे खून में शुगर की मात्रा स्थिर रहती है।

LIVE TV