यादव वोट न मिलने का मायावती बना रहीं सिर्फ बहाना ! सच्चाई है ये …

बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश में समाजवदी पार्टी से चुनावी गठबंधन तोड़ने का एलान करते हुए ये वजह बताई कि सपा के यादव वोटरों ने बसपा को वोट नहीं दिया. लेकिन बसपा सुप्रीमो की इस दलील को आंकड़े झुठलाते हैं.

उल्टे बसपा के वोट बैंक ने सपा प्रत्याशियों की मदद नहीं की, ये जरूर साबित होता है. गठबंधन के प्रत्याशी बसपा के वोटबैंक वाली सुरक्षित सीटों में भी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सके कम से कम इसके लिए तो मायावती की पार्टी ही जिम्मेदार दिखती है.

बसपा 2014 में अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी. यूपी की 17 सुरक्षित सीटों में से मात्र नगीना और लालगंज सीटें ही बसपा जीत सकी.

इन दोनों सीटों पर सपा-बसपा को 2014 के चुनाव में मिले वोटों को मिला दिया जाए तो 2019 की जीत का साफ तौर पर पूर्वानुमान जाहिर किया जा सकता था और हुआ भी ठीक वैसा ही.

2019 के चुनाव में सपा 8 स्थानों पर 3 लाख वोटों के अंतर से हारी जबकि बसपा सिर्फ एक सीट पर जिससे पता चलता है कि सपा के पक्ष में बसपा के कैडर का मतदान नाममात्र रहा.

सपा 32 सीटों में दूसरे स्थान पर रही जबकि बसपा 25 सीटों पर. इससे जाहिर है कि सपा के वोटरों ने बसपा के पक्ष में अच्छा खासा मतदान किया. वरना मोदी लहर-2 में माया की पार्टी के 10 सांसद न जीतते.

 

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बसपा ने सबसे बड़े अंतर से घोसी सीट जीती है. घोसी लोकसभा क्षेत्र में 2014 के चुनाव में बसपा को 22.48 फीसदी और सपा को 16 फीसदी वोट मिले थे जबकि भाजपा प्रत्याशी ने 36.5 फीसदी वोट हासिल कर जीत हासिल की थी.

2019 के चुनाव में यहां से सपा-बसपा गठबंधन उम्मीदवार ने भाजपा प्रत्याशी को 1.2 लाख वोटों से हराया और 50 फीसदी वोट हासिल किए. इससे जाहिर है कि सपा के वोट बसपा को ट्रांसफर हुए और गठबंधन कारगर रहा.

दूसरा, उन्नाव का उदाहरण लें. यहां 2014 के चुनाव में सपा को 17.3 फीसदी और बसपा को 16.66 फीसदी वोट मिले थे लेकिन 2019 में यहां से समाजवादी पार्टी के गठबंधन प्रत्याशी अरुण शुक्ला को 24.4 फीसदी वोट मिले.

जो बताता है कि बसपा के वोट सपा के पक्ष में नहीं पड़े और पिछले चुनाव में 43 फीसदी वोट पाने वाले भाजपा के साक्षी महाराज 2019 में 57 फीसदी वोट हासिल कर जीते.

30 से 40 फीसदी वोट प्रतिशत पाने वाले बसपा के उम्मीदवारों की संख्या 12 जबकि सपा के उम्मीदवारों की 15 रही इसी तरह 30 फीसदी से कम वोट पाने वाले सपा उम्मीदवारों की संख्या 5 रही.

ये तथ्य बताते हैं कि वोट ट्रांसफर तो हुए हैं और मायावती की ये दलील सिर्फ फौरी बहाना है गठबंधन तोड़ने का.

 

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