तीन हजार रुपए तक में सौदा किया जाता है बच्चों का

child05एजेन्सी/ मध्य प्रदेश की सरकार एक तरफ ‘हैप्पीनेस मंत्रालय’ बनाने का एलान कर रही है तो दूसरी ओर गरीबी के चलते लोग अपने बच्चों को बेचने के लिए मजबूर हो रहे हैं. राजस्थान से भागकर दो ऐसे ही बच्चे उत्तर प्रदेश के झांसी पहुंचे हैं, जो मध्य प्रदेश के शिवपुरी एवं गुना जिलों के निवासी हैं. इन बच्चों के मां-बाप ने इन्हें तीन हजार रुपए के लिए गिरवी रखा था. गुना जिले के पिपरिया का निवासी काशीराम (12) और शिवपुरी के कनेरा चपरा का निवासी मुकेश (12) दोनों ही बच्चे झांसी जिले के सीपरी थाना क्षेत्र के चंद्रपुरा गांव में भटकते पाए गए. इन बच्चों को चाइल्ड लाइन को सौंपा गया है.

चाइल्ड लाइन के पास पहुंचे दोनों बच्चों को उनके मां-बाप ने एक दलाल के जरिए तीन हजार रुपए प्रतिमाह के मेहनताने पर राजस्थान के मवेशी कारोबारी को बेचा था. इन बच्चों को चरवाहे के काम पर लगाया गया था लेकिन खाने की कमी की वजह से ये झांसी भाग गए.

बच्चों के पिता बताते हैं कि उनके आसपास के कई गांव के बच्चे तीन से पांच हजार रुपये महीने के हिसाब से भेड़-बकरी का कारोबार करने वालों को दिए जा रहे हैं, यह सारा काम उनके क्षेत्र में एक एजेंट के माध्यम से होता है.

चाइल्ड लाइन के जिला समन्वयक कृष्णानंद यादव ने बताया, ‘बच्चों से पूछताछ में चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं. बच्चों के मां-बाप को बुलाकर उनसे पूछताछ की गई. काशीराम के पिता अमरसिंह ने गरीबी के चलते अपने दोनों बच्चों को एक मवेशी के पास बेचने जो की बात कबूली. काशीराम भागने में कामयाब रहा लेकिन दूसरा बच्चा अभी भी वहीं है.’

मुकेश की कहानी भी काशीराम जैसी ही है. उसके पिता ने भी उसे गिरवी रखा था. मुकेश के पिता हरीसिंह मजदूरी का काम करते हैं, उसने भी चाइल्ड लाइन को अपनी गरीबी और भुखमरी की कहानी सुनाते हुए मजबूरी में बच्चे को गिरवी रखने की बात बताई. इससे पहले हरदा जिले में भी दो ऐसे ही बच्चे मिले थे, जिन्हें उनके मां-बाप ने गरीबी के चलते भेड़, बकरी चराने वालों के यहां गिरवी रखा था.

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