यहां पर भगवान बुद्ध ने दिया था पहला उपदेश

काशी के तीर्थ स्थलों में सारनाथ का विशेष महत्व है। यह बौद्ध धर्म  का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। क्योंकि यहां पर भगवान बुद्ध ने बोध गया से ज्ञान प्राप्त कर आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पंचवर्गीय भिक्षुओं को अपना प्रथम उपदेश दिया था। जिसे धम्मचक्कपवत्तनसुत के नाम से जाना जाता है। सारनाथ को जैन धर्म एवं हिन्दू धर्म में भी महत्व है। जैन ग्रंथों में इसे सिंहपुर कहा गया है। और माना जाता है कि जैन धर्म के ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म यहां से थोड़ी दूर पर हुआ था। यहां पर सारंगनाथ महादेव का मन्दिर भी है जहां सावन में मेला लगता है।

कहा जाता है कि सारनाथ का प्राचीन नाम ऋषिपतन (इसिपतन या मृगदाव) (हिरनों का जंगल) था।  मुहम्मद गजनवी ने 1017 में आक्रमण कर सारनाथ के पूजा स्थलों आक्रमण कर नष्ट कर दिया था। सन 1905 में पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई करवाई। आप सारनाथ में धमेक स्तूप के पास खुदाई के अवशेष और सुरंगें देख सकते हैं। सारनाथ में खुदाई से मिली कई सामग्री कलकाता के इंडियन म्युजिम में देखी जा सकती हैं।  गुप्तकाल में सारनाथ कला का बड़ा केंद्र था। खुदाई के दौरान ही यहां अशोक स्तंभ और कई शिलालेख मिले।

बुद्ध का धमेक स्तूप

मूलगंध कुटी :- मूलगंध कुटी गौतम बुद्ध का मंदिर है। सातवीं शताब्दी में भारत आए सारनाथह्वेनसांग ने इसका वर्णन 200 फुट ऊंचे मूलगंध कुटी विहार के नाम से किया है। इस मंदिर पर बने हुए नक्काशीदार गोले और छोटे-छोटे स्तंभों से लगता है कि इसका निर्माण गुप्तकाल में हुआ होगा। मंदिर के बदल में गौतम बुद्ध के अपने पांच शिष्यों को दीक्षा देते हुए मूर्तियां बनाई गई हैं।

बुद्ध

धमेक स्तूप:-  इसे धर्माराजिका स्तूप भी कहते हैं। इसका निर्माण अशोक ने करवाया था। दुर्भाग्यवश 1794 में जगत सिंह के आदमियों ने काशी का प्रसिद्ध मुहल्ला जगतगंज बनाने के लिए इसकी ईंटों को खोद डाला था। खुदाई के समय 8.23 मीटर की गहराई पर एक संगरमरमर की मंजूषा में कुछ हड्डियां एवं सवर्ण पात्र, मोती के दाने एवं रत्न मिले थे, जिसे तब लोगों ने गंगा में बहा दिया।

चौखंडी स्तूप :- चौखंडी स्तूप सारनाथ का अवशिष्ट स्मारक है। इस स्थान पर गौतम बुद्ध की अपने पांच शिष्यों से मुलाकात हुई थी। बुद्ध ने उन्हें अपना पहला उपदेश दिया था। बुद्ध ने उन्हें चार आर्य सत्य बताए थे। उस दिन गुरु पूर्णिमा का दिन था। बुद्ध 234 ई. पूर्व में सारनाथ आए थे। इसकी याद में इस स्तूप का निर्माण हुआ। इस स्तूप के ऊपर एक अष्टपार्श्वीय बुर्जी बनी हुई है। यहां हुमायूं ने भी एक रात गुजारी थी।

भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ है यहां

सारनाथ का संग्रहालय भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण का प्राचीनतम स्‍थल संग्रहालय है। इसकी स्थापना 1904 में हुई थी। यह भवन योजना में आधे मठ (संघारम) के रूप में है। इसमें ईसा से तीसरी शताब्दी पूर्व से 12वीं शताब्दी तक की पुरातन वस्तुओं का भंडार है। इस संग्रहालय में मौर्य स्‍तंभ का सिंह स्‍तंभ शीर्ष मौजूद है जो अब भारत का राष्‍ट्रीय प्रतीक है। चार शेरों वाले अशोक स्तंभ का यह मुकुट लगभग 250 ईसा पूर्व अशोक स्तंभ के ऊपर स्थापित किया गया था।  इस स्तंभ में चार शेर हैं, पर किसी भी कोण से तीन ही दिखाई देते हैं।

अशोक स्तंभ का मॉडल

कई मुद्राओं में बुद्ध की मूर्तियों के अलावा, भिक्षु बाला बोधिसत्‍व की खड़ी मुद्रा वाली विशालकाय मूर्तियां, छतरी आदि भी प्रदर्शित की गई हैं। संग्रहालय की त्रिरत्‍न दीर्घा में बौद्ध देवगणों की मूर्तियां और कुछ वस्‍तुएं हैं। तथागत दीर्घा में विभिन्‍न मुद्रा में बुद्ध, वज्रसत्‍व, बोधित्‍व पद्मपाणि, विष के प्‍याले के साथ नीलकंठ लोकेश्‍वर, मैत्रेय, सारनाथ कला शैली की सर्वाधिक उल्‍लेखनीय प्रतिमा उपदेश देते हुए बुद्ध की मूर्तियां प्रदर्शित हैं।

sarnath

सारनाथ वाराणसी के बाकी पर्यटक स्थलों की तुलना में खुला और हरा भरा है। यहां आप छोटा सा चिडियाघर (डियर पार्क) भी देख सकते हैं। यहां घूमने के लिए आधे दिन का समय जरूर निकाल कर रखें। हालांकि गरमी  की दोपहरी में सारनाथ घूमने में परेशानी हो सकती है। यहां सर्दियों में जाना बेहतर है।

कैसे पहुंचे:- वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से आठ किलोमीटर की दूरी पर है सारनाथ। सारनाथ नाम का रेलवे स्टेशन भी है जो वाराणसी से औरिहार जंक्शन जाने वाली लाइन पर है। आप वाराणसी कैंट से आटो रिक्शा से सारनाथ जा सकते हैं। हाल ही में बीएसएनएल ने यहां सैलानियों के लिए फ्री वाईफाई सुविधा शुरू कर दी है।

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