मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति के मसौदे पर ईसाई समुदाय हुआ मुखर

मोदी सरकारनई दिल्ली | मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति के मसौदे का ईसाई समुदाय ने कड़ा विरोध किया है। ईसाईयों की एक संस्‍था ने नई शिक्षा नीति पर वैदिक प्रणाली और गुरुकुल व्‍यवस्‍था पर आधारित करने का आरोप लगाया है।

द कैथलिक बिशप कांफ्रेंस आफ इंडिया (सीबीसीआई) ने कहा कि देश की नई शिक्षा नीति पर देश की बहुलतावादी संस्कृति और पेशेवर रुख की छाप होनी चाहिए। संस्था ने कहा है कि इसे अंतिम रूप देने के लिए ऐसे प्रतिष्ठित नागरिकों का राष्ट्रीय आयोग बनाया जाए जिनमें अधिकांश का संबंध शिक्षा के क्षेत्र से हो। सीबीसीआई ने कहा है कि देश को अधिक समेकित शिक्षा नीति की जरूरत है जो देश के संविधान के मूलाधार और देश की विविधता का सम्मान करती हो।

देश में कैथलिक चर्च की शीर्ष संस्था ने कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2016 का मसौदा धर्म, संस्कृति, भाषा, परंपरा, रीति-रिवाजों के मामले में देश की बहुलतावादी संस्कृति के खिलाफ है। यह एक खास संस्कृति और एकतरफा इतिहास व परंपरा को थोपने वाली है।

बीते शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी में ईसाई धर्मगुरुओं ने संवाददाता सम्मेलन में शिक्षा नीति के मसौदे का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि यह अफसोस की बात है कि इस मसौदे में पूरे देश में और हर तबके में गुणवत्तायुक्त शिक्षा दे रहे कैथलिक चर्च से जुड़े 25 हजार शिक्षा संस्थानों की शानदार भूमिका की अनदेखी की गई है।

मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति का विरोध

सीबीसीआई के महासचिव बिशप थेयोडोर मास्करेनहास ने कहा कि तीन सदस्यीय टीम ने 171 कैथलिक डॉइसीज की तरफ से मिले तथ्यों के आधार पर नई शिक्षा नीति पर 11 पन्ने की जवाबी रिपोर्ट तैयार की है। इसमें कहा गया है कि वैदिक प्रणाली और गुरुकुल व्यवस्था को नई शिक्षा नीति का मॉडल नहीं बनाया जा सकता। यह देश के विविधता से भरे ताने-बाने और संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। संस्था ने सरकार से अनुरोध किया है कि वह शिक्षा नीति को देश की बहुलतावादी संस्कृति के अनुरूप बनाए।

सीबीसीआई ने शिक्षा नीति के मसौदे की इस बात के लिए तारीफ की है कि यह शिक्षा को गुणवत्तायुक्त, न्यायसंगत और मूल्य आधारित बनाने पर जोर देता है। संस्था ने सरकार से आग्रह किया कि वह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का छह फीसदी शिक्षा पर खर्च करे। संस्था ने सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए स्वतंत्र भर्ती बोर्ड बनाने के प्रस्ताव का भी समर्थन किया है। लेकिन, साथ ही कहा है कि यह नीति अल्पसंख्यक संस्थानों को अपने शैक्षिक संस्थानों में स्टाफ की भर्ती में बाधा पैदा करने वाली नहीं होनी चाहिए।

संस्‍था का कहना है कि भारतीय इतिहास, संस्कृति, परंपरा को बढ़ावा देने की जरूरत का समर्थन करते हुए संस्था ने कहा कि भारतीय शब्द को विस्तारित करते हुए इसे केवल एक धारा, चाहे वह बहुसंख्यकवाद से संबंधित क्यों न हो, तक सीमित न करते हुए भारतीय संस्कृति की विविधता तक फैलाया जाना चाहिए।

LIVE TV