जानिए क्या है हिंदुस्तान में मॉब लिंचिंग पर बना यह कानून

हिंदुस्तान में मॉब लिंचिंग की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं. भीड़ द्वारा कानून को हाथ में लेने और उग्र होकर किसी मामले के आरोपी की पीट-पीटकर हत्या करना बेहद चिंताजनक है. अब ताजा मामला राजस्थान के राजसमंद जिले  है, जहां के भीम उपखंड में जमीन विवाद की जांच करने गए हेड कॉन्स्टेबल अब्दुल गनी की भीड़ ने पीट पीटकर हत्या कर दी.

मॉब लिंचिंग

देश की सबसे बड़ी अदालत भी मॉब लिंचिंग की घटनाओं को लेकर बेहद सख्त है. तहसीन पूनावाला केस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के लिए गाइडलाइन तक जारी कर चुका है.

इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर नागरिक के जीवन की रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है. संविधान के अनुच्छेद 21 में हर नागरिक को जीवन का अधिकार मिला हुआ है और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना किसी के जीवन को छीना नहीं जा सकता है. इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी ने अपराध किया है तो उसको कानून के दायरे में लाकर ही सजा दी जाएगी.

सिर्फ न्यायालय ही दे सकता है सजा

अगर कोई व्यक्ति किसी मामले में आरोपी है, तो उसको सिर्फ कोर्ट ही न्यायिक प्रक्रिया का पालन करते हुए दोषी ठहरा और सजा दे सकता है. अदालत के सिवाय किसी अन्य व्यक्ति या संस्था या समूह को किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को दोषी ठहराने और सजा देने का अधिकार नहीं है. अगर कोई व्यक्ति, समूह या संगठन ऐसा करता है, तो वह अपराध है, जिसके लिए उसको सजा भुगतनी होगी.

कई बार देखा जाता है कि किसी मामले का आरोपी बाइज्जत बरी हो जाता है. ऐसे में किसी आरोपी को अपराधी कहना कानून की दृष्टि से अनुचित है. न्याय की अवधारणा है कि जब तक किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहरा दिया जाता है, तब तक उसको निर्दोष ही समझा जाएगा.

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हिंदुस्तान में चलेगा सिर्फ कानून का राज

इसके अलावा कृष्णामूर्ति बनाम शिवकुमार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भीड़तंत्र को लेकर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि एक सभ्य समाज में सिर्फ कानून का शासन चलता है और कानून ही सर्वोच्च होता है. भीड़ या कोई ग्रुप कानून हाथ में लेकर किसी अपराध के आरोपी को सजा नहीं दे सकती है.

क्या कहता है कानून

एडवोकेट मार्कंडेय पंत के मुताबिक फिलहाल मॉब लिंचिंग के मामले में पुलिस सबसे पहले भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 153 A के तहत मामला दर्ज करती है. इसमें 3 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा आईपीसी की धारा 34, 147, 148 और 149 के तहत कार्रवाई की जा सकती है.

उनका कहना है कि अगर भीड़ द्वारा किसी की पीट-पीटकर हत्या कर दी जाती है, तो आईपीसी कि धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाएगा और साथ में धारा 34 या 149 लगाई जाएगी. इसके बाद जितने लोग भी मॉब लिंचिंग में शामिल रहे होंगे उन सबको हत्या का दोषी ठहराया जाएगा और फांसी या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा. इसके अलावा सभी पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

मार्कंडेय पंत का कहना है कि अगर भीड़ का कोई भी शख्स किसी भी अपराध को अंजाम देता है, तो उस अपराध के लिए भीड़ में शामिल सभी लोग दोषी होंगे. साथ ही सभी को उस अपराध के लिए अलग-अलग सजा भोगनी होगी.

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क्या है मॉब लिंचिंग पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन

साल 2018 में तहसीन पूनावाला केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग रोकने के लिए गाइडलाइन जारी की थी. ये गाइडलाइन केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के लिए जारी की गई है. आइए जानते हैं कि आखिर क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन…..

1. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी राज्य सरकारें अपने यहां भीड़ हिंसा और मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए प्रत्येक जिले में एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति करें, जो पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक या उससे ऊपर के रैंक का अधिकारी होना चाहिए. इस नोडल अधिकारी के साथ डीएसपी रैंक के एक अधिकारी को भी तैनात किया जाना चाहिए. ये अधिकारी जिले में माॅब लिंचिंग रोकने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करेंगे, जो ऐसे अपराधों में शामिल लोगों, भड़काऊ बयान देने वाले और सोशल मीडिया के जरिए फेक न्यूज को फैलाने की जानकारी जुट आएगी और कार्रवाई करेगी.

2. पिछले पांच साल में जिन इलाकों में मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुईं, उनकी पहचान की जाए और इसकी रिपोर्ट आदेश जारी होने के तीन सप्ताह के अंदर तैयार किया जाए.

3. सभी राज्यों के गृह सचिव उन इलाकों के पुलिस स्टेशन के प्रभारियों को और नोडल अधिकारियों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने के निर्देश जारी करें, जहां पर हाल ही में मॉब लिंचिंग की घटनाएं देखने को मिली हैं.

4. नोडल अधिकारी स्थानीय खुफिया ईकाई और एसएचओ के साथ नियमित रूप से बैठक करें, ताकि ऐसी वारदातों को रोकने के लिए कदम उठाया जा सके. साथ जिस समुदाय या जाति को मॉब लिंचिंग का शिकार बनाए जाने की आशंका हो, उसके खिलाफ बिगड़े माहौल को ठीक करने की कोशिश की जाए.

5. राज्यों के डीजीपी और गृह विभाग के सचिव जिलों के नोडल अधिकारियों और पुलिस इंटेलीजेंस के प्रमुखों के साथ नियमित रूप से बैठक करें. अगर किन्हीं दो जिलों के बीच तालमेल को लेकर हो रही दिक्कतों को रोकने के लिए कदम उठाया जा सके.

6. पुलिस अधिकारी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 129 में दी गई शक्तियों का इस्तेमाल कर भीड़ को तितर-बितर करने का प्रयास करें.

7. केंद्रीय गृह विभाग भी मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए राज्य सरकारों के बीच तालमेल बैठाने के लिए पहल करे.

8. केंद्र सरकार और राज्य सरकारें रेडियो, टेलीविजन और मीडिया या फिर वेबसाइट के जरिए लोगों को यह बताने की कोशिश करें कि अगर किसी ने कानून तोड़ने और मॉब लिंचिंग में शामिल होने की कोशिश की, तो उसके खिलाफ कानून के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी.

9. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वो सोशल मीडिया से अफवाह फैलाने वाले पोस्ट और वीडियो समेत सभी आपत्तिजनक सामग्री को हटाने के लिए कदम उठाएं, जिससे ऐसी घटनाओं को रोका जा सके.

10. पुलिस को मॉब लिंचिंग के लिए भड़काने या उकसाने के लिए मैसेज या वीडियो को फैलाने वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 153 ए समेत अन्य संबंधित कानूनों के तहत एफआईआर दर्ज करें और कार्रवाई करें.

11. इस संबंध में केंद्र सरकार सभी राज्य सरकारों को निर्देश जारी करे.

मॉब लिंचिंग होने पर फौरन हो कार्रवाई

12. अगर तमाम कोशिशों के बावजूद मॉब लिंचिंग की घटनाएं होती हैं, तो संबंधित इलाके के पुलिस स्टेशन बिना किसी हीलाहवाली के फौरन एफआईआर दर्ज करें.

13. मॉब लिंचिंग की घटना की एफआईआर दर्ज करने के बाद संबंधित थाना प्रभारी इसकी जानकारी फौरन नोडल अधिकारी को दे. इसके बाद नोडल अधिकारी की ड्यूटी होगी कि वो मामले की जांच करे और पीड़ित परिवार के खिलाफ आगे की किसी भी हिंसा को रोकने के लिए कदम उठाए.

14. नोडल अधिकारी को सुनिश्चित करना होगा कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं की प्रभावी जांच हो और समय पर मामले की चार्जशीट दाखिल की जा सके.

पीड़ितों को मुआवजा देने की स्कीम बनाए सरकार

15. राज्य सरकार ऐसी योजना तैयार करें, जिससे मॉब लिंचिंग के शिकार लोगों को सीआरपीसी की धारा 357A के तहत मुआवजा देने की व्यवस्था की जाए.

6 महीने में पूरी हो मामले की सुनवाई

16. ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए हर जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाएं, जहां पर ऐसे मामलों की सुनवाई रोजाना हो सके और ट्रायल 6 महीने के अंदर पूरा हो सके.

मॉब लिंचिंग के आरोपी को जमानत देने से पहले पीड़ितों की सुनें बात

17. मॉब लिंचिंग के आरोपियों को जमानत देने, पैरोल देने या फिर रिहा करने के मामले में विचार करने से पहले कोर्ट पीड़ित परिवार की भी बात सुने. इसके लिए उनको नोटिस जारी करके बुलाया जाना चाहिए.

18. मॉब लिंचिंग के शिकार परिवार को मुफ्त कानूनी मदद दी जानी चाहिए. इसके लिए उनको लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट 1987 के तहत फ्री में एडवोकेट उपलब्ध कराना चाहिेए.

19. अगर कोई अधिकारी अपनी ड्यूटी निभाने में विफल रहता है या फिर मामले में समय पर चार्जशीट फाइल नहीं करता है, तो उसके खिलाफ डिपार्टमेंटल एक्शन लिया जाना चाहिए.

यूपी लॉ पैनल ने फांसी की सजा देने सिफारिश की

उत्तर प्रदेश लॉ कमीशन ने मॉब लिंचिंग के आरोपियों को मौत की सजा देने की सिफारिश की है. यूपी लॉ कमीशन ने उत्तर प्रदेश कॉम्बेटिंग ऑफ मॉब लिंचिंग एक्ट का मसौदा भी पेश किया है. इसमें यह भी कहा गया कि जिस इलाके में घटना हो उस इलाके के पुलिस अधिकारी की भी जिम्मेदारी तय की जाए. अगर उसको ड्यूटी में लापरवाही करने का दोषी पाया जाए तो उसके खिलाफ ही दंडात्मक कार्रवाई की जाए.

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