मैनपुरी निवासी लेखिका गीतांजलि श्री ने रचा इतिहास, अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली बनीं पहली भारतीय महिला

इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीतकर देश को सम्मान दिलाने वाली गीतांजलि श्री के नाम से कोई अब अनजान नहीं है, उन्होंने देश को पहली बार ये प्राइज दिलाया है। आपको बताते चलें कि, गीतांजलि श्री करीब तीन दशक से लेखन के कार्य में लगी है। 30 वर्ष की इस तपस्या के दौरान उनका पहला उपन्यास ‘माई’ था। इसके बाद ‘हमारा शहर उस बरस’ प्रकाशित हुआ। दोनों उपन्यास का प्रकाशन नब्बे के दशक में हुआ। इसके बाद ‘तिरोहित’ और ‘खाली जगह’ भी प्रकाशित हुए। इस दौरान गीतांजलि श्री ने कई कहानी संग्रह भी लिखे।

गीतांजलि मूल रुप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं, उनका जन्म मैनपुरी जिले में साल 1957 में हुआ था, फिलहाल वो दिल्ली में रहती हैं. उनको गीतांजलि पांडेय नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपनी मां के पहले नाम श्री को अपने नाम से जोड़ लिया और वो गीतांजलि श्री के नाम से हिंदी साहित्य में फेमस हो गईं।

गीतांजलि ने कई शार्ट स्टोरीज के अलावा 5 नॉवेल भी लिखे हैं, उनका पांचवा नॉवेल रेत समाधि है जिसे इंटरनेशनल बुकर प्राइज मिला है। इस उपन्यास का अंग्रेजी के अलावा फ्रेंच भाषा में भी अनुवाद किया है, उन्होंने अपना पहला उपन्यास माई के नाम से लिखकर साहित्य की दुनिया में कदम रखा था, गीतांजलि के उपन्यासों का अंग्रेजी और फ्रेंच के अलावा जर्मन, सर्बियन और कोरियाई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

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