गंगा तट पर स्थित इकलौता शक्तिपीठ जहां त्रिदेव करते हैं माता की पूजा

माँ विन्ध्यवासिनी मंदिरअगर आपका मन धार्मिक स्थलों पर जाने का करता है तो मिर्जापुर का माँ विन्ध्यवासिनी मंदिर एक बेहतरीन जगह है. कहा जाता है कि अगर कोई भी भक्त श्रद्धा से यहां पूजा-पाठ या आराधना करता है तो माँ उसे भक्ति, शक्ति और मुक्ति प्रदान करती हैं. माता का ये मंदिर शक्तिपीठ है और विश्व समुदाय में एक अलग पहचान रखता है.

प्रयाग और काशी के बीच स्थित मिर्जापुर में विन्ध्याचल नामक तीर्थ स्थल है, जहां मां विन्ध्यवासिनी विराजमान रहती हैं. श्री गंगा जी के तट पर स्थित यह महातीर्थ शास्त्रों में सभी शक्तिपीठों में सबसे बड़ा माना गया है. यह महातीर्थ भारत के उन 51 शक्तिपीठों में पहला और आखरी शाक्तिपीठ है जो गंगा तट पर स्थित है.

मां विन्ध्यवासिनी देवी का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है. विंध्याचल की पहाड़ियों में गंगा की पवित्र धाराओं की कल-कल करती ध्वनि, प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती है. त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी लोकहिताय, महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप धारण करती हैं.

विनध्यवासिनी देवी विंध्य पर्वत पर स्थित मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश करने वाली भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं. कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है,  उसे सिद्धि प्राप्त होती है. विविध संप्रदाय के उपासकों को मनवांछित फल देने वाली मां विंध्यवासिनी देवी अपने अलौकिक प्रकाश के साथ यहां नित्य विराजमान रहती हैं.

आदि शक्ति की शाश्वत लीला भूमि मां विंध्यवासिनी के धाम में पूरे वर्ष दर्शनाथयों का आना-जाना लगा रहता है. ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी भगवती की मातृभाव से उपासना करते हैं, तभी वे सृष्टि की व्यवस्था करने में समर्थ होते हैं. इसकी पुष्टि मार्कंडेय पुराण श्री सप्तशती की कथा से भी होती है.

ऐसा माना जाता है कि तीनों देवियों के दर्शन किए बिना विंध्याचल की यात्रा अधूरी है. शास्त्रों में मां विंध्यवासिनी के ऐतिहासिक महात्म्य का अलग-अलग वर्णन मिलता है. शिव पुराण में मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है तो श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी कहा गया है. मां के अन्य नाम कृष्णानुजा, वनदुर्गा भी शास्त्रों में वर्णित हैं. इस महाशक्तिपीठ में वैदिक तथा वाम मार्ग विधि से पूजन होता है. शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं, विंध्याचल ही एक ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं. शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है.

लगभग सभी पुराणों के विंध्य महात्म्य में इस बात का उल्लेख है कि 51 शक्तिपीठों में मां विंध्यवासिनी ही पूर्णपीठ है. नवरात्र के दिनों में मां के विशेष श्रृंगार के लिए मंदिर के कपाट दिन में चार बार बंद किए जाते हैं. सामान्य दिनों में मंदिर के कपाट रात 12 बजे से भोर 4 बजे तक बंद रहते हैं. नवरात्र में महानिशा पूजन का भी अपना महत्व है. यहां अष्टमी तिथि पर वाममार्गी तथा दक्षिण मार्गी तांत्रिकों का जमावड़ा रहता है. आधी रात के बाद रोंगटे खड़े कर देने वाली पूजा शुरू होती है.

ऐसा माना जाता है कि तांत्रिक यहां अपनी तंत्र विद्या सिद्ध करते हैं. कहा जाता है कि नवरात्र के दिनों में मां मन्दिर की पताका पर वास करती हैं ताकि किसी वजह से मंदिर में न पहुंच पाने वालों को भी मां के सूक्ष्म रूप के दर्शन हो जाएं. नवरात्र के दिनों में इतनी भीड़ होती है कि अधिसंख्य लोग मां की पताका के दर्शन करके ही खुद को धन्य मानते हैं, कहते हैं कि सच्चे दिल से यहां की गई मां की पूजा कभी बेकार नहीं जाती. हर रोज यहां हजारों लोग मत्था टेकते हैं और देवी मां का पूजन जय मां विंध्यवासिनी के नाम के साथ करते हैं.

मां के इस धाम में त्रिकोण यात्रा का विशेष महत्व होता है, जिसमें लघु और बृहद त्रिकोण यात्रा की जाती है. लघु त्रिकोण यात्रा में एक मंदिर परिसर में मां के 3 रूपों के दर्शन होते हैं वहीं दूसरी ओर बृहद त्रिकोण यात्रा में तीन अलग-अलग रूपों में मां विंध्यवासिनी,  मां महाकाली और मां अष्टभुजी के दर्शनों का सौभाग्य भक्तों को मिलता है.

बृहद त्रिकोण यात्रा में मां महाकाली के दर्शनों के बाद अगला पड़ाव आता है मां अष्टभुजी का. कहते हैं इस मंदिर में दर्शन करने के बाद ही भक्तों की बृहद त्रिकोण यात्रा पूर्ण होती है.

माँ के वैभव से सभी की मनोकामना पूरी होती है. भक्तों को सुख समृधि और शांती मिलती है, यही वजह है कि माँ के दरबार में दूर-दूर से भक्त आते हैं, माँ की महिमा गाते है और झोली में खुशियाँ भर के घर ले जाते हैं.

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