प्रेरक-प्रसंग : भैसों का हौसला

एक घना जंगल था। उसमें कई भैंसों के परिवार रहते थे। आक्रमणकारी सिंह एक ही था। वह जब चाहता हमला करता ओर किसी भी मोटे दुबले भैंस  को चट कर जाता। झुण्ड के अन्य सदस्य घबराकर सिर पर पैर रखकर जिधर-तिधर भागते।

प्रेरक-प्रसंग

एक दिन एक बूढ़े भैंस ने सजातियों के सभी परिवारों को एकत्रित किया और कहा मरना है तो बहादुरी से क्यों न मरें। रहना है तो मिलजुल कर क्यों न रहें। बात सभी की अच्छी लगी और वे उसके कहने से चलने को सहमत हो गए।

दूसरे दिन तगड़े-तगड़े भैंसों ने एक दल गठित किया और योजना बनी कि आक्रमण की प्रतीक्षा न करके शेर की माँद पर चला जाय और वहाँ उस पर हमला बोल दिया जाय। नई योजना, नई हिम्मत और नई आशा से तगड़े भैंसों के हौसले बहुत बढ़ गये थे। सो वे बहादुरी के साथ चले ओर माँद में सीधे शेर पर बिजली की तरह टूट पड़े।

शेर को ऐसी मुसीबत का सामना इससे पहले कभी भी नहीं करना पड़ा था। वह घबड़ा गया और जान बचाकर इतनी तेजी से भाग कि यह देख तक न सका कि हमला करने वाले कौन है और कितने हैं? भयाक्रान्त शेर ने उस जंगल में भूतों का निवास माना और फिर कभी उधर न लौटने का निश्चय करके दूरस्थ बन में अपना डेरा डाला। भैंसों के परिवार निश्चिन्तता पूर्वक रहने और बन बिहार का आनन्द लेने लगे।

आधुनिक समाज में हमारी हालत भी इन भैंसों की तरह ही है जिन्हे कोई भी शेर रुपी अपराधी दिन दहाड़े हमें प्रताड़ित करता है और हमारे मनोबल को तोड़ देता है और हमें बेबस कर देता है। आईये हम सब भैंसों की तरह ही एक होकर इन तत्वों का मुकाबला करें और इन्हे समाज से उखाड़ फेंकें।

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