भारत में 1.3 मिलियन बच्चे अस्थमा से पीड़ित, हवा में बढ़ा नाइट्रोजन ऑक्साइड
भारत जैसे गर्म देश में सीएनजी वाहन उतनी ही मौत बांट रहे हैं, जितनी डीजल की कार और बसें नुकसान कर रही थीं। फर्क सिर्फ इतना आया है कि सीएनजी के प्रचलन से कार्बन के बड़े पार्टिकल कम हो गए हैं। हाल ही में जारी ग्रीनपीस इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, जयपुर, लखनऊ और दिल्ली ने अप्रैल 2020 और अप्रैल 2021 के बीच NO2 प्रदूषण में सबसे अधिक वृद्धि देखी। अप्रैल, 2020 की तुलना में, यह दिल्ली में 125%, चेन्नई में 94% अधिक था। इसी महीने मुंबई में 52 फीसदी, बेंगलुरु में 90 फीसदी, जयपुर में 47 फीसदी, मुंबई में 52 फीसदी, लखनऊ में 32 फीसदी और हैदराबाद में 69 फीसदी है।
अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वाहनों, बिजली संयंत्रों और कारखानों से NO2 प्रदूषण के लगातार संपर्क में रहने के कारण भारत में 1.3 मिलियन बच्चे अस्थमा से पीड़ित हैं।
नाइट्रोजन के ऑक्सीजन के साथ गैसें, जिन्हें ऑक्साइड ऑफ नाइट्रोजन कहते हैं, मानव जीवन और पर्यावरण के लिए उतनी ही नुकसानदेह है, जितनी कार्बन ऑक्साइड। यूरोप में हुए रिसर्च बताते हैं कि सीएनजी वाहन से निकलने वाले नैनो मीटर आकार के बेहद बारीक कण कैंसर, अल्जाइमर और फेफड़े की बीमारियों को खुला न्योता हैं। उल्लेखनीय है कि यूरो-6 स्तर के सीएनजी वाहन के लिए भी कण उत्सर्जन की कोई अधिकतम सीमा तय नहीं है और इसीलिए इससे उपज रहे वायु प्रदूषण और इंसान के जीवन पर उसके कुप्रभाव और वैश्विक पर्यावरण को हो रहे नुकसान को नजर अंदाज किया जा रहा है।
ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ जलवायु प्रचारक अविनाश चंचल ने कहा,“इन शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर खतरनाक है। फॉसिल फ्यूल जलाने पर हमारी अत्यधिक निर्भरता के लिए शहर और लोग पहले से ही एक बड़ी कीमत चुका रहे हैं। सार्वजनिक लॉकडाउन के दौरान लोगों ने साफ आसमान देखा और ताजी हवा में सांस ली, हालांकि यह महामारी का एक अनपेक्षित परिणाम था, ”।