बेलगाम नेताओं की बाढ

pराजनीति को जन सेवा, समाज सेवा और राष्ट्र सेवा का नाम देने वाले राजनेता अपने मिशन से भटक गये हैं। हमारे देश में सभी राजनीतिक दलों की अलग-अलग विचारधाराएं हैं। पहले तो इन्हें वामपंथी और दक्षिणपंथी के नाम से ही जाना जाता था। वामपंथी विचारधारा में साम्यवादी पार्टियां-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का नाम सर्वोपरि था। इन्हीं से टूटकर फारवर्ड ब्लाक, रिवोल्यूशनरी आदि कई पार्टियां बन गयीं। दूसरी तरफ गरम विचारधारा की पार्टी जनसंघ को दक्षिणपंथी विचारधरा का माना जाता था। जनसंघ का ही बदला हुआ नाम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) है। वस्तुत: भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा है। आरएसएस सामाजिक-सांस्कृतिक, राष्ट्रभक्त संगठन अपने को कहलाना पसंद करता है। इन सभी के बीच में कांग्रेस पार्टी कभी देश को आजादी दिलाने वाली पार्टी मानी जाती थी। इसी के चलते सत्ता का सबसे ज्यादा सुख भी इसी पार्टी ने भोगा है। अब तो कांग्रेस पार्टी की कोई विचारधारा ही नहीं रह गयी है और एक ऐसी खिचड़ी बन गयी है, जिसमें पता नहीं चल रहा कि कहां-कहां से चावल आया है और कहां-कहां से दाल। राजनीति में इसीलिए नैतिकता तलाशने से भी नहीं मिलती है। इसीलिए बेलगाम नेताओं की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है। केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने सुब्रमण्यम स्वामी को इसीलिए राज्यसभा में भेजा है। हालांकि उनके पहले दो तीर असंसदीय माने गये और उनको संसद की कार्यवाही से निकाल दिया गया है।
सबसे पहले हम कांग्रेस की बात करते हैं। कांग्रेस में बेलगाम नेताओं की कमी नहीं है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह उस समय ज्यादा चर्चा में आए जब अन्ना हजारे लोकपाल के लिए अभियान छेड़े हुए थे। इस अभियान में पूरा देश उनके साथ खड़ा हो गया और तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार को झुकना भी पड़ा था लेकिन इसके साथ ही यह बात भी माननी पड़ेगी कि अन्ना हजारे का एक संगठित आंदोलन दिग्विजय सिंह एण्ड पार्टी के अनर्गल प्रचार के चलते ही कमजोर भी पड़ गया। अन्ना आंदोलन के सदस्य धीरे-धीरे पूरी संसद के दुश्मन बन गये। आज भले ही शरद यादव, सोनिया गांधी अरुण जेटली, पी- चिदम्बरम आदि अलग-अलग खड़े दिखाई दे रहे हैं लेकिन अन्ना आंदोलन ने सभी को भ्रष्टाचारी बताया था और तभी संसद से यह आवाज उठी थी कि अन्ना हजारे के आंदोलन में शामिल लोग राजनीति को भ्रष्ट समझते हैं तो स्वयं राजनीति में क्यों नहीं आते? अरविन्द केजरीवाल, प्रशांत भूषण आदि राजनीति में चले ही आए। इस प्रकार बेलगाम नेताओं की क्षमता पर भी सवाल नहीं उठाया जा सकता लेकिन कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर, सलमान खुर्शीद और दूसरे कई नेता अपनी बेलगाम जुबानी के चलते ही पार्टी का काफी नुकसान भी कर चुके हैं। कांग्रेस की आज जो दुर्गति है, उसका एक बड़ा कारण यह भी बताया जाता है कि नेताओं की जुबान पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। कांग्रेस ने आगामी विधानसभा चुनावों और २०१९ के लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए प्रशांत किशोर का सहारा लिया है। प्रशांत किशोर के सामने भी यह दिक्कत आ रही है कि वे कांग्रेस के नेताओं को बेतुकी बयानबाजी के लिए रोक नहीं पा रहे हैं।
भाजपा में साधु-संतों की भरमार है लेकिन ये सभी दुर्बासा ऋषि के वंशज प्रतीत होते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ये लोग कभी-कभी असहज स्थिति में डाल देते हैं। श्री मोदी ने कई बार यह चेताया भी कि पार्टी के नेता सोच-समझ कर सार्वजनिक रूप से बयानबाजी करें लेकिन साध्वी निरंजन ज्योति, गिरिराज सिंह और योगी आदित्यनाथ जैसे नेता मधुर शब्द ढूंढ ही नहीं पाते हैं। इसी श्रेणी में अब सुब्रमण्यम स्वामी का नाम जुड़ गया है। पार्टी ने उनको हाल ही में राज्य सभा के लिए मनोनीत किया है। डा. सुब्रमण्यम स्वामी इस मनोनयन से बहुत खुश नहीं हैं क्योंकि वह केन्द्र में मंत्री बनना चाहते थे। अब कहा यह जा रहा है कि राज्यसभा में मनोनीत सांसद को मंत्री नहीं बनाया जा सकता। इसके बावजूद डा. स्वामी को भाजपा हाईकमान का वरदहस्त प्राप्त है क्योंकि वही एक ऐसे नेता हैं जो कांगे्रस को चैन से नहीं बैठने देंगे। नेशनल हेराल्ड के मामले में डा- स्वामी ने ही श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी को अदालत परिसर में जाने को मजबूर कर दिया था। इसके बाद राहुल गांधी के ब्रिटेन में झूठा हलफनामा देने का मामला भी डा. स्वामी ने ही उठाया था। अब एक ताजा मामला इटली से हेलीकाप्टर खरीद का है जिसमें इटली की अदालत ने हेलीकाप्टर कम्पनी के एक अधिकारी को इस बात के लिए दोषी ठहराया है कि उसने सौदे के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार के नेताओं को रिश्वत दी थी। डा. सुब्रमण्यम स्वामी इस मामले को जोर-शोर से उठा रहे हैं लेकिन अपनी जुबान से नियंत्रण भी खो देते हैं। राज्यसभा में अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकाप्टर डील ने माहौल को गर्म कर रखा है। इसी समय राज्यसभा में डा. सुब्रमण्यम की इंट्री होती है। उन्होंने सीधे-सीधे सोनिया गांधी का नाम ले लिया। इस पर जमकर हंगामा हुआ। सदन में मार्शल बुलाये गये और कार्यवाही स्थगित हुई। हालात ऐसे बन गये कि उपसभापति को डा. स्वामी का बयान सदन की कार्यवाही से हटाना पड़ा। इसी प्रकार अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर बहस हो रही थी। समाजवादी पार्टी के सदस्य मुनव्वर सलीम ने डा. स्वामी के नाम का उल्लेख किया जिसके जवाब में डा. स्वामी ने असंसदीय टिप्पणी कर दी। इस पर भी जमकर हंगामा हुआ और डा. स्वामी की टिप्पणी को सदन की कार्यवाही से हटाया गया।
समाजवादी पार्टी की बात आयी तो मो. आजम खां का नाम भी उन नेताओं में शामिल है जो इसी तरह की टिप्पणी करते हैं। स्थानीय निकायों के मामले में विधेयक को राजभवन में रोके जाने के विरोध में मो. आजम खां ने ताजा टिप्पणी यह की है कि राज्यपाल बेईमानों को संरक्षण दे रहे हैं। इससे पूर्व भी श्री आजम खां लखनऊ के राजभवन पर इसी तरह के आरोप लगा चुके हैं। राज्यपाल श्री रामनाईक ने मो. आजम खां के आरोपों का संज्ञान लेकर कार्यवाही भी शुरू कर दी है।
हम असदुउद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं को भी नहीं भूल सकते जो साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे का ही निरंतर प्रयास किया करते हैं। यह जमात दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, यही चिंता की बात है। देश को नरेन्द्र मोदी जैसा नेक और कर्मठ प्रधानमंत्री मिला है लेकिन यदि जमात कौरवों की रही तो अजेय कर्ण को भी बचाया नहीं जा सकेगा। (हिफी)

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