घर पर ही इस आयुर्वेदिक तरीके से करें बदहजमी का स्‍थाई इलाज

आधुनिक युग में बदहजमी का रोग पेट की कई बीमारियों के रूप में प्रकट हो रहा है। पेट दर्द होना, मुहं में खट्टा चरका पानी उभरना, अपान वायु निकलना, उलटी होना, जी मिचलाना और पेट मे गैस इकट्ठी होकर निष्काशित नहीं होना इत्यादि  लक्षण्  प्रकट होते हैं। भोजन को भली प्रकार चबाकर नहीं खाना पेट रोगों का मुख्य कारण माना गया  है।

आयुर्वेदिक तरीके से करें बदहजमी

अधिक आहार,अतिशय मद्यपान, तनाव और आधुनिक चिकित्सा की अधिक दवाईयां प्रयोग करना अन्य कारण हैं जिनसे पेट की व्याधियां जन्म लेती है। ज्यादा  और बार बार चाय और काफ़ी पीने की आदत से पेट में गेस बनने और कब्ज  का रोग पैदा होता है ।  भूख न लगना ,जी घबराना, चक्कर आना, शिरोवेदना आदि समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

मुहं का स्वाद बिगड जाता है,जीभ पर मेल की तह जम जाती है, श्वास मे बदबू आती है, बेचेनी मेहसूस होना, अधिक  लार  पैदा होना,  पेट मे जलन होना, इन शिकायतो  से यह रोग पहिचाना जाता है।

भोजन के बाद पेट मे भारीपन महसूस होता है । इस रोग के इलाज मे खान पीन में बदलाव करना मुख्य बात है। कचोरी,समोसे,तेज मसालेदार व्यंजन का परित्याग पहली जरूरत  है । गलत खान पान जारी रखते हुए किसी भी औषधि से यह रोग स्थायी रूप से ठीक नहीं होगा। दादी-नानी के नुस्‍खे में हम आपको कुछ ऐसे आसान उपचार बता रहे हैं, जिनके प्रयोग से पेट की व्याधियां  से मुक्ति मिल जाती है।

बदहजमी से निजात दिलाएंगे ये उपाय

भोजन से आधा घन्टे पहिले एक  या दो  गिलास पानी पियें।  भोजन के एक घन्टे बाद दो गिलास पानी पीने की आदत बनावें। कुछ ही दिनों में फ़र्क नजर आयेगा।

आधा गिलास मामूली गरम जल में मीठा सोडा डालकर पीने से पेट की गेस में तुरंत  राहत  मिलती है।

Gastritis- पेट रोग मे रोगी को पहले २४ घन्टी मे सिर्फ़ नारियल का पानी पीने को देना चाहिये। नारियल के पानी में विटामिन्स और पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो आमाषय को आराम देते हैं और रोग मुक्ति में सहायक हैं।

चावल उबालें। इसका पानी रोगी को एक गिलास दिन मे दो  बार पिलाएं।  बहुत फ़ायदेमंद उपाय है।

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आलू का रस भी गेस्ट्राइटिज रोग में लाभदायक साबित हुआ है। आधा गिलास आलू का रस भोजन से आधा घन्टे पहिले दिन में दो या तीन बार देना उपकारी है।

दो चम्मच मैथी दाना एक गिलास पानी में रात भर भिगोएं। सुबह छानकर इसका पानी पियें।  लाभ होगा।

रोग की उग्रता में दो या तीन दिन निराहार रहना चाहिये। इस अवधि में सिर्फ़ गरम पानी पियें। ऐसा करने से  आमाषय  को विश्राम मिलेगा और विजातीय पदार्थ शरीर से निकलेंगे।जिससे आमाशय और आंतों की सूजन मिटेगी।

दो  या तीन दिन के उपवास के बाद रोगी को अगले तीन दिन तक सिर्फ़ फ़ल खाना चाहिये। सेवफ़ल, तरबूज, नाशपती,अंगूर,पपीता अमरूद आदि फ़ल उपयोग करना उपादेय हैं।

रोगी को ३ से ४ लीटर पानी पीना जरूरी है। लेकिन भोजन के साथ पानी नहीं पीना चाहिये। क्योंकि इससे जठर रस की उत्पत्ति में बाधा पडती है।

बदहजमी दूर करने का एक बढिया  उपाय यह भी है कि भोजन सोने से २-३ घन्टे पहिले  कर लें।

मामूली गरम जल मे एक नींबू निचोडकर पीने से बदहजमी दूर होती है।

पेट में वायु बनने की शिकायत होने पर  भोजन के बाद १५० ग्राम दही  में दो ग्राम अजवायन और आधा ग्राम काला नमक मिलाकर खाने से वायु-गैस मिटती है। एक से दो सप्ताह तक आवश्यकतानुसार दिन के भोजन के पश्चात लें।

दही  के मट्ठे  में काला नमक और भुना जीरा मिलाएँ और हींग का तड़का लगा दें। ऐसा मट्ठा पीने से हर प्रकार के पेट के रोग में लाभ मिलता है।दही ताजा होना चाहिये।

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प्राकृतिक चिकित्सा भी अपनाएं- 

पेड़ू पर गीली पट्टी रखें

इससे पेट के समस्त रोगों, पुरानी पेचिस, बडी आंत में सूजन, पेट की नयी-पुरानी सूजन, अनिद्रा,बुखार एवं स्त्रियों के गुप्त रोगों की रामबाण चिकित्सा है | इसे रात्रि भोजन के दो घंटे बाद पूरी रात तक लपेटा जा सकता है |

खद्दर या सूती कपडे की पट्टी इतनी चौड़ी जो पेडू सहित नाभि के तीन अंगुल ऊपर तक आ जाये एवं इतनी लम्बी कि पेडू के तीन-चार लपेट लग सकें |

सूती कपडे से दो इंच चौड़ी एवं इतनी ही लम्बी ऊनी पट्टी |

उपर्युक्त पट्टियों की विधि से सूती / खद्दर की पट्टी को भिगोकर,निचोड़कर पेडू से नाभि के तीन अंगुल ऊपर तक लपेट दें ,इसके ऊपर से ऊनी पट्टी इस तरह से लपेट दें कि नीचे वाली गीली पट्टी पूरी तरह से ढक जाये | एक से दो घंटा या सारी रात इसे लपेट कर रखें |

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