बजट 2019 में मनोरंजन के साधन सस्ते हो सकते हैं या नहीं?

शुक्रवा.र आते ही कई लोग अपने वीकएंड प्लान बना लेते हैं। दो दिन ऑफिस से छुट्टी के बारे में सोचकर कुछ को आस-पास के पहाड़ याद आने लगते हैं, किसी को नई मूवी देखने का मन करता है, किसी को अपने पार्टनर के साथ महंगी डेट पर जाने की जल्दी होती है तो कोई बस घर में बैठा नेटफ्लिक्स एंड चिल करना चाहता है। यहीं अगर कोई परिवार है तो वहां बच्चों को घुमाने की जिम्मेदारी भी वीकएंड पर निभानी होती है।
बजट 2019 में मनोरंजन के साधन सस्ते हो सकते हैं या नहीं?
पर इन सबके बीच मनोरंजन में बहुत बड़ी समस्या आती है बजट की। फिल्मों के वीकएंड पर ज्यादा महंगे होते हैं, बच्चों के लिए एंटरटेनमेंट पार्क का टिकट महंगा हो जाता है, गेमिंग पार्लर से लेकर रेस्त्रां में खाना और यहां तक की नेटफ्लिक्स के सब्सक्रिप्शन तक सब कुछ लगातार बढ़ता चला जा रहा है। एक के बाद एक खर्चे बढ़ रहे हैं और परिवारों के लिए कुछ भी सस्ता नहीं हो रहा। घर का बजट बनाने वाली महिलाओं को इससे काफी समस्या भी होती है। इस बार बजट 2019-20 में निर्मला सीतारमन से हम कुछ ऐसी उम्मीद करते हैं जो इन समस्याओं पर भी ध्यान दें।

लखनऊ की सुरभी को लगता है कि उनकी वीकएंड पार्टी जो पहले लखनऊ जैसे शहर में भी सस्ते में हो जाती थी अब वही पार्टी उन्हीं सहेलियों के साथ कम से कम 30% महंगी पड़ रही है। GST के बाद रेस्त्रां के चार्ज में बदलाव तो आया है, लेकिन सरकारी तौर पर सर्विस चार्ज हटाने के बाद भी रेस्त्रां अपनी मनमानी करते हैं और बस एक बोर्ड लगा देते हैं कि GST, VAT (एल्कोहॉल पर) और सर्विस चार्ज यहां लगाया जाता है। कई बार तो ये मेन्यु पर इतना छोटे अक्षरों में सर्विस चार्ज डिटेल्स लिखी होती हैं कि बिल आने पर पता चलता है 10% अधिक चार्ज दिया है। एक फिल्म थिएटर में सरकार के मुताबिक अब बाहर का खाना ले जा सकते हैं, लेकिन ये सिर्फ मुंबई में हुआ है और अगर कोई जल्दी में पहुंचा है तो उसे तो पानी की भी 50 रुपए की बॉटल खरीदनी पड़ती है।

ऐसा आपके साथ कितनी बार हुआ है कि पॉपकॉर्न के छोटे साइज के पैकेट चुनने पर किसी मल्टीप्लेक्स वाले ने कहा है कि ये सिर्फ 20 रुपए अधिक देकर फुल साइज ले जाएं। इंसान 20 रुपए का अंतर चुका ही देता है, लेकिन ऐसे में ठगा हुआ सा महसूस करता है। ऐसे में 300 रुपए की टिकट के साथ कई टैक्स लगाकर खाने-पीने की चीज़ों के दाम भी ऊपर कर दिए जाते हैं। ऐसे में 1 फिल्म 1000 रुपए की पड़ जाती है।

ये समस्या बहुत बड़ी है और बजट 2019 नजदीक। पर सरकार क्या करे कि आम लोगों की इन समस्याओं को लेकर कुछ किया जा सके?

1. सर्विस चार्ज पर लगाम:

सर्विस चार्ज लगाना जब मना है तो कोई ऐसी स्कीम लाई जानी चाहिए कि रेस्त्रां और महंगे होटलों की मनमानी रोकी जा सके।

2. फिल्म टिकटों पर ध्यान:

अंतरीम बजट में ‘सिंगल विंडो क्लियरेंस’ का प्रावधान तो सरकार की तरफ से दिखा था जिससे उम्मीद की जा सकती है कि फिल्म कॉस्ट कम होगी, लेकिन इससे दर्शकों को क्या फायदा? वीकएंड पर फिल्मों की टिकट बहुत महंगी हो जाती हैं। यहां तक कि अगर किसी सुपर स्टार की फिल्में रिलीज हो रही हैं तो वहां तो कम से कम हफ्ते भर तक वीकएंड में भी उम्मीद न करें। ऐसे में सरकार कोई प्रावधान ला सकती है, या फिर सब्सिडी की कोई तरकीब निकाल सकती है। मसलन मध्यप्रदेश में फिल्मों की मेकिंग पर कम खर्च होता है, ऐसे में पूरी तरह से भारत में शूट हुई फिल्मों के लिए टिकट में किसी तरह की सब्सिडी। या कम से कम टिकट की कीमत पर लगाम लगाई जा सकती है।

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3. मल्टीप्लेक्स के खाने पर ध्यान:

मल्टीप्लेक्स में अगर कुछ खाना खरीदा जाए तो उसकी कीमत कितनी होती है इसका अंदाजा होगा आपको, लेकिन अगर सरकार ऐसा कोई नियम ला दे जिससे या तो मल्टीप्लेक्स में खाने दाम कम हो सकें या फिर खुद अपना खाना मल्टीप्लेक्स और सिनेमा हॉल में ले जाने की इजाजत हो सके।

4. वीडियो स्ट्रीमिंग वेबसाइट्स पर लगाम:

Amazon विदेशी साइट है, लेकिन उसका चार्ज 999 रुपए प्रति साल है और नेटफ्लिक्स भी विदेशी साइट है, लेकिन भारत में उसका चार्ज 650 रुपए + टैक्स है। ये एक ऐसा मामला है कि अगर मान लीजिए मूवी देखने बाहर नहीं जाना और घर पर ही फिल्म देखनी है तो उसका खर्च भी ज्यादा नहीं होना चाहिए। अब हॉटस्टार, Zee5, AltBalaji, Amazon, नेटफ्लिक्स जैसी वेबसाइट्स के सब्सक्रिप्शन में काफी अंतर है। ऐसे में उस अंतर को सरकार कम कर सकती है।

5. बच्चों के मनोरंजन पर खान ध्यान:

ऐसे थिएटर परफॉर्मेंस, एंटरटेनमेंट पार्क की टिकट, फिल्में, गेम्स आदि जो बच्चों से जुड़े हुए हैं उनपर सब्सिडी मिल सकती है ताकि परिवार के बच्चों के मनोरंजन में कोई समस्या न रह जाए।

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