बच्चों पर मंडरा रहा ब्लैक फंगस का खतरा, 3 बच्चों की निकाली गई आँख

मुंबई में बच्चों में म्युकोरमायकोसिस यानी ब्‍लैक फंगस का असर दिख रहा है। विभिन्‍न अस्‍पतालों में सामने आए ऐसे मामलों में तीन बच्चों की एक आँख निकालनी पड़ी है। बच्चों में ब्लैक फ़ंगस के मामले डॉक्टरों को चिंतित कर रहे हैं। मुंबई के अलग-अलग अस्पतालों में 4 साल से लेकर 16 साल तक के बच्चों में ब्लैक फंगस पाया गया है।

ऐसे मामलों में 14 साल की एक बच्ची की एक आँख निकालनी पड़ी जबकि एक अन्‍य केस में 16 साल की बच्ची के पेट के हिस्से में ब्लैक फ़ंगस पाया गया। इन दोनों का इलाज मुंबई के फ़ोर्टिस अस्पताल में हुआ। फोर्टिस अस्‍पताल के सीनियर कंसल्‍टेंट-पीडियाट्रीशियन डॉ. जेसल शाह बताती हैं कि, “दूसरी लहर में हमने इन दो बच्चियों में ब्लैक फ़ंगस देखा है। दोनों बच्चियों को डायबटीज़ था। हमारे पास जब बच्ची आई तो 48 घंटों में उसकी आंख एकदम काली हो गई। नाक, आंख, सायनस में यह फैला हुआ था, खुशकिस्‍मती से यह ब्रेन तक नहीं गया था। छह हफ़्ते का इलाज चला, लेकिन उसकी आँख चली गई।” उन्‍होंने कहा, “16 साल की बच्ची एक महीने पहले स्वस्‍थ थी, उसे कोविड हुआ, पहले कभी डायबटीज़ नहीं हुआ था लेकिन हमारे पास लगभग नियंत्रण के बाहर डायबटीज़ के साथ आई। एब्डॉमिनल पेन था, अचानक से इंटेस्‍टाइन में ब्लीडिंग चालू हो गई। एंजियोग्राफ़ी करने पर पाया गया कि एओर्टिक एन्यूरिज है। उसके घाव में ब्लैक फ़ंगस पाया गया।” आंख और कैंसर सर्जन डॉ पृथेश शेट्टी 4 और 6 साल के बच्चों में ब्लैक फ़ंगस देख चुके हैं, इन दोनों ही मामलों में बच्चों की एक आंख निकालनी पड़ी। बच्चों को कोविड तो हुआ था पर इन्हें डायबटीज़ की शिकायत नहीं थी।

डॉ. शेट्टी ने बताया कि, “म्युकर बच्चे की आंख में फैल चुका था। रोशनी नहीं थी यदि हम आंख नहीं निकालते तो जान को ख़तरा हो सकता था। ये सर्जरी 29 दिसंबर को हुई थी। आँख निकाली गई। यह फ़र्स्ट फ़ेज़ में हुआ था। दूसरी लहर में यानी अप्रैल माह में जो बच्चा आया, उसकी भी ऐसी ही स्थिति थी बायीं ओर की रोशनी जा चुकी थी, दर्द था और सूजन भी थी। यदि हम सर्जरी नहीं करते तो तो इन्फ़ेक्शन ब्रेन तक चला जाता।”

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