अनाथ बच्ची ने डीएम को भेजा मैसेज, ईदी देने पहुंचा पूरा ‘शहर’, छलक आईं सभी की आँखें
वाराणसी: गरीबी और मुफलिसी से जूझ रही अनाथ लड़की ने ईद से एक दिन पहले DM वाराणसी को मोबाइल पर एक मार्मिक संदेश भेजा. संदेश में अपनी माली हालात बयां करते हुए ईद न मना पाने का दर्द छिपा था. डीएम ने इस संदेश पर एक्शन लिया और पूरा प्रशासनिक अमला कपड़े और मिठाइयों के साथ उसके घर पहुंचा. और फिर क्या था 13 साल बाद शबाना के घर भी निकल आया ईद का चांद.
शबाना ने सन्देश में लिखा, “डीएम साहब नमस्ते. मेरा नाम शबाना है. मुझे आपसे कुछ कहना है. मेरा सबसे बड़ा त्योहार ईद है. मेरे आसपास के लोग नए कपड़े पहनेंगे, लेकिन हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि नया कपड़ा खरीद सकें. मेरे अब्बू-अम्मी का 2004 में इंतकाल हो चुका है. मेरे घर में मेरे अलावा मेरी नानी और छोटा भाई है. प्लीज कुछ मदद करें जिससे मैं भी ईद मना सकूं.”
ये हैं बजरंगी ताऊजान, अब तक हजारों बिछड़े बच्चों को अपनों से मिलाया
आपको बता दें कि यह मार्मिक संदेश वाराणसी के मंडुवाडीह थाने के शिवदासपुर निवासी बिना मां-बाप की शबाना ने डीएम योगेश्वर राम मिश्रा को उनके मोबाइल पर रविवार दोपहर भेजा था. मैसेज पढ़ते ही डीएम ने एसडीएम सदर को बुलाकर शबाना के परिवार की मदद को कहा. डीएम ने अपने पास से शबाना, उसकी नानी और छोटे भाई को नए कपड़े, मिठाई और सेवई के लिए रुपए दिए. शबाना ने जिस मोबाइल नंबर से मैसेज किया था, उस नंबर 7272010429 से घर का लोकेशन लेकर एसओ मंडुवाडीह के साथ एसडीएम पहुंच गए. वहां से शबाना को लेकर पूरी टीम बाजार पहुंची. कपड़े, मिठाई और सेवई खरीदी गई. उपहार देखकर शबाना, उसके भाई और बूढ़ी नानी की पलकें खुशी से भीग गईं.
दरअसल 2004 में आग में झुलसकर शबाना की अम्मी और अब्बू का इंतकाल हो गया. उसके बाद तो इस घर की दीवार पर मुफलिसी का ऐसा मकड़जाल बुन गया, जिसमे उलझकर इन बच्चों की सारी खुशियों ने मानो दम ही तोड़ दिया. शबाना दो बहन और दो भाई हैं. यूं तो साल के एक महीने दुनिया का हर मुसलमान अल्लाह की इबादत में भूखा रहता है, लेकिन इस परिवार को तो मुफलिसी हर रोज रोजा रखवाने लगी. 13 साल से ईद का चांद इनके घर नहीं निकला.
बड़ी बहन और बड़ा भाई शबाना और छोटे भाई का पेट भरने के लिए मुंबई चले गए और एक साल से वहीं खुद और अपने इन दोनो छोटे भाई बहन का पेट भरने के लिए दर-दर भटक रहे हैं. वहीं यहां शबाना अपनी नानी और छोटे भाई के साथ आंसुओं और मुफलिसी के समुंदर में डूबी हर रोज दो जून की रोटी के संकट से जूझ रही थी. कब ईद आती और चली जाती इन्हें पता नहीं चलता. यहां रोज ही रोजा है. शबाना ने मेहनत मजदूरी करके किसी तरह अपने भाई और नानी का पेट भरा और खुद भी अपना पेट काटकर कुछ पैसे जमा किए और इंटर तक की पढ़ाई पूरी की. लेकिन पेट बड़ा निर्मोही होता है. इस बार भी ईद से एक दिन पहले मुंबई में रह रहे भाई बहन कुछ खास इंतजाम नहीं कर पाए और ये पूरा परिवार गांव के एक छोटे से घर में आंसू बहा रहा था.
तभी शबाना के मन में जिले के अधिकारी डीएम को अपना दर्द बयां करने का विचार आया और पड़ोस के एक घर से मोबाइल लेकर डीएम को संदेश भेजा. उसके बाद जो हुआ उसे शबाना शब्दों में बयां नहीं कर पा रही थी. आज डीएम की वजह से शबाना को जो ईदी मिली है वह उसे ताउम्र नहीं भूलेगी.