फर्रुखाबाद का गाँव मौधा कहने को शहीदों का गाँव लेकिन विकास से है कोसों दूर

REPORT-दिलीप कटियार/FARRUKHABAD

मोहम्मदाबाद की ग्राम सभा मौधा को शहीदों की धरती कहा जा सकता है। वैसे तो विकास खंड क्षेत्र के 42 जवानों ने देश की खातिर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। पर इनमें सबसे ज्यादा संख्या 18 मौधा के शहीदों की है।

प्रथम विश्व युद्ध के बाद वर्ष 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी मौधा के जवानों ने दुश्मनों से लोहा लिया। शहीदों की याद में ही यहां स्मारक बनाया गया है, जिसका लोकार्पण 5 जुलाई को गृहमंत्री राजनाथ सिंह किया था।

विकास से कोसों दूर

मौधा की आबादी लगभग चार हजार है जिसमे 1900 मतदाता हैं। गांव के जानकारों की मानें तो प्रथम विश्वयुद्ध में यहां के 10 जवान अहिबरन सिंह प्रथम, सुतुआ सिंह, बरनाम सिंह, शिवपाल सिंह, जगन्नाथ सिंह, गोकरन सिंह, अजय सिंह, सरजू सिंह, छोटे सिंह व अहिबरन सिंह द्वितीय शहीद हुए थे। द्वितीय विश्वयुद्ध में तीन जवानों रामेश्वर सिंह, चंद्रपाल सिंह और हरबख्श सिंह ने प्राणों की आहुति दी थी।

वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध में रामऔतार सिंह, कुंजल सिंह और वर्ष 1965 में भारत-चीन युद्ध में राजबहादुर सिंह दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे। वर्ष 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में कन्हई सिंह और ज्ञानेंद्र सिंह ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे।

दुश्मनों की गोली से दोनों शहीद हो गए थे। मौधा गांव के 18 शहीदों समेत हैदरपुर, गोसरपुर, मुड़गांव, करनपुर, अरसानी, ईसेपुर, गढ़ी बनकटी, सहसपुर, मॉडलशंकरपुर, जिंजौटा पहाड़पुर, संकिसा, सिरौली, न्यामतपुर ठाकुराना और मुरान गांव के 42 जवानों ने देश के लिए जान दी थी। इन सभी के नाम मौधा में बने शहीद स्मारक में अंकित हैं।

मौधा के ग्रामीणों का कहना है कि उनकी पूरी ग्राम सभा के करीब 150 लोग सेना में शामिल होकर देश की सेवा कर रहे हैं। वहीं 210 पूर्व सैनिक पेंशन पा रहे हैं।

वही मौधा गांव के विकास की बात करे तो जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर है। गाँव में न तो पक्की सड़क बनी है कर जो सड़के बनी हुई है वह भी टूटी हुई । गांव में लगभग 98 प्रतिशत सैनिको के घर है गांव में 2 प्रतिशत लोग गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार है जो सरकार की तरफ से मदद मिले उसके लिए आस लगाए बैठे है।

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इस शहीदों के गांव में कुछ गरीब परिवार रहते है उन परिवारों की महिलाओं के पति मजदूरी करके सिर्फ अपने परिवार का पालन पोषण ही कर पाते है। लेकिन शौचालय बनाने के लिए उनके पास रुपया नही है।

गाँव में किसी भी प्रकार का कोई भी विकास कार्य दिखाई नहीं देता है । गांव में मीटर लगाने में बड़ी लापरवाही बरती गई है। उपभोक्ताओं के यहां मीटर तो लगा दिए गए पर लाइन से तार नहीं जोड़ा गया।

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