प्रेरक-प्रसंग : महात्मा गांधी

प्रेरक-प्रसंग गांधी जी ने भारत के स्वतंत्रता के लिये सिर्फ जन जागरण अभियान ही नहीं चलाया अपितु राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को स्थापित करने में भी अग्रणी भूमिका निभायी थी। भारत आने के बाद 1917 में जब उन्होंने अपनी पहली सत्याग्रह यात्रा चम्पारण से आरंभ की तो इसी दौरान 3 जून को उन्होंने ऐक परिपत्र निकाला था जिसमें हिन्दी की महत्ता के संदर्भ में लिखा था
हिन्दी जल्दी से जल्दी अंग्रेजी का स्थान लेले, यह ईश्वरी संकेत जान पडता है। हिन्दी शिक्षित वर्गों के बीच समान माध्यम ही नहीं बल्कि जनसाधारण के हृदय तक पहुंचने का द्वार बन सकती है । इस दिशा में कोई देसी भाषा इसकी समानता नहीं कर सकती । अंगेजी तो कदापि नहीं कर सकती।
गांधी जी हिन्दी का मौखिक प्रचार करके ही, राष्ट्रभाषा के रूप में उसकी महत्ता और प्रतिष्ठा बताकर ही चुप नहीं रहे उन्होंने 1918 के ठेठ अंगेजी वर्चस्व के दौरान दक्षिण भारत में हिन्दी का प्रचार करने की व्यवस्था भी की।
इसी वर्ष इन्दौर में गांधी जी की अध्यक्षता में हिन्दी साहित्य सम्मेलन आयोजित हुआ और उसी में पारित एक प्रस्ताव के द्वारा हिन्दी राजभाषा मानी गयी। इस प्रस्ताव के स्वीकृत होने के बाद दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की भी स्थापना हुयी जिसका मुख्यालय मद्रास में था।
महात्मा गांधी जी के इस अभिनव प्रयास के उपरांत ही हिन्दी क्षेत्रीयता के कंटीले तारों की बाढ को पार कर उन्मुक्त आकाश में विचरण करने के लिये पंख फडफडाती दिखी जो आज तक जारी है।

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