प्रेरक-प्रसंग: परिश्रम सबसे बड़ा धन है

एक किसान के चार पुत्र थे । चारों के चारों पुत्र बड़े आलसी और निकम्मे प्रवृत्ति के थे। उनके भविष्य को लेकर बेचारा बुढ़ा किसान चिंतित रहता था और पिछले कुछ दिनों से उसको अपनी तबियत भी नसार लग रही थीं। स्वास्थ्य को लेकर अपने उसका अंदाजा बिल्कुल सही था । कुछ दिन बीते ही वह अत्यधिक बीमार पड़ गया। उसे इस बात का भी अंदेशा लगने लगा कि वह बस कुछ पल ही जीवित है, तो उससे अपने चारों पुत्रों को पास बुलाया और कहा,

किसान

“मेरी मृत्यु निकट है। अत: मैं जो कहने जा रहा हूँ उसको ध्यान से सुनों। मैंने अपना सारा धन घर के पिछवाड़े वाले खेत में दबा रखा है। मेरे मरने के बाद तुम लोग उसे निकालकर बराबर बराबर बाट लेना।” इतना कहने के बाद उस किसान के प्राणपखेरू हो गए।

चारों पुत्रों ने फटाफट खेतों में पहुंचकर उस कीमती खज़ाने को ढूढना शुरू कर दिया ताकि ख़जाना सबसे पहले उनकों ही मिले। खेतों को खोदने और ख़जाना ढूढने का यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा, पर उन्हें वहां कोई भी ख़जाना नहीं मिला। जिससे उन्हें बड़ी निराशा हुई।

उसी गाँव का बुढा सरपंच किसान का बहुत अच्छा दोस्त था। उसने किसान के पुत्रों को सलाह दी कि, जब तुम चारों ने अपना सारा खेत खोद ही डाला हैं, तो इसमें अनाज के बीज भी बो दो। इससे कुछ फसल तैयार हो जायेगी।

सरपंच की सलाह मानकर पुत्रों ने बीज बो दिए। लगभग तीन महीने में ही उस खेत में सरसों की फसल लहलहाने लगी और जिसे देखकर किसान के पुत्रों का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा। दरअसल बूढ़े किसान का असली ख़जाना यही था, जो अब उसके आलसी पुत्रों को भी मिल चुका था।

 

नैतिक शिक्षा – परिश्रम सबसे बड़ा धन है। व्यक्ति परिश्रम के बल पर जीवन में अपने उन्नति और विकास के शिखर पर पहुँच सकता हैं।

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