मोदी के राष्ट्रवाद ने लगाया ‘मिशन 2019’ को पलीता, एक झटके में बिखरे ख्वाब, काउंटडाउन शुरू

प्रधानमंत्री नरेंद्रनई दिल्ली। बीफ मीट बैन, मवेशियों की खरीद-फरोख्त पर नकेल और देश में बढ़ रहा ‘उग्र-राष्ट्रवाद’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अब मुश्किलों का सबब बनता जा रहा है। लम्बे समय से विपक्ष इस मामले में केंद्र को घेरता आया है। अब ताजा मामले में यह सब बंद कराने के लिए 65 पूर्व नौकरशाहों ने पीएम मोदी को खुला ख़त लिखा है। उनका मानना है कि केंद्र के हाल ही में लिए गए फैसले और भाजपा की शह पर हिन्दूवादी संगठनों का बदलता रुख देश हित और विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है, जिस पर मोदी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।

उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा कि वर्तमान में मोदी सरकार की आलोचना करने वालों को देश विरोधी ठहराया जा रहा है। इससे आलोचना की गुंजाइश खत्म होती जा रही है। हाल में गोरक्षा को लेकर हिंसा के मामले और धर्म के आधार पर लोगों को बांटे जाने के कई केस सामने आए। इन पर रोक लगाई जानी चाहिए।

वरिष्ठ सरकारी पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके कुछ पूर्व नौकरशाहों ने सरकार से अपील की है कि वह देश में बढ़ते उग्र-राष्ट्रवाद और अधिनायकवाद से निपटने के लिए जरूरी कदम उठाए।

एक खुले पत्र में उन्होंने कहा कि कथित गोरक्षकों की हरकतों जैसी हालिया घटनाओं को लेकर बेचैनी की वजह से उन्हें इस बारे में अपने ऐतराज और संदेह को जाहिर करना पड़ रहा है।

पत्र पर लगभग 65 पूर्व नौकरशाहों के हस्ताक्षर हैं। पत्र में लिखा है कि इससे वाद-विवाद और असहमति जताने की गुंजाइश खत्म होती जा रही है।

जिन नौकरशाहों ने इस पत्र पर दस्तखत किए हैं उनमें 91 वर्षीय हर मंदर सिंह भी शामिल हैं। वह 1953 बैच के आईएएस अधिकारी रह चुके हैं। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय संस्कृति सचिव जवाहर सरकार, आर्थिक मामलों के विभाग के पूर्व सचिव ई.ए.एस सरमा और मुंबई के पुलिस आयुक्त रह चुके जूलियो रिबेरो भी शामिल हैं।

पत्र में पूर्व अधिकारियों ने लिखा, उग्र-राष्ट्रवाद बढ़ रहा है, जिससे किसी आलोचक को एक तय खाके में फिट कर दिया जा रहा है कि यदि आप सरकार के साथ नहीं हैं तो आप राष्ट्रविरोधी हैं। सत्तासीनों से सवाल नहीं किए जाने चाहिए- यह स्पष्ट संदेश है। उन्होंने लोक प्राधिकारियों और संवैधानिक संस्थाओं से अपील की कि वे इन परेशान करने वाली प्रवृतियों पर ध्यान दें और सुधारवादी कदम उठाएं।

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) एवं अन्य केंद्रीय सेवाओं के पूर्व अधिकारियों की ओर से लिखे गए पत्र में कहा गया है, हमारे पुरखों की दृष्टि के अनुसार हमें भारत के संविधान की भावना को फिर से जीवंत करना है और उसका बचाव करना है।

पत्र में इस साल की शुरूआत में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में किए गए कथित सांप्रदायिक चुनाव-प्रचार का भी जिक्र किया गया।

पूर्व नौकरशाहों ने पत्र में कब्रिस्तान-श्मशान वाले विवादित बयान, उत्तर प्रदेश के दादरी में अखलाक हत्याकांड, राजस्थान में पहलू खान हत्याकांड जैसी घटनाओं का जिक्र किया गया।

पत्र के मुताबिक, बूचड़खानों पर प्रतिबंध से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया और इससे उनकी रोजी-रोटी पर असर पड़ा है । सांप्रदायिक तौर पर आवेशित माहौल में ऐसी असहनशीलता हिंसा पैदा करती है।

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