पूजा का तरीका ही तो नहीं कहीं आपके दुख का कारण, ऐसे करें भगवान की पूजा

पूजा ईश्‍वर को तो सभी मानते हैं। माने भी क्‍यों न आखिर दुख के समय में भगवान ही तो सहारा होते हैं। लेकिन कई बार हम बहुत पूजा करते हैं, लेकिन दुख कम होने का नाम नहीं लेते हैं। धीरे धीरे हम कल तक जिस ईश्‍वर का नाम अपनी जबान पर रटा करते थे, उसी को अपनी ही जबान से अपशब्‍द कहने लगते हैं। लेकिन भगवान तो भगवान है और हम सब उसकी संतान । भगवान उसी प्रकार हमारी गलतियों को माफ कर देते हैं जिस प्रकार छोटे बच्‍चों की शैतानियों को मां-बाप । लेकिन गौर कीजिए तो पता चलता है कि दुख के  समय में हम जिस ईश्‍वर से सहायता की उम्‍मीद किए बैठे थे । हमने उस तक अपनी बात पहुचाने का सही मार्ग का चुनाव ही नहीं किया।

दरअसल हमने ईश्‍वर पूजा ही सही तरीके से नहीं की। शास्त्रों के अनुसार के देवी-देवताओं की कृपा चाहिए तो पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

पूजा का अर्थ है समर्पण। समर्पण का नाम ही आस्था है। आस्तिकता कर्मकांड में नहीं है। भगवान के प्रति समर्पण और भाव में है।

अक्सर लोग, कर्मकांड और पूजा विधान को एकही मान लेते हैं। भगवान की भक्ति के लिए मन, वचन और कर्म की प्रधानता चाहिए। भक्ति के तत्व दस हैैं। इसमें वही सभी तत्व हैं जो धर्म में हैं। दशो महाविद्या की सार भी धर्म में ही है। धर्म में ही जीवन की कुंजी है। धर्म में ही जीवन को जीने का मर्म छिपा है।

बहुभाषी और बहुदेवतावादी समाज में अक्सर यह प्रश्न रहता है कि हम किसकी आराधना करें और कितनी देर करें। कर्मकांड पर जाएं तो लंबे-चौड़े विधान हैं। लेकिन सनातन व्यवस्था में ध्यान को महत्व दिया गया है, कर्म को महत्व दिया गया है, भाव को महत्व दिया गया है। वाणी यदि दूषित हो तो राम-राम जपने का लाभ नहीं। कर्म यदि दूसरे को पीड़ा पहुंचाने वाले हों तो घंटों पूजा में बैठने का कोई अर्थ नहीं। गोस्वामी तुलसीदास ने परहित को ही धर्म की संज्ञा कहा है।

आज के आपाधापी और व्यस्तता भरे जीवन में बहुत से लोगों को यही कहते सुना जाता है कि पूजा में समय बहुत लग जाता है। कई लोगों के विधान टूट जाते हैं, संकल्प पूरे नहीं होते। मन में एक पीड़ा होती है कि हम आज यह नहीं कर पाए-वह नहीं कर पाए? महिलाओं को तो इस स्थिति का अधिक ही सामना करना पड़ता है। कामकाजी महिलाएं और भी परेशानियां उठाती हैं। घर की बुजुर्ग महिलाओं का तो पूजा-पाठ हो भी जाता है, लेकिन घर और दफ्तर संभालती महिलाएं क्या करें ?  कमोवेश, यही हाल पुरुषों का भी है।

पूजा के लिए अपनाएं ये नियम

सबसे पहले खुद पवित्र हो लें, स्‍नान करके गंगा जल की बूंदे अपने ऊपर डालें और मां गंगा तो अपने तन और चित्‍त को पवित्र करने की प्रार्थना करें। अपने गुरु का आहवान करें और प्रणाम करें।

सबसे पहले एक स्‍वच्‍छ तांबे के लोटा में जल लें और भगवान सूर्य को जल अर्पण करें। फिर पूजा घर में आएं और धूप दीप लगाएं और अब पूजा शुरू करें।

सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश की पूजा जिसमें गणेश चालीसा या गणेश मंत्रों का प्रयोग करें।

उसके बाद भगवान शिव और माता जगदंबे की पूजा करें। जिसमें शिव चालीसा या ऊँ नम: शिवाय अथवा महामृत्‍युंजय मंत्र तथा मां भगवती के लिए  श्री दुर्गा चालीसा, देवी कवच, अर्गलास्तोत्रम, कीलक, देवी सूक्तम और सिद्ध कुंजिका स्तोत्र, अकेले देवी सूक्तम, दुर्गा चालीसा और सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम का पाठ भी आप कर सकते हैं, समयाभाव में आप केवल सात बार या तीन बार ऊं ऐं हृीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे का जाप कर लें। दुर्गा पूजा संपूर्ण, करोतु सा न शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राणी भिहन्तु चापदा।

अब भगवान विष्‍णु की पूजा करें। भगवान विष्‍णु की पूजा में ही श्री राम और श्रीकृष्‍ण की पूजा निहित है । आप चाहें तो अलग से भी कर सकते हैं। ऊँ नमों भगवते वासुदेवाय नम: का जाप करें।

अब श्री हनुमान जी की पूजा करें। हनुमान जी की पूजा के नियम कठिन हैं। इसलिए भगवान शंकर के ग्यारहवें रुद्रावतार के रूप में उनकी पूजा करना श्रेयस्कर है। या गुरू के रूप में। बाला जी और प्रेतराज सरकार की पूजा करने वालों के लिए प्रतिदिन महावीर सिंदूर लगाना अच्छे फल प्रदान करता है। हनुमान जी की पूजा अकेले नहीं करनी चाहिए। पहले भगवान राम का माता जानकी सहित स्तवन करना चाहिए।

अब नौ ग्रह की पूजा करें फिर अपने इष्‍टदेव की पूजा अवश्‍य करनी चाहिए । आरती करें और प्रसाद का भोग लगाएं। अपने कुलदेवता और पितरों की भी पूजा करनी चाहिए।

सबसे अंत में भूल चूक के लिए क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए।

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