भारतीयों के भीतर पुत्र की चाहत घटाने में शिक्षा भी नाकाम

पुत्र की चाहतनई दिल्ली| भारत में युवा और स्नातक महिलाएं प्रति 1000 लड़कों पर 899 लड़कियों को जन्म देती हैं, जो राष्ट्रीय औसत 943 से भी कम है। इंडियास्पेंड द्वारा किए गए जनगणना के आंकड़ों के अध्ययन से यह जानकारी सामने आई है। इस अध्ययन से पता चला है कि उच्च शिक्षा से केवल परिवार नियोजन में मदद मिलती है, इससे उनकी पुत्र की चाहत नहीं खत्म होती|

विशेषज्ञों का कहना है कि इसका कारण यह हो सकता है कि लिंग चुनकर गर्भपात करवाने तक पढ़े-लिखे लोगों की पहुंच अधिक होती है। इससे बेटी के जन्म की संभावना खत्म हो जाती है। भारत में लिंग चुनकर गर्भपात करने-करवाने को 1994 में गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था।

पुत्र की चाहत है बरकरार

इंडियास्पेंड की रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा के स्तर के आधार पर महिलाओं की प्रजनन क्षमता के 2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चला है कि वे कम बच्चे पैदा करती हैं।

शहरीकरण और शिक्षा के प्रसार के कारण लिंगानुपात (प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या) में भारी कमी देखी गई है। नवजात का लिंगानुपात (इनमें वे बच्चे भी शामिल हैं जो पैदा होते समय या बाद में मर जाते हैं) ग्रामीण क्षेत्रों में 895 है, जबकि शहरी क्षेत्रों में 878 है।

दिल्ली विश्वविद्यालय की शिक्षक और 2007 में प्रकाशिक किताब सेक्स सेलेक्टिव एबार्शन इन इंडिया की लेखिका तुलसी पटेल का कहना है कि पढ़े-लिखे लोगों में भी बेटे की चाहत कम नहीं होती।

वह कहती हैं, “प्रजनन और प्रजनन परिणाम पर बेहतर नियंत्रण के कारण उन्हें बेटियों को पैदा होने से रोकने में मदद मिलती है।”

हालांकि कम उम्र की महिलाओं (20 से 34 साल की उम्र के बीच) में एक अच्छा चलन यह देखने को मिला कि वे ज्यादा उम्र की महिलाओं की अपेक्षा बेहतर लिंगानुपात रखती हैं। 20 से 34 साल की महिलाएं 1,000 लड़कों पर 927 लड़कियों को पैदा करती हैं, जबकि सभी महिलाओं का यह औसत 890 है।

इससे युवा माताओं में पहले की तुलना में अब बेटे की चाहत कम है, लेकिन शिक्षा और शहरीकरण से इनमें कोई मदद नहीं मिलती।

लीडेन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं कमलेश मदान और मार्टजिन ब्रेयूनिंग का कहना है, “लड़कियों के खिलाफ भेदभाव, चुनकर लड़कियों की भ्रूण हत्या और कम लिंगानुपात पढ़े-लिखे और संपन्न भारतीय घरों की हकीकत है।”

इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि जब 1971 में गर्भपात कानूनी था, तब यह “शहरी क्षेत्रों में लिंग चुनकर गर्भपात के लिए” जमकर प्रयोग किया गया।

इसके अलावा गर्भपात के उपकरण जो काफी महंगे थे, “ज्यादातर उन इलाकों में उपलब्ध थे, जहां शहरों का संपन्न और पढ़ा-लिखा तबका” रहता था।

2011 की जनगणना के एक और अध्ययन, जो द लेंसेंट में प्रकाशित किया गया है, में बताया गया है कि अगर पहली संतान बेटी होती है तो दूसरी संतान के लिंगानुपात में कमी आती है, “वे माताएं जिन्होंने 10 या उससे ज्यादा साल तक पढ़ाई की है, उनमें लिंगानुपात अनपढ़ माताओं की अपेक्षा ज्यादा कम होता है। इसी प्रकार से संपन्न घरों का लिंगानुपात गरीब घरों की तुलना में कम होता है।”

इस अध्ययन में कहा गया है कि भारत में पहली संतान लड़की पैदा होने के बाद दूसरी संतान के कन्या भ्रूण हत्या में काफी वृद्धि हुई है।

वहीं, देश भर में जहां पढ़ी-लिखी महिलाओं में लिंगानुपात में कमी देखी गई है, वहीं केरल में इसके विपरीत बेहतर लिंगानुपात (1,084) है।

केरल की अनपढ़ महिलाएं (20 से 34 साल के बीच) प्रति 1000 लड़कों पर 940 लड़कियों को जन्म देती है, जबकि पढ़ी-लिखी महिलाएं 950-960 लड़कियों को जन्म देती है। वहीं, ज्यादा पढ़ी-लिखी महिलाएं जो स्नातक या उससे अधिक पढ़ी-लिखी होती हैं, वे 971 लड़कियों को जन्म देती हैं।

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