पहले ही हमारे सैनिकों पर है इतना बोझ, सेना में अब और क्या कटौती करेगी सरकार?

एजेंसी/indian-army-istock_650x400_51457380233नई दिल्ली: अभी पिछले दिनों ही रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने सेना के वेतन और पेंशन के बढ़ते खर्चों का हवाला देते हुए कहा था कि रक्षा बलों में मैनपावर घटाने की जरूरत है। हालांकि सेना के एक शीर्ष कमांडर ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि सेना में छटनी की गुंजाइश ही नहीं है।

भारतीय सेना में करीब 12 लाख सैनिक हैं, जिस वजह से यह छटनी का स्पष्ट लक्ष्य बन जाता है। हालांकि सेना के एक आंतरिक रिपोर्ट में पाया गया है कि हाल के वर्षों में प्रत्येक सैनिक की जिम्मेदारी और साथ ही जंग के हालात में उनके द्वारा ढोया जाने वाला बोझा भी दोगुना हुआ है।सेना के वरिष्ठ कमांडर इस बाबत कहते हैं, ‘दुनिया भर के सैनिक औसतन अपने शरीर के वजन का एक तिहाई बोझ ढोते हैं, जबकि भारतीय सैनिकों के कंधे पर इससे कहीं ज्यादा भारी बोझ होता है। इससे उनकी गतिशीलता पर भी प्रभाव पड़ा है।’

पैदल सैनिकों की एक टुकड़ी (प्रत्येक में 10 सैनिक) में फिलहाल सैनिक अपने साथ निजी हथियारों के अलावा दो लाइट मशीन गन (एलएमजी) और एक रॉकेट लॉन्चर रखते हैं। एक एलएमजी में करीब 700 राउंड गोलियां होती हैं और इसके अलावा सैनिक 500 राउंड गोलियां अलग से अपने साथ लिए चलते हैं।

कुल मिलाकर अगर देखें तो एक टुकड़ी के सैनिक अपने साथ 34 मैगजीन्स में भरी एलएमजी की करीब 1400 गोलियां साथ रखते हैं। इसके अलावा चार रॉकेट और लॉन्चर भी उनके पास होते हैं और उसके साथ ही छह रॉकेट भी वह अलग से लिए चलते हैं।

कमांडर बताते हैं, ‘इसके अलावा भी प्रत्येक सैनिक अपने साथ अपने निजी हथियार- जैसे एके-47 या इन्सास और उनकी गोलियां अपने साथ लिए चलते हैं। इन सबको मिला कर प्रत्येक सैनिक अपने साथ 40 किलो वजन ढोता है।’

इससे भी अहम यह है कि एलएमजी और रॉकेट लॉन्चर चलाने में ही चार सैनिकों की जरूरत पड़ जाती है, ऐसे में 10 सैनिकों की टुकड़ी में जवाबी कार्रवाई के लिए सिर्फ छह जवान ही बचते हैं।

इससे भी अहम यह है कि एलएमजी और रॉकेट लॉन्चर चलाने में ही चार सैनिकों की जरूरत पड़ जाती है। सैन्या कमांडर कहते हैं कि ऐसे में वार या जवाई कार्रवाई के लिए प्रत्येक टुकड़ी में बस छह सैनिक रह जाते हैं, जो कि हमले के लिए बिल्कुल न्यूनतम जरूरत है।

प्लाटून स्तर या रेजिमेंट स्तर पर, जिसमें एक सपोर्ट एवं लॉजिस्टिक कंपनी और हेडक्वार्टर कंपनी सहित चार जंगी टुकड़ी होती है- यह अनुपात और भी चिंताजनक हो जाता है।

हर एक रेजीमेंट अपने साथ रणभूमि की निगरानी के लिए रडार, कम से कम 200 राउंड गोलियों के साथ स्नापर्स, तीन मल्टी बैरेल ग्रेनेड लाउंचर्स (एमबीजीएल), तीन ऑटोमेटिक ग्रेनेड लाउंचर्स (एजीएल) और इनके गोला-बारूद के अलावा एंटी-टैंक गाइडेड मिशाइल्स (एटीजीएमएल) भी लेकर चलती है। प्रत्येक पैदल टुकड़ी अपने साथ एक मानव रहित वायुयान (यूएवी) और भारी संचार उपकरण भी लेकर चलती है।कमांडर कहते हैं, ‘रेजिमेंट स्तर पर मैनपावर की कमी और गहरा जाती है और इस वजह से दबाव भी बेहद बढ़ जाता है।’ वह कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में वाहन चालकों को भी इलेक्ट्रिशन या एटीजीएम चलाने, रडार पर नजर रखने की भी ट्रेनिंग दी जाती है। वह बताते हैं, जंग के मैदान में घायल सैनिकों की देखभाल करने वाली नर्सों की संख्या में भी कटौती की जा चुकी है और ऐसे में इन ड्राइवरों को ही घायलों की देखभाल करने का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके साथ ही वह कहते हैं, ‘सेना में पहले ही काफी कटौती की जा चुकी है, अब इसकी कोई गुंजाइश ही नहीं।’

कमांडर कहते हैं, ‘जब तक की हर टुकड़ी के हथियारों और उनके निगरानी उपकरणों की संख्या को बड़ी मात्रा में बढ़ाया नहीं जात, तब तक यह सोचना भी मुश्किल है कि यह कटौती कहां हो सकती है।’

LIVE TV