अगर करना चाहते हैं स्वर्ण शहर की सैर तो एक बार यहां ज़रुर जाएं


पंजाब का दिलवैसे तो भारत में बहुत सी ऐसी पर्यटन स्थल है जहाँ सेलानी घुमाने के लिए जाते है. लेकिन उन पर्यटन स्थल के चुनिंदा शहरों में से एक अमृतसर है. इस शहर की बात ही अलग है। गुरू की नगरी अमृतसर को ‘पंजाब का दिल’ भी कहते हैं। पंजाब की खुशबू से बसे इस शहर में अलग-अलग देश के कोने से लोग यहां की खुबसूरती और धार्मिक संस्कृति को जानने व देखने के लिए आते हैं। धर्म में आस्था न हो तो भी स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते ही आप इन बंदिशों से परे होकर.यहां की भक्ति में लीन हो जाएंगे।

पंजाबियों का सादगी भरा शहर अमृतसर किसी समय एशिया के बड़े व्यापारिक केंद्रों में से एक था। यही वजह है कि एशियाई देशों में कोई भी सामान अमृतसर से ही पहुंचती है। जुड़वा शहर कहलाने वाला अमृतसर और लाहौर, कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है। अमृतसर के बिना पंजाब की संस्कृति को समझना मुश्किल है। रात में भी रौशनियों से जगमगाते इस पाक शहर को देख कर लगता ही नहीं की यह कभी आतंकवाद के भयानक द्दश्यों से घिरा हुआ था। अगर पंजाब की खुशबू और यहां की मिट्टी की सौंधी महक को करीब से महसूस करना चाहते हैं तो चले आइये अमृतसर।

गोल्डेन टेम्पल/ श्री हरमिंदर साहब मंदिर

रामदास साहिब जी द्वारा बनाया गए इस मंदिर की गिनती देश के सबसे महत्वपूर्ण सिख पिलग्रिमेज साइट में होती है। यहां के सिख धर्म और संसकृति मन को एक अलग ही सुकून और शांती देती है। आप चाहें तो एक चटाई लेकर पूरी रात यहां बिता सकते हैं। यह एक यादगार अनुभव होने के साथ-साथ मन को सारी समस्याओं से दूर रखता है।

वाघा बॉर्डर

अमृतसर से 285 किमी. की दूरी अटारी पोस्ट है जिससे 3 किमी. की दूरी पर वाघा बॉर्डर है। अटारी पोस्ट से आगे गाड़ियां नहीं जातीं है इसलिए इसके आगे पैदल ही जाना होता है। पूरे रास्ते जवानों की पैनी नज़र होता है। यहां सूरयास्त के दौरान शुरू होने वाला समारोह उन जवानों की याद से शुरू होता है जिन्होने मातृभूमि की रक्षा के लिए खुद को शहीद कर दिया। वहीं सरहद पार भी कुछ ऐसा नज़ारा देखने को मिलता है। वहां के लोग अपने देश के लिए नारे लगाते हैं। दोनों देश के जवान मिलते हैं, एक दूसरे से हाथ मिला सांकेतिक गुस्से का इज़हार कर समारोह का आगाज़ करते हैं। यह ‘बीटिंग द रीट्रीट’ समारोह 1959 से चला आ रहा है।

अमृतसर में लंगर

पहले भूखे को भोजन फिर भजन सिख जाती का यह संदेश ही है जो आज भी सहां साकार होते दिख रहा है। करोड़ों की संख्या में आए लोग यहां का स्वादिष्ट प्रसाद लंगर में ग्रहण करते हैं। इतना ही नहीं आप चाहें तो खुद भी बाकी लोगों को लंगर खिला सकते हैं। रोटी, दाल, खीर, चावल, देते वक्त परशाद्दा वाहेगुरू बोलना आवश्यक है। सिख धर्म में इसका अर्थ होता है की अन्न को वाहेगुरू का प्रसाद समझकर ग्रहण करें। रसोई में सैकड़ों की संख्या में सेवादार नि:शुल्क सेवा देते हैं।

जलियांवाला बाघ

आज़ादी के दौरान पंजाब के दो लोकप्रिय नेता सत्यपाल और डॉ. किचलू ने ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तारी के विरोध में 13 अप्रौल 1919 को इसी जगह एक सभा रखी थी। सभा में भारतीय लोगों को ब्रिटिश सरकार से बचाव और उनको देश से बाहर निकालने के भाषण के दौरान ही ब्रिटिष सेना चुपके से उस जगह पर आ पहुंची और तकरीबन 10 मिनट तक लगातार गोलियों की बारिश कर मासूमों की जान ली। परिसर के दिवारों पर आज भी ब्रिटिश सेना की गोलीबारी के निशान मौजूद हैं।

सिटि ऑफ वाल

मुगलों के हमले से बचाने के लिए महाराणा रंजित सिंह ने इसे बनवाया था। उस समय इसकी बनावट में 72 हज़ार रूपये खर्च हुए थे। 30 फीट ऊंची चारदिवारी के साथ इसमें 12 दरवाज़े हैं और हर दरवाज़े का अपना एक इतिहास है।

दिल के अमीर- खाने औऱ खिलाने के शौकिन

अमृतसर आएं तो कुल्फी का स्वाद चखना न भूलें। इसके अलावा कुंदन दा ढ़ाबा और भरवां दा ढ़ाबा काफी मशहूर है। पर्यटक और खान-पान के शौकिनों की भीड़ यहां खूब लगी रहती है। क्वींड़ रोड पर स्थित फ्रेंडस ढ़ाबा अंबकसारी खाने के लिए जाना जाता है। नमक मंडी स्थित राधू राम छोलेयां वाले के अमृतसरी कुल्चे का ज़ायका लेने के बाद आप खुद को तारीफ करने से रोक नहीं पाएंगे। मीठे में लाजवाब फिरनी की बात ही अलग है।

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