दुनिया का सबसे बड़ा युद्ध जिसमें धर्म के नाम पर लड़े थे 12 साल के पचास हजार योद्धा

हमारी दुनिया में कई धर्म और विचारधाराओं के लोग रहते हैं. लोग अपने-अपने धर्म के देवी-देवताओं की आराधना करते हैं. लेकिन विभिन्न धर्मों के लोगों में आपसी मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं. चंद रूढ़िवादी विचारधाराओं वाले लोगों की वजह से समय-समय पर बड़े-बड़े धर्मयुद्ध लड़े गए हैं. क्योंकि इंसान की फितरत शुरू से ही हिंसक मानी गई है.धर्मयुद्ध

तो आइये आज हम आपको ऐसे ही एक धर्मयुद्ध “क्रूसेड युद्ध” के बारे में बताते हैं, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा धर्मयुद्ध कहा जाता है. इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस युद्ध में 50 हजार ऐसे योद्धा लड़े थे जिनकी उम्र महज 12 साल या उससे भी कम थी. इन बालकों ने युद्धभूमि में अपने धर्म की रक्षा करते हुए खुशी-खुशी अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.

ये बात 1095 और 1291 ईसवी के बीच की है जब ईसाइयों ने अपनी पवित्र भूमि फिलिस्तीन और उसकी राजधानी यरुशलम में स्थित ईसा की समाधि पर अधिकार करने के लिए सात युद्ध लड़े. इन लड़ाइयों में लाखों लोगों का खून बहा. अपने खुनी मंजर के कारण ही इसे ‘क्रूसेड युद्ध’ के नाम से जाना जाता है.

यह है कहानी

साल 1212 में फ्रांस के स्तेफा नाम के एक किसान ईसा मसीह के परम भक्त थे. उनको एक सपना आया जिसमें भगवान यीशु ने उन्हें ईसा की समाधि पर अधिकार करने का हुक्म दिया.

उस वक्त कई युद्ध लड़े जा चुके थे. इस कारण लड़ाकों की भारी कमी थी. आखिरकार उन्होंने बालकों की सेना बनाकर मुसलमानों से यरूशलम को आजाद कराने की घोषणा की. जब लोगों ने ईसा के परम भक्त स्तेफा की यह बात सुनी तो राज्य में प्रचार किया गया कि यरूशलम को आजाद कराने के लिए बालकों की आवश्यकता है.

करीब 50 हजार बालक जिनकी उम्र 12 साल और उससे कम थी, वह धर्मयुद्ध के लिए तैयार किये गये. इन बालकों को सात जहाजों में भरकर युद्ध के लिए यरूशलम की तरफ रवाना किया गया. इनमें से दो तो समुद्र में ही डूब गये और बाकी ने इजरायल में मुस्लिमों से युद्ध लड़ा. इस युद्ध में बालकों ने टक्कर से लड़ाई लड़ी और मुस्लिमों की चूलें हिला दीं. लेकिन बड़े-बड़े लड़ाकों के आगे ये बालक छोटे पड़ गए और परिणाम इनके हक़ में नहीं गया.

कुछ भी हो लेकिन लेकिन जब तक ये दुनिया है तब तक धर्म के नाम पर हुई इस भयानक लड़ाई को अपने इस अनोखेपन के कारण याद रखा जाएगा.

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