जिसका कोई नहीं उसका ‘धनीराम’, लावारिस लाशों का मसीहा, पहुंचाता है बैकुंठ धाम  

धनीरामकानपुर। गंगा नदी में हर साल न जाने कितनी ही लावारिस लाशे फेंकी जाती हैं, इसको रोकने के लिए कानपुर के धनीराम ने बड़ा कदम उठाया। लाशों को उनके रीति रिवाज के हिसाब से क्रिया-कर्म करने का काम शुरू किया। लेकिन इस काम में उनकी मदद ना ही सरकार ने की और ना ही किसी गैर सरकारी संस्थान से उन्हें कोई सहायता मिली। जिससे धनीराम काफी निराश हैं।

मुश्‍किल है सफर लेकिन शुरू किया

आम तौर पर पुलिस विभाग को जब सडकों पर लावारिस लाशें मिलती थीं तो पुलिस उन लाशों को रिक्शे पर लादकर पोस्टमार्टम करने बाद रिक्शे वालों की मदद से उन्हें गंगा में फेंक देते थे।

धनीराम इन लाशों को अपनी आंखों से गंगा में फेंकते हुए देखते थे। उसके बाद साल 2009 में धनीराम बौद्ध ने लावारिस लाशों को उठाने का सिलसिला शुरू किया। धनीराम ने अब तक 5000 से ज्यादा लाशों का अंतिम संस्कार उनके रीति रिवाज के हिसाब से करवाया है। इस काम में कुछ लोगों ने लाशों को उठाने के लिए मदद की लेकिन इसे लेकर सरकारी विभाग पूरी तरीके से उदासिन रहा।

धनीराम के मुताबिक लावारिश लाशें जब 72 घंटे बाद हमें मिलती हैं तो वो काफी बुरी अवस्था में होती हैं। ऐसे में उनको ले जाने के लिए गाड़ी तो हमारे दामाद ने लगा दी है लेकिन उसकी डीजल का पैसा मुझे अपनी जेब से देना होता है। इतना ही नहीं विद्युत शवदाह गृह में लाश को जलाने के लिए इंतजार भी करना पड़ता है क्योंकि तभी वहां पर बिजली नहीं होती है और अगर होती है तो स्टाफ और लाशों का इंतजार करता है ताकि एक साथ सभी लाशें जलाई जा सकें।

धनीराम ने इन लावारिस लाशों के क्रिया-कर्म के लिए कई बार उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिख चुके हैं लेकिन सरकार ने ना ही उनकी कोई मदद नहीं की और ना ही किसी गैर सरकारी संस्थान ने, हां कई बार उत्तर प्रदेश के राज्यपालों ने 30000 रुपए से लेकर 50000 रुपए तक की आर्थिक मदद धनीराम को की लेकिन उससे कोई भला नहीं हुआ।

आपको बता दें कि आज भी घनीराम शहर के पूंजीपतियों के पास जाकर लावारिश लाशों के लिए चन्दा इकट्ठा करते हैं ताकि लाशों का क्रिया-कर्म ठीक से हो सके। कानपुर में लावारिस लाशें गंगा में यदि नहीं फेंकी जा रही हैं तो उसमे सबसे बड़ा योगदान धनीराम का और शहर की सड़को पर घूम रही गाड़ी जिसमें लिखा होता है “लावारिस लाशें पूछ रही हैं पता धनीराम का” का है।

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