देश के सिस्टम से परेशान दो लोग नहीं डालेंगे इस बार वोट ,जानें कौन हैं वो दोनों …

इलेक्शन का मौसम चल रहा है. हर तरफ़ बस एक ही नसीहत दी जा रही है कि जो भी हो, वोट ज़रूर दें. ये आपकी ड्यूटी है. पर दिल्ली शहर में दो लोग ऐसे हैं जो इस बार वोट नहीं डाल रहे. और ये बात वो डंके कि चोट पर कह रहे हैं.

ये हैं आशा देवी और बद्री नाथ सिंह. इन नामों ने अगर आप नहीं जानते हैं तो बता देते हैं ये कौन हैं. ये निर्भया के माता-पिता हैं. जिसके साथ 16 दिसंबर, 2012 में चलती बस में गैंग रेप हुआ था. उसे टार्चर किया गया था. फिर मरने के लिए सड़क पर छोड़ दिया गया था. बाद में सारे आरोपी पकड़ तो लिए गए, पर अभी तक उन्हें फांसी नहीं हुई है.

आशा देवी और बद्री नाथ सिंह अभी भी इंतज़ार कर रहे हैं कि आरोपियों को सज़ा कब होगी. थोड़ा-थोड़ा थकने लगे हैं. इसलिए इस बार उन्होंने फ़ैसला किया है कि वो वोट ही नहीं डालेंगे.

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वो कहते हैं:-

“हम थक गए हैं. हर पार्टी हमसे वादा करती है कि हमारी बेटी को इंसाफ मिलेगा. पर कोई कुछ नहीं करता. इन पार्टियों की हमदर्दी. उनके वादे. सब नकली हैं. वोट बटोरने का तरीका है और कुछ नहीं. देश की सड़के आज भी औरतों और बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं. सरकारें आईं. सरकारें गईं. पर सुरक्षा के नाम पर कुछ नहीं किया गया. औरतें और बच्चे अभी भी हैवानियत के शिकार होते हैं.”

 

आशा देवी का कहना है कि लोगों को अब सिस्टम पर कोई भरोसा नहीं रह गया है. सारी सरकारों ने उन्हें फेल किया है. इस बार वो किसी भी पार्टी को वोट नहीं देना चाहतीं. उनके पति बद्री नाथ सिंह भी कहते हैं कि कुछ नहीं बदला. उनका यकीन डगमगा चुका है. वो अब वोट डालने नहीं जाएंगे.

 

उन्होंने कहा:-

 

“सारी पार्टियां औरतों के सशक्तिकरण और हिफाज़त की बातें करती हैं. पर उनमें से किसी के पास भी इसके लिए कोई प्लान नहीं है. आखिर में हमारे पास बस तकलीफ़, संघर्ष, अकेली लड़ाई और बेबसी रह गई है. इलेक्शन के वक़्त सारी पार्टियां खोखले वादे करने पहुंच जाती हैं. वो अपने मतलब के लिए लोगों को गुमराह करती हैं. अपने किए सारे वादे भूल जाती हैं.”

बद्री नाथ सिंह का ये भी कहना है कि सरकार द्वारा बनाए गए निर्भया फण्ड का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है. ये साल 2013 में बनवाया गया था. इसका मकसद उन एनजीओ की आर्थिक मदद करना था जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए काम करते हैं.

 

आशा देवी और बद्री नाथ सिंह कहते हैं:-

 

“हालात अभी भी ख़राब हैं. कई जगहों पर स्ट्रीट लाइट अभी भी काम नहीं करतीं. सड़कों पर अंधेरा रहता है इसलिए लड़कियों और बच्चों को रात में बाहर निकलने में डर लगता है. वो सुरक्षित महसूस नहीं करते. ऑटो ड्राइवर अभी भी दूर जगहों पर जाने के लिए तैयार नहीं होते. मान भी जाते हैं तो बहुत पैसे मांगते हैं. कई सड़कों पर पुलिस भी पेट्रोलिंग नहीं करती.”

ऐसा सिर्फ़ निर्भया के माता-पिता नहीं सोचते. कई वोटरों की भी यही सोच है.

 

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