तो इसलिए कांग्रेस छोड़ हिंदुत्व की ओर चले गए आरएसएस संस्थापक…

नई दिल्ली। डॉ. हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। नागपुर में पढ़ाई के बीच एक दिन स्कूल में वंदेमातरम गाने की वजह से उन्हें निष्कासित कर दिया गया। उसके बाद उनके भाइयों ने उन्हें पढ़ने के लिए यवतमाल और फिर पुणे भेजा। ये बात 1910 की है।

आजादी की लड़ाई के दौरान हेडगेवार भी शुरुआती दिनों में कांग्रेस में शामिल हो गए। 1921 के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और एक साल जेल में बिताया। लेकिन, मिस्र के घटनाक्रम के बाद भारत में शुरू हुए धार्मिक-राजनीतिक खिलाफत आंदोलन के बाद उनका कांग्रेस से मन खिन्न हो गया। 1923 में सांप्रदायिक दंगों ने उन्हें पूरी तरह उग्र हिंदुत्व की ओर ढकेल दिया।

हेडगेवार हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी एस मुंजे के संपर्क में शुरू से थे। मुंजे के अलावा हेडगेवार के व्यक्तित्व पर बाल गंगाधर तिलक और विनायक दामोदर सावरकर का बड़ा प्रभाव था। हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करने के लिए 1925 में विजय दशमी के दिन डॉ. हेडगेवार ने संघ की नींव रखी। वह संघ के पहले सरसंघचालक बने।

हेडगेवार ने शुरू से ही संघ को सक्रिय राजनीति से दूर सिर्फ सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों तक सीमित रखा। हेडगेवार का मानना था कि संगठन का प्राथमिक काम हिंदुओं को एक धागे में पिरो कर एक ताकतवर समूह के तौर पर विकसित करना है। हर रोज सुबह लगने वाली शाखा में कुछ खास नियमों का पालन होता था।

हेडगेवार का हिंदुत्व के बारे में कहना था

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“कई सज्जन यह कहते हुए भी नहीं हिचकिचाते कि हिंदुस्तान केवल हिंदुओं का कैसे? यह तो उन सभी लोगों का है जो यहां बसते हैं। खेद है कि इस प्रकार का कथन/आक्षेप करने वाले सज्जनों को राष्ट्र शब्द का अर्थ ही ज्ञात नहीं. राष्ट्र केवल भूमि के किसी टुकड़े को नहीं कहते।

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