जज़्बा : वो लड़की जो बिना डरे दिल्ली की सड़कों पर देर रात चलाती है कैब !…

दिल्ली-नोएडा की सड़कों पर फर्राटे से लेकिन बेहद सधे हुए ढंग से चलती इस कैब में नया कुछ नहीं- सिवाय इसके कि ड्राइवर एक युवती है.रागिनी नाम की इक्कीस-साला ये युवती जब फीमेल टैक्सी ड्राइवर होने का मतलब बताती है तो आप जैसे नई दुनिया में पहुंच जाते हैं. इस दुनिया में डर है, खतरे हैं, तकलीफें हैं लेकिन साथ ही जज्बा है, इन सबसे पार पाने का.

 

गाड़ी में बैठते ही ज्यादातर सवारियां मेरा मुआयना करती हैं. छोटी, दुबली-पतली लड़की जो गाड़ी में खो-सी गई है. क्या ये गाड़ी चला सकेगी? चला लेगी तो क्या हमें सही-सलामत मंजिल तक पहुंचा सकेगी?

अक्सर ड्राइविंग सीट पर मुझे देखती सवारियों की आंखों में हैरत और डर दोनों होता है- रागिनी हंसते हुए बताती हैं.

ऐसा भी होता है कि बात करते-करते पीछे बैठी सवारी अचानक चुप हो जाती है. उन्हें लगता है कि बातचीत से ‘लड़की’ ड्राइवर का ध्यान भटक सकता है.

बुरा तो लगता है लेकिन अब उनके इसी डर को मैंने अपना प्रोटेक्शन बना लिया है. कई बार देर रात कई पुरुष सवारियां ज्यादा ही इंट्रेस्ट लेने लगती हैं, तब मैं बोलती हूं- सर, प्लीज बात न करें, मेरा ध्यान भटक रहा है. वे तुरंत एकदम चुप हो जाते हैं.

दिलदार दिल्ली का एक चेहरा और भी है जो बेहद हिंसक है, खासतौर पर अकेली लड़कियों के लिए. सुनसान-अनजान गली या शाम के धुंधलके में ये चेहरा एकदम से दबोच लेता है.

रागिनी शहर के इस चेहरे से अक्सर मिलती हैं. देर रात या सूनी दोपहर अनजान गलियों में अनजान चेहरे को बगल में बिठाकर गाड़ी चलाने के कई खतरे हैं लेकिन इन खतरों ने उन्हें कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत ही बनाया है.

वह याद करती हैं अपना पहला दिन. उसने पी रखी थी. सही लोकेशन नहीं बता रहा था, दाएं-बाएं घुमाए जा रहा था. मैं बार-बार कहती कि सर लोकेशन चेंज कर दीजिए. आपको कहां जाना है?

 

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लगभग ढाई घंटे बीत गए. देर रात का वक्त था. सड़कें एकदम सुनसान. डर लग रहा था लेकिन मैंने चेहरे को एकदम सपाट बनाए रखा और चुपचाप उसके बताए रास्ते पर चलती रही.

तभी एक PCR दिखी. मैंने तपाक से गाड़ी रोकी और राइड बंद कर दी. सवारी भड़क गई, पैसे देने में आनाकानी करने लगी लेकिन फिर PCR को देखकर उसे उतरना पड़ा.

ये वाकया हादसे में बदल सकता था अगर थोड़ी भी चूक होती.

लोग उत्सुकता में गाड़ी में बैठ तो जाते हैं लेकिन उन्हें हमारा लड़की होना डराता भी है. रागिनी बताती हैं. अक्सर सवारियों को फीमेल ड्राइवर पर यकीन नहीं होता.

वे बार-बार टोकती रहती हैं. गाड़ी के सामने या बगल में कोई गाड़ी आ आए तो चीखने लगती हैं. कभी गलती से गाड़ी छू जाए तो दूसरा कैब ड्राइवर भी हम पर भड़क जाता है.

चलाना नहीं आता तो गाड़ी लेकर सड़क पर क्यों निकलती हो. ये बात मैंने डेढ़ साल में शायद डेढ़ हजार बार और बिना गलती के भी सुनी है.

अमूमन लोग अपने पेशे वालों के साथ नरमी से पेश आते हैं लेकिन फीमेल ड्राइवर के साथ सख्त होते हैं. एक बार एक सवारी को एयरपोर्ट छोड़ने गई तो कई टैक्सीवालों ने मुझे घेर लिया.

सुनाने लगे कि यही एक रोजगार बचा था, तुम लड़कियों ने उसे भी हथिया लिया. 10 लड़कियां टैक्सी चलाएंगी तो 10 मर्दों को घर बैठना होगा. काफी बहस हुई. ऐसा आए-दिन होता है. मेरे ही नहीं, मेरी दूसरी साथियों के साथ भी.

एक तरफ सड़क के खतरे हैं तो दूसरी ओर लड़की होने के खतरे

रागिनी के जीवट के आगे ये खतरे मामूली लगते हैं, खासकर जब वह ड्राइविंग में अपने आने का किस्सा कहती हैं. साढ़े चार साल पहले एक कार एक्सिडेंट में मेरा दायां हाथ बुरी तरह से जख्मी हो गया. तब सबको लगा था कि मैं कार सीखने में जख्मी हो गई हूं.

मैंने असल बात बताई लेकिन तब तक सीखने में हुए एक्सिडेंट का किस्सा फैमिली में वायरल हो चुका था. ये किस्सा इतना सुना कि गाड़ी सीखने का इरादा कर लिया.

हालांकि कई दिक्कतें आईं. दाएं हाथ की दो ऊंगलियां काम नहीं करती हैं. तीन ऊंगलियों से गाड़ी संभालनी है. सीखने में पूरे 9 महीने लगे. साथ में सेल्फ डिफेंस सीखा.

मेल टैक्सी ड्राइवरों को सड़क देखनी होती है. हमें सड़क और साथ बैठी सवारी दोनों पर ध्यान देना पड़ता है.

टैक्सी चलाते हुए 12 से 14 घंटे सड़क पर बीतते हैं. वॉशरूम जाना होता है तब पेट्रोल पंप खोजना होता है. वहां पहुंचों तो सवारी से इजाजत लेनी होती है.

अक्सर सवारियां सीधे बोल देती हैं, आप पहले हमें ड्रॉप कर दीजिए, तब अपना काम निबटाइए. बताते हुए रागिनी की अमूमन खिलखिलाती आवाज में कोफ्त की झलक आती है.

थोड़ी हैरानी से ही वह शेयर करती हैं- फैमिली बैठी हो तब तो हम वॉशरूम ब्रेक कतई नहीं ले सकते. यहां तक कि औरतें भी मना कर देती हैं. तब हम उन्हें पहुंचाकर थोड़ी देर के लिए ऑफलाइन हो जाते हैं.

एक हादसे ने रागिनी की दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से दोस्ती करवा दी. पढ़ाई के दिनों में सहेली के घर जाने में रास्ता भूलती-भटकती रागिनी अब सवारियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती हैं.

कुछ सालों बाद खुद को कहां देखती हैं. दो बार दोहराए गए इस सवाल पर रागिनी अपनी मुलायम लेकिन मजबूत आवाज में कहती हैं- बस, इस टैक्सी की जगह खुद की गाड़ी हो.

 

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