ज्येष्ठ मंगल के दिन करें हनुमान जी का यह खास पाठ, हर समस्या से मिलेगी मुक्ति

हनुमान जी को संकटमोचन के नाम से यूँ हीं नहीं जाना जाता बल्कि हनुमान जी अपने सभी भक्तों को हर भय,डर व समस्यायों को दूर करने के लिए भी जाने जाते हैं। यदि हम बात करें पौणाणिक मान्याताओं की तो धरती पर केवल 7 ही मनुष्यों को अमरत्व प्राप्त है। उन महा मनुष्यों में से एक बजरंगबली जी भी हैं। हम हनुमान जी को उनकी दिव्य शक्तियों व असीम बल के लिए जानते हैं पर क्या आप यह भी जानते हैं कि हनुमान जी अपने सभी भक्तों पर कृपा बनाए रखते हैं। यदि आपको किसी भी प्रकार की समस्या व दुख है और आपकी कोई सुनने वाला नही है तो आप श्री हनुमान जी से अरदास कर सकते हैं। यकीनन वे आपकी समस्या को कुछ ही दिनों में दूर कर देंगे।

हनुमान जी को मनाने के लिए मंगलवार का दिन अच्छा माना जाता है। क्योंकि मंगलवार का दिन हनुमान जी को ही समर्पित है। आज मंगलवार का शुभ दिन है और यदि आप में से किसी को किसी भी प्रकार की समस्या है तो आप हनुमान जी से कह सकते हैं। आप हनुमान जी को मनाने के लिए अकसर हनुमान चालीसा व आरती करते हैं। पर क्या आपने कभी हनुमान अष्टक का पाठ किया है। यदि आप मंगलवार के दिन इस पाठ को सच्चे मन से करते हैं तो हनुमान जी आपके सभी दुखों को दुर कर आपको सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। तो आअए पढ़ते हैं चमतकारी हनुमान अष्टक पाठ।

हनुमान अष्टक पाठ:


बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों।

ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।

देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।

चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।

कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।

जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहां पगु धारो।

हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो।

ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो।

चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सूत रावन मारो।

लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।

आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।

श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।

आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।

देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र विचारो।

जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

काज किए बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।

कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो।

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

।। दोहा। ।

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।

वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।


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