जानिए लोकसभा चुनाव में किस तरफ जाएंगे पूर्वांचल के मुस्लिम…

नई दिल्ली : सियासत के इसी रंग को समझने के लिये हमने रुख़ किया उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की इन मुस्लिम बस्तियों का हैं। यहां के रहने वाले 2019 के आम चुनाव के आख़िरी तीन चरणों में अपना वोट डालने जा रहे हैं।

 

मुस्लिम

 

लेकिन क्या इन मुस्लिम मतदाताओं का वोट उनके मर्ज़ी के उम्मीदवार को संसद भेज पाएगा? क्या इन मतदाताओं के वोट के अधिकार में इतनी ताक़त है, जो इनकी मांगों को पूरा करवा सके? और क्या है इनकी मांगें? कुछ इन्हीं सवालों के साथ हमने पूर्वांचल के मुस्लिम मतदाताओं से बातचीत की हैं।

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बता दें की पूर्वांचल में लोकसभा की 29 सीटे हैं। जहां जिनमें अमेठी, फ़ैज़ाबाद, सुल्तानपुर, गोंडा, कैसरगंज, श्रावस्ती, बहराइच, इलाहाबाद, फूलपुर, प्रतापगढ़, मछलीशहर, जौनपुर, अंबेडकर नगर, बस्ती, डोमरियागंज, मिर्ज़ापुर, वाराणसी, चंदौली, बलिया, ग़ाज़ीपुर, सलेमपुर, घोसी, आज़मगढ़, बांसगांव, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, लालगंज और संत कबीर नगर शामिल हैं।

साल 2014 के आम चुनाव में पूर्वांचल की 29 सीटों में 27 बीजेपी के खाते में गईं. दो सीटों में अमेठी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जीते तो आज़मगढ़ से समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने जीत दर्ज की हैं।

जहां जंग इस बार भी पूर्वांचल में दिलचस्प है। यहां की चार सीटों पर देश भर की ख़ास निगाह रहेगी।लेकिन वाराणसी से ख़ुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उम्मीदवार हैं। अमेठी से राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं और आज़मगढ़ से समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव मैदान में हैं।

देखा जाये तो इन तीन सीटों के अलावा गोरखपुर की सीट भी नज़रों में इसलिये भी होगी क्योंकि ये सीट 1991 से बीजेपी के पास रही है।  लगातार 6 बार ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां से चुनाव जीतते आए हैं।

लेकिन उनके मुख्यमंत्री पद संभालते ही ये सीट साल 2018 के उपचुनाव में बीजेपी के हाथ से निकल कर समाजवादी पार्टी के खाते में चली गई। अब देखना ये है कि बीजेपी गोरखपुर सीट फिर हासिल कर पाती है या नहीं हैं या योगी आदित्यनाथ ब्रैंड की राजनीति को इस बार फिर हार का मुंह देखना पड़ेगा।

दरअसल योगी आदित्यनाथ अल्पसंख्यकों को लेकर किये गए अपने कमेंट्स के लिये भी विवादों में रहे हैं। उनकी ध्रुवीकरण की राजनीति बीजेपी के नारे सबका साथ सबका विकास को महज़ एक जुमले में तब्दील करती नज़र आती है।

जहां इससे लोकतंत्र में जश्न माना जाने वाला चुनाव. जंग सी तल्खियों में बदल जाता है। जहां सच इस चुनाव में भी योगी आदित्यनाथ के एक मुस्लिम उम्मीदवार को बाबर की औलाद पुकराने पर चुनाव आयोग ने जवाब तलब किया है,  और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। वहीं ऐसा है कि क्या पूर्वांचल के मुस्लिम मतदाता सबका साथ सबका विकास में क्या ख़ुद को भी साथ पाते हैं।

सच तो ये है कि ध्रुवीकरण की राजनीति ने समाज को बांट के रख दिया है. वो भी अलग अलग वोट बैंक की सूरत में. देश की सियासत का ये वो पहलू है, जो सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों को कहीं किनारे कर देता है। और चुनाव मुद्दों नहीं जातीय समीकरण पर जीतने की कोशिश होती है। जहां पूर्वांचल में मुस्लिम मतदाताओं के लिये भी मुद्दा बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा और कृषि संकट है। वहीं साथ ही बनारस से लेकर भदोही ,  मऊ से लेकर आज़मगढ़, मिर्ज़ापुर, चंदौली तक बहुत बड़ी तादाद में मुस्लिम बुनकर हैं।

 

जहां  इनके आर्थिक हालात दिन ब दिन ख़स्ता होते जा रहे हैं। ख़ास तौर से नोटबंदी के बाद हैं। लेकिन राजनीति की कसौटी पर बंटते समाज में मुस्लिम मतदाता का वोट आर्थिक सुरक्षा से ज़्यादा अपनी ख़ुद की सुरक्षा के लिये जाता है।

 

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