जानिए रेलवे में PPP मॉडल पर सरकार का नया प्‍लान , क्या हैं इसमें खास…

बीते शुक्रवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारणम ने वित्त वर्ष 2019-19 का आम बजट पेश किया. इस बजट में रेलवे में पीपीपी (निजी-सार्वजनिक साझेदारी) मॉडल अपनाने पर जोर दिया गया है.

 

 

बतादें की सरकार की ओर से इस मॉडल को अपनाने के पीछे तर्क दिया गया है कि रेलवे को 2018 से 2030 तक 50 लाख करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत है.  पिछली कमाई को देखते हुए इतनी बड़ी रकम खर्च कर पाना सरकार के लिए अकेले संभव नहीं है. ऐसे में इस लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए पीपीपी मॉडल को अपनाने की जरूरत है. हालांकि इस मॉडल को अपनाने के साथ कई चुनौतियां भी सामने आ जाएंगी.

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जहां वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में बताया कि ट्रैक और रॉलिंग स्टॉक्स यानी रेल इंजन, कोच और वैगन निर्माण कार्य में तेजी से विकास लाने के लिए पीपीपी मॉडल अपनाने का प्रस्ताव लाया गया है. इसके अलावा यात्री माल सेवाएं संचालित करने में भी तेजी लाने के लिए इस मॉडल की जरूरत है. इसका फायदा यह होगा कि केवल पैसा ही नहीं, तकनीक भी रेलवे को मिलेगी.

लेकिन रेलमंत्री पीयूष गोयल ने भारतीय रेल के निजीकरण की खबरों से इनकार कर दिया है. रेल मंत्री का कहना है कि रेलवे में निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करने को लेकर सरकार खुले दिमाग से विचार कर रही है, लेकिन भारतीय रेल का निजीकरण नहीं किया जाएगा.  गोयल ने कहा, “हम भारतीय रेल का विकास चाहते हैं. कुछ क्षेत्र हो सकते हैं जहां निजी क्षेत्र अपनी लाइन बिछा सकता है.

देखा जाए तो हमें कोई समस्या नहीं होगी. वे हमसे लाइसेंस ले सकते हैं. इससे रेलवे अपना रेवेन्‍यू बढ़ाने में सक्षम होगी. अगर रेवेन्‍यू बढ़ेगा तो यह अपने यात्रियों को बेहतर सुविधा प्रदान करने में समर्थ होगी.”

दरअसल जानकारों की मानें तो भारत में पीपीपी प्रोजेक्‍ट्स के वि‍फल होने के पीछे दोषपूर्ण रि‍स्‍क शेयरिंग, अयोग्‍य बि‍जनेस मॉडल और वि‍त्‍तीय अस्‍थि‍रता है. इस वजह से प्राइवेट कंपनि‍यां कॉन्‍ट्रैक्‍ट हासि‍ल करने के बाद नि‍वेश बाहर नि‍काल देती हैं. ऐसे में सरकार के सामने एक ऐसे बिजनेस मॉडल को देने की चुनौती है जिसके जरिए प्राइवेट पार्टी की प्रॉफिट के साथ रेलवे की शर्तें भी कायम रह सकें.

 

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