जानिए भारत समेत दुनिया भर में बढ़ रही हैं पानी की समस्या

नई दिल्ली : धरती पर तेजी से बढ़ रहे पेयजल संकट को दूर करने के लिए कई परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। फिर भी यह समस्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। भूगर्भ जल के अत्याधिक दोहन ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। इस समस्या के गंभीरता का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि भाजपा के घोषणापत्र को जारी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि पीने के पानी की कमी को दूर करने के लिए अलग जल शक्ति मंत्रालय बनाया जाएगा। जिसमें नल से जल को घर घर पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी। वहीं उन्होंने यह भी कहा कि पानी के लिए सरकार मिशन मोड में काम करेगी।

नल

बता दें की धरती पर पानी का सबसे बड़ा स्रोत समुद्र है हालांकि इसका पानी खारा होने के कारण सीधे पीने के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता। इसलिए दुनिया के 120 देश समुद्र के पानी से डीसेलीनेशन प्रक्रिया के द्वारा पेयजल संकट को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए इन देशों में 17 हजार डीसेलीनेशन प्लांट लगाए गए हैं।

 

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विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2050 तक भारत और चीन पेयजल की भयानक संकट का सामना करेंगे। तब समुद्र का यह खारा पानी लोगों के लिए वरदान साबित होगा। इसके तहत जल शोधन का ऐसा तरीका तैयार किया गया है, जिससे आर्सेनिक और यूरेनियम युक्त पानी को भी पीने लायक बनाया जा सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2030 तक दुनिया के लगभग 4 अरब लोग पेयजल में तब्दील होने वाले इस समुद्री पानी का प्रयोग करने लगेंगे।

जहां भारत में पहला डीसेलीनेशन प्लांट तमिलनाडु में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर द्वारा स्थापित किया गया था। लेकिन बिजली की कमी और इससे निकलने वाला नमक मशीन की क्षमता को प्रभावित करता था। इसके बाद आईआईटी मद्रास ने कन्याकुमारी में एक सोलर डीसेलीनेशन प्लांट तैयार किया, जिसके पेयजल को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता भी दे दी है।

दुनिया के 120 देशों में 17000 से ज्यादा लगे डीसेलीनेशन प्लांट से लगभग 6.6 करोड़ क्यूबिक मीटर से ज्यादा साफ पानी तैयार किया जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस साफ पानी का दो तिहाई हिस्सा घरेलू कामों में प्रयोग किया जा रहा है, जबकि 30 फीसदी उद्योगों और 3 फीसदी सिंचाई में प्रयोग किया जा रहा है।

दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी भूगर्भ जल का वितरण सभी जगह समान नहीं है। देश के पठारी भाग हमेशा से भूगर्भ जल के मामले में कमजोर रहे हैं। उत्तर भारत के मैदान हमेशा से भूगर्भ जल के मामले में संपन्न रहे हैं लेकिन सिंचाई हेतु तेजी से दोहन के कारण इनमें अभूतपूर्व कमी दर्ज की गई है। भारत में भूगर्भ जल की स्थिति पर चिंता जाहिर की जा रही है। जिस तरह भारत में इसका का दोहन हो रहा है इससे भविष्य में स्थितियां खतरनाक होने का अनुमान जताया जा रहा है।

खबरों के मुताबिक देश का करीब 50 फीसदी हिस्सा सूखे की चपेट में आने वाला है। एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 400 करोड़ लोगों को स्वच्छ पानी नहीं मिल रहा है जिसमें 25 फीसदी भारतीय भी शामिल हैं। एक रिपोर्ट में भारत को चेतावनी दी गई है कि यदि भूजल का दोहन नहीं रूका तो देश को बड़े जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। 75 फीसदी घरों में पीने के साफ पानी की पहुंच ही नहीं है। केंद्रीय भूगर्भ जल बोर्ड द्वारा तय मात्रा की तुलना में भूमिगत पानी का 70 फीसदी ज्यादा उपयोग हो रहा है।

दरअसल वर्तमान समय में देश के 29 फीसदी विकास खण्ड या तो भूगर्भ जल के दयनीय स्तर पर हैं या चिंतनीय हैं और कुछ आंकड़ों के अनुसार 2015 तक लगभग 60 फीसदी ब्लाक चिंतनीय स्थिति में आ जायेंगे।भारत में 40 करोड़ लोग तटीय क्षेत्रों में रहते हैं। समुद्र के किनारे रहने के कारण इन्हें पीने के लिए शुद्ध जल नहीं मिल पा रहा है। अनुमान जताया जा रहा है कि इस तकनीकी के प्रयोग से इन्हें शुद्ध जल मिल सकेगा।

 

 

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