जानिए पर्यावरण पर भारत को नसीहत देना चाहते हैं ट्रम्प ,कही बड़ी बात…

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर से जलवायु के मुद्दे पर भारत और चीन की आलोचना की है. ट्रम्प ने कहा कि भारत, चीन और रूस में शुद्ध हवा और पानी तक नहीं है और ये देश विश्व के पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं.

ट्रूम

लेकिन पर्यावरण पर भारत को नसीहत देने वाले ट्रम्प का इस मामले में खुद अतीत दागदार है. उन्होंने कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिनसे पर्यावरण बचाने के अभियानों को नुकसान पहुंचा है.

Video : तिलक समारोह से लौट रहे लोगों के साथ हुआ कुछ ऐसा…

दूसरी तरफ, भारत ने हमेशा यह कहा है कि वह काबर्न उत्सर्जन पर अपने लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्ध है. भारत का आग्रह यह है कि विकसित देश ही तापमानवर्धक गैसों के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार रहे हैं, इसलिए उनके दुष्प्रभावों से लड़ने में उन्हें ही सबसे ज्यादा जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी.

जहां पेरिस में जलवायु पर हुए समझौते के दौरान भारत का यह आग्रह मान लिया गया कि विकसित देश ही तापमान बढ़ाने वाली गैसों के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार रहे हैं, इसलिए उनके दुष्प्रभावों से लड़ने में उन्हें ही सबसे ज्यादा जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी.

1. पेरिस समझौते से पीछे हटना –

अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रम्प ने जून 2017 में अमेरिका के 196 पक्षों वाले पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने की घोषणा कर दी. ट्रम्प ने 2016 में राष्‍ट्रपति चुनाव के प्रचार के दौरान इसकी घोषणा की थी. इस फैसले के साथ अमेरिका ग्लोबल वार्मिंग से मुकाबले में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों से अलग हो गया. इससे पर्यावरण संरक्षण के वैश्विक प्रयासों को झटका लगा और इसकी बड़े पैमाने पर आलोचना हुई.

2. क्लीन पावर पर ओबामा की नीति को वापस लिया –

क्लीन पावर प्लान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की एक प्रमुख योजना थी. इसके तहत एनर्जी सेक्टर को साल 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 32 फीसदी की कटौती करनी थी. लेकिन अक्टूबर 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने इसे वापस ले लिया. कहा गया कि इससे पावर सेक्टर पर बेवजह बोझ पड़ रहा है.

3. विषाक्त वायु प्रदूषण पर नियमों में ढील –

अमेरिका में प्रदूषण को लेकर एक नियम था- वन्स इन, ऑलवेज इन यानी ओआईएआई. इसमें कहा गया था कि यदि कोई कंपनी कानूनी रूप से मान्य सीमा से ज्यादा वायु प्रदूषण करती है तो उसे अपने समकक्ष उद्योग में सबसे कम प्रदूषण करने वाले कंपनी की बराबरी करनी होगी. यह एक तरह से कंपनियों को दंडित करने के लिए नियम था. लेकिन OIAI नियम में बदलाव कर इसे लचीला बना दिया गया.

गौरतलब है कि दो दशक से भी ज्यादा वक्त तक चली जद्दोजहद के बाद पेरिस में दुनिया के देशों में एकराय बनी और जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए सबकी जिम्मेदारी तय की गई.

वहीं सभी देशों ने माना कि औसत वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को किसी भी हालत में दो डिग्री सेल्सियस से आगे नहीं जाने देना है. बल्कि कोशिश करनी है कि यह आंकड़ा 1.5 डिग्री तक ही रहे. इसके लिए तापमान को बढ़ाने वाली ग्रीनहाउस और दूसरी गैसों के उत्सर्जन में कटौती संबंधी खाका तैयार किया गया.

भारत का साफ है रुख –

दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस सम्मेलन की शुरुआत में अपने भाषण में ही कह दिया था कि ‘जलवायु से जुड़े न्याय का तकाज़ा है कि कार्बन उत्सर्जन के लिए अब जो थोड़ी-सी जगह रह गई है, उसमें विकासशील देशों को अपने विकास की पर्याप्त गुंजाइश मिले.’ इस वजह से ही पेरिस सम्मेलन की वार्ताओं के दौरान भारत ने अपना रुख पर्याप्त रूप से कड़ा रखा.

लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि विकसित देश आर्थिक सहायता और आधुनिक तकनीक देने में जितनी उदारता का परिचय देंगे, वह भी तापमानवर्धक गैसों के उत्सर्जन में कटौती के प्रश्न पर उतनी ही दूर तक जाने के लिए तैयार रहेगा.

भारत अपनी विशाल जनसंख्या के कारण दुनिया में कार्बन डाईऑक्साइड का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक भले ही बन गया है, लेकिन उसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन (1.9 टन प्रतिवर्ष) अमेरिका के दसवें हिस्से के बराबर ही है.

जहां बिजली की प्रति व्यक्ति खपत 1000 इकाई के बराबर है, जबकि अमेरिका में वह 13000 इकाई के बराबर. भारत ने पेरिस सम्मेलन को दी गई अपनी स्वैच्छिक कटौती घोषणा में कहा है कि वह 2030 तक अपनी 40 प्रतिशत बिजली गैर बायो-फ्यूल स्रोतों से पैदा करेगा.

 

LIVE TV