जानिए कैसे ठगे गए सोनभद्र के लोग, भष्ट्राचार ने कैसी निगल लीं मासूम लोगों की खुशियाँ

सोनभद्र की घटना से जहाँ पूरा देश अभी तक सहमा हुआ है वहीँ दूसरी तरफ इसके लिए जिम्मेदार नौकरशाही खुद का दामन साफ़ करने में जुटी है. भूमाफिया और नौकरशाही ने लोगों की खुशियों को कब निगल लिया किसी को पता ही नहीं चला.

लेकिन जब अचानक इतना बड़ा नरसंघार हुआ तो पूरा देश न्याय की गुहार लगाने लगा. लेकिन किसी ने इसके पीछे की असल वजह पर गौर करना जरुरी नहीं समझा. आखिर क्यों किसी की मौत के बाद ही लोगों को सारे भ्रष्टाचार क्यों दिखाई देते हैं.

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सोनभद्र की घोरावल तहसील में बुधवार को हुआ नरसंहार नौकरशाहों और भूमाफिया की मिलीभगत से आदिवासियों की जमीन हड़पने के तिकड़मों का नतीजा है.

मामला जमीन हपड़ने से जुड़ा है जहां स्थानीय माफिया के कहने पर आईएसएस अधिकारी ने 600 बीघा जमीन के राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी कर दी थी. इस जमीन की कीमत 48 करोड़ रुपये से अधिक है.

उत्तर प्रदेश के इस आदिवासी इलाके में राजस्व अधिकारियों द्वारा की गई धोखाधड़ी की पड़ताल करने पर पता चला कि हाल के दिनों में सोनभद्र भ्रष्ट नौकरशाहों, राजनेताओं और माफिया डॉन का अड्डा बन गया है जो औने-पौने दाम में जमीन खरीदते हैं.

तहसील के उम्भा गांव में जहां बुधवार को नरसंहार की वारदात हुई वहां से महज कुछ सौ गज की दूरी पर स्थित विशंब्री गांव में 600 बीघे का बड़ा भूखंड उत्तर प्रदेश सरकार के चकबंदी विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने हड़प लिया.

सोनभद्र स्थित जिला अदालत में वकालत करने वाले जानेमाने वकील विकाश शाक्य ने बताया, “आदिवासी मेरे पास आए और उन्होंने मुझे इस रैकेट से निजात दिलाने के लिए मुकदमा दर्ज करने को कहा.

अदालत के निर्देश पर की गई जांच में खुलासा हुआ कि चकबंदी अधिकारियों ने राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी की थी जहां जमीन का मालिक मृत व्यक्ति को बताया गया था.

जमीन के असली मालिक को अदालत में पेश करने पर साजिश की पोल खुल गई और उसके बाद चकबंदी विभाग के 27 अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई.”

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शाक्य ने जमीन की धोखाधड़ी के एक और मामले का जिक्र किया जिसमें राजमार्ग (अल्ट्राटेक सीमेंट फैक्टरी के समीप) स्थित 14 बीघा जमीन के रिकॉर्ड में कानूनगो ने हेराफेरी की है. शाक्य ने सोनभद्र से फोन पर आईएएनएस से बातचीत में कहा, “कानूनगो ने राजस्व रिकॉर्ड में छेड़छाड़ करके जमीन का पंजीकरण (विगत तारीख में) अपने दो बेटों के नाम कर लिया, जबकि पंजीकरण के समय उनके ये दोनों बेटे पैदा भी नहीं हुए थे.” विडंबना है कि जिन अधिकारियों को आदिवासियों के पक्ष में वन अधिकार अधिनियम और सर्वेक्षण निपटान पर अमल करने की जिम्मेदारी थी वे वर्षो तक गरीब किसानों को धोखा देते रहे.

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