जल्लीकट्टू की परम्परा जारी रखने के लिए राज्य भर में विरोध प्रदर्शन

जल्लीकट्टू खेलनई दिल्ली। पोंगल के त्योहार पर तमिलनाडु में सैकडों सालों से जल्लीकट्टू खेल की परंपरा चली आ रही है। लेकिन इन दिनों इस खेल पर लगी पाबंदी को लेकर राज्यभर में विरोध प्रदर्शन जारी है। प्रदर्शन कर रहे लोगों की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस सैकडों साल पुरानी परंपरा पर लगाए हुए प्रतिबंध को वापस लिया जाना चाहिए।

जल्लीकट्टू खेल से सर्वश्रेष्ठ सांड का चुनाव होता है ताकि गौवंश की उन्नत प्रजाति विकसित होती रहे। उसे कोविल कालाई यानी मंदिर का सांड कहते हैं जिसका भरण पोषण मंदिर के संसाधनों से किया जाता है।

जल्लीकट्टू खेल की शुरूआत में सबसे पहले कोविल कालाई को छोड़ा जाता है, जिसे रोकने के बजाय लोग हाथ जोड़कर उसे नमस्कार करते हैं। इसके बाद ही दूसरे सांड छोड़े जाते हैं और इन्हीं में से अगले कोविल कालाई का चुनाव किया जाता है।

जल्लीकट्टू में सांड के सींग पर कपड़ा बांधा जाता है। जो खिलाड़ी सांड के सींग पर बांधे हुए इस कपड़े को निकाल लेता है उसे ईनाम में पैसे मिलते हैं।

पशुओं के अधिकारों की रक्षा करने का काम करनेवाली संस्थाओं ने इस खेल को जानवरों के लिए हानिकारक बताया था। जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में पशुओं के अधिकार को देखते हुए जल्लीकट्टू पर रोक लगा दी थी। वहीं तमिलनाडु की जनता के साथ राज्य की कई बड़ी हस्तिया भी अपनी संस्कृति का अहम हिस्सा बताते हुए इस प्रतिबंध को वापस लेने की लगातार मांग कर रही है।

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