नहीं लगा कोई फंसने वाले पेंच, गुजरात दंगों के भेड़िये आजाद

गुजरात दंगोंनई दिल्‍ली। गुजरात दंगों में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों पर गोधरा में ट्रेन को आग लगाने के एक दिन बाद कलोल तालुका के पलियाड गांव में दंगे फैलाने, आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगे इन लोगों को छोड़ दिया गया है। इसकी बड़ी वजह यह है कि इनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।

कोर्ट ने 31 जनवरी को आदेश देकर कहा था कि इस मामले में आरोपी और पीड़ित के बीच समझौता हो चुका है और 28 फरवरी 2002 को हुई हिंसा को लेकर कोर्ट के सामने पर्याप्त सबूत पेश नहीं किए जा सके। इस आदेश में यह भी कहा गया कि अपराध के दृश्य में पंचनामा साबित नहीं हो रहा है।

गुजरात दंगे के आरोपी आजाद

गुजरात के गांधीनगर जिले के कलोल की एक जिला अदालत ने 2002 गोधरा दंगों के बाद हुई हिंसा के 26 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। मुस्लिम समुदाय के इन लोगों पर गोधरा में ट्रेन को आग लगाने के एक दिन बाद कलोल तालुका के पलियाड गांव में दंगे फैलाने, आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगा था।

इस हिंसा में 5 लाख की संपत्ति को नुकसान पहुंचा था। बरी किए गए लोगों में ज्यादातर पलियाड गांव के और बाकी तीन अहमदाबाद के रहने वाले हैं। अडिशनल सेशन जज बीडी पटेल के आदेश के मुताबिक शकीलाबेन अजमेरी, अब्बासमियां अजमेरी, नजुमियां सैयद जैसे गवाह भी कोर्ट में पलट गए और 500 लोगों की भीड़ में से लोगों को पहचानने से इनकार कर दिया।

इन गवाहों ने कोर्ट को बताया कि पुलिस ने खुद ही आरोपियों के नाम लिख लिए और गांव के नेताओं की मौजूदगी में समझौता हो गया। इससे पहले डिफेंस लॉयर ने कहा था कि पुलिस ने कई आरोपियों को गवाह के तौर पर पेश किया।

कोर्ट ने वकील की इस बात से सहमत होते हुए कहा कि इस मामले में जांच ठीक तरह से नहीं की गई और यह बात जांच कर रहे अधिकारी ने भी मानी है। कोर्ट ने कहा कि गवाह भी अपनी बात से मुकर गए, जबकि स्वतंत्र गवाह ने भी अभियोजन पक्ष की शिकायत का समर्थन नहीं किया।

कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच कर रहे अफसर और गवाहों की मौत हो चुकी है। कई गवाह पलियाड गांव छोड़ चुके हैं। इसलिए सभी दस्तावेजों में रखते हुए यह साबित हुआ है कि दोनों पक्षों में समझौता हुआ है क्योंकि यहां पर्याप्त सबूतों की कमी है।

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