गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल ये ‘शापित’ होटल जो आजतक नहीं बन पाया पूरा

दुनिया में ऐसी कई ईमारते हैं, बहुत ही पुरानी और रहस्यमयी जिनके बारे में आजतक कोई पूरी तरह नहीं जान पाया है.  उत्तर कोरिया तो वैसे अपने अजीबोगरीब कानूनों और मिसाइलों के परीक्षण के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है, लेकिन आज हम बात कर रहें हैं यहां के एक होटल  के बारे में जो माना जाता है शापित. यहां की राजधानी प्योंगयोंग में पिरामिड जैसे आकार और नुकीले सिरे वाली एक गगनचुंबी इमारत, जो एक होटल है. वैसे तो इस होटल का आधिकारिक नाम रयुगयोंग है, लेकिन इसे यू-क्यूंग के नाम से भी जाना जाता है.

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इस होटल की उचाई 330 मीटर हैं और कुल 105 कमरे हैं, लेकिन आज तक कोई भी व्यक्ति यहां ठहरा नहीं सका है. बाहर से बेहद ही शानदार, लेकिन वीरान से दिखने वाले इस होटल को ‘शापित होटल’ या ‘भुतहा होटल’ के नाम से भी जाना जाता है. इसे ‘105 बिल्डिंग’ के नाम से भी जाना जाता है. कुछ साल पहले अमेरिकी मैगजीन ईस्क्वाइयर ने इस होटल को ‘मानव इतिहास की सबसे खराब इमारत’ करार दिया था. इस होटल के निर्माण में बहुत पैसे खर्च भी हुए हैं. मीडिया के अनुसार, उत्तर कोरिया ने इसके निर्माण पर कुल 750 मिलियन डॉलर यानी करीब 47 अरब रुपये खर्च किए थे. यह रकम उत्तर कोरिया की जीडीपी की दो फीसदी थी. लेकिन फिर भी आज तक यह होटल शुरू नहीं हो पाया.

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वैसे तो इस होटल को दुनिया के सबसे ऊंचे होटल के रूप में बनाया जा रहा था, लेकिन अब इसकी एक अलग ही पहचान बन गई है. दुनिया इसे ‘धरती की सबसे ऊंची वीरान इमारत’ के तौर पर जानने लगी है. इस खासियत की वजह से इसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया है.

 

कहते हैं कि अगर यह होटल तय वक्त पर पूरी तरह से बन गया होता तो यह दुनिया की सातवीं सबसे ऊंची इमारत और सबसे ऊंचे होटल के तौर पर जाना जाता. इस इमारत का निर्माण कार्य साल 1987 में शुरू हुआ था. रिपोर्ट के मुताबिक, तब यह उम्मीद जताई गई थी कि यह होटल दो साल में बनकर तैयार हो जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. कभी इसे बनाने के तरीके के साथ दिक्कत हुई तो कभी निर्माण सामग्री के साथ समस्या आ गई.

 

इसके बाद साल 1992 में आखिरकार इस होटल के निर्माण कार्य को रोकना पड़ा, क्योंकि उस वक्त उत्तर कोरिया आर्थिक रूप से काफी कमजोर हो गया था. हालांकि साल 2008 में इसे बनाने का काम फिर से शुरू हुआ. पहले तो इस विशालकाय होटल को व्यवस्थित करने में ही करीब 11 अरब रुपये खर्च हो गए। इसके बाद फिर निर्माण कार्य शुरू हुआ। पूरी इमारत में शीशे के पैनल लगाए गए और बाकी के छोटे-मोटे काम कराए गए।

 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2012 में उत्तर कोरिया के प्रशासन ने ये एलान किया था कि होटल का काम 2012 तक पूरा हो जाएगा, लेकिन यह हो नहीं पाया.

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