क्या अखिलेश-शिवपाल फिर से आयेंगे साथ ?

उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक लगातार तीसरे चुनाव में समाजवादी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. नरेंद्र मोदी की लहर में सपा का सियासी किला पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है.

जबकि इस बार के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव मायावती के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरे थे फिर भी पार्टी को जीत नहीं दिला सके.

वहीं, अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव सपा से बगावत कर अलग पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन वो अपनी जमानत भी नहीं बचा सके.

सपा की करारी हार पर पिछले तीन दिनों से लगातार मंथन हो रहा है. ऐसे में सवाल है कि अखिलेश और शिवपाल सब कुछ लुटाकर क्या फिर साथ आएंगे?

यूपी में 90 के दशक में मुलायम सिंह यादव ने जिस सपा की नींव रखी थी, सूबे में आज उस पार्टी की सियासी जमीन पूरी तरह से खिसक चुकी है. सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव अपनी पार्टी की करारी हार नहीं रोक सके.

इस हार के बाद सपा में मंथन का दौर शुरू हो गया है. पिछले तीन दिनों से मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच लगातार बैठक चल रही हैं.

 

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मुलायम-अखिलेश में मंथन

मोदी लहर में सपा की खिसकी सियासी जमीन को दोबारा से वापस लाने की रणनीति पर अखिलेश के साथ मुलायम लगातार मंथन कर रहे हैं. ऐसा माना जा रहा है कि संगठन में बड़े स्तर पर बदलाव किया जा सकता है.

साथ ही इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि अखिलेश यादव दोबारा से पार्टी को मजूबती प्रदान करने के लिए साइड लाइन चल रहे जमीनी नेताओं को तवज्जों देंगे. इसके अलावा सपा छोड़ चुके पार्टी के दिग्गज नेताओं की दोबारा पार्टी में एंट्री भी कराई जा सकती है.

 

क्या शिवपाल की होगी वापसी?

वहीं, दूसरी ओर अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी छोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाई. वे फिरोजाबाद से चुनाव लड़े लेकिन, शिवपाल का गढ़ कही जाने वाली इस सीट पर एक लाख वोट भी हासिल नहीं कर पाए और उनकी जमानत जब्त हो गई.

इसके अलावा शिवपाल यादव ने सूबे की जिन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, उनमें से एक भी प्रत्याशी एक लाख वोटों का आंकड़ा नहीं छू पाया. इस तरह से शिवपाल के राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े होने लगे.

शिवपाल यादव के करीबी सूत्रों की मानें तो वो सपा में वापसी के लिए तैयार हैं. इसके लिए मुलायम सिंह यादव ने उनके पक्ष में बैटिंग शुरू कर दी है. हालांकि, कन्नौज में डिंपल यादव की हार के पीछे  शिवपाल यादव को जिम्मेदार बताया जा रहा है. इसके लिए अखिलेश यादव को कुछ ऑडियो भी सुनाए गए हैं.

हालांकि, ये बात अलग है कि कन्नौज ही नहीं बल्कि सूबे में सपा का पूरी तरह से सफाया हो गया है. बसपा से गठबंधन होने के बाद भी सपा अपनी परंपरागत सीट कन्नौज, बदायूं और फिरोजाबाद गंवा बैठी.

सपा को 2014 की तरह इस बार भी पांच सीटें ही मिली हैं, लेकिन यह सीटें मैनपुरी, आजमगढ़, रामपुर, मुरादाबाद और संभल हैं. इनमें दो पर अखिलेश और मुलायम सिंह ने जीत दर्ज की है, जबकि तीन मुस्लिम सांसद जीतने में कामयाब रहे हैं.

सूत्रों की मानें तो शिवपाल की सपा में एट्री के लिए फिलहाल अखिलेश यादव तैयार नहीं हैं. ऐसे में मुलायम सिंह ने तर्क दिया है कि शिवपाल यादव संगठन के आदमी हैं और पार्टी को दोबारा खड़ा करने में अहम रोल अदा कर सकते हैं. अब देखना होगा कि शिवपाल और अखिलश क्या सारे गिले शिकवे भुलाकर एक साथ आएंगे.

 

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