गुरुद्वारे में इफ़्तार…क्योंकि ये तहजीब का शहर है जनाब

कौमी एकतालखनऊ। शहर की तहजीब और अदब पूरी दुनिया में मिसाल है। पर एक अरसे से इस शहर को न जाने किसकी नजर लग गयी कि यहाँ अक्सर साम्प्रदायिक और धार्मिक मुद्दों पर बवाल खड़ा हो जाता है। लोगों के बीच वो अपनापन, जो कभी यहाँ की पहचान था, आज न जाने कहाँ गुम सा हो गया है। लेकिन एक शख्स ऐसा भी है जो यहाँ की पहचान और कौमी एकता को बरकरार रखने की कोशिश में जुटा हुआ है। यह शख्स हैं केजीएमयू के रिटायर्ड डॉ गुरमीत सिंह जी।

कौमी एकता की पहल

डॉ. गुरमीत का कौमी एकता के प्रयास का ताज़ा उदाहरण यहियागंज गुरुद्वारे में आयोजित की गयी इफ़्तार पार्टी है। इस इफ़्तार पार्टी को आयोजित करने के लिए इनका साथ इनके बेटे अमरजोत ने भी दिया। इस पार्टी में हर धर्म की नामचीन हस्तियाँ शामिल हुईं। इनमें सुन्नी धर्मगुरु खालिद रशीद ‘फिरंगी महल’, शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक, आसिफी मस्जिद के इमाम मौलाना कल्बे जवाद, डीजीपी जावीद अहमद और मनकामेश्वर मंदिर की महंत दिव्या गिरी शरीक हुईं।

कौमी एकताडॉ. गुरमीत ने शिया-सुन्नी में व्याप्त आपसी मतभेदों को दूर करने के लिए पिछले साल बकरीद के मौके को चुना था। इन्होंने दोनों समुदायों को एक साथ बड़े इमामबाड़े में नमाज़ पढ़ने के लिए एकजुट किया था। डॉ. गुरमीत के माध्यम से नाका गुरुद्वारे में हिन्दू-मुस्लिम एकता को अहमियत देते हुए रोजा इफ़्तार का कार्यक्रम आयोजित कराया गया था, जिसमें सभी धर्मों के लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।

डॉ गुरमीत सिंह से उनके द्वारा लगातार कौमी एकता के लिए किये जा रहे कामों के बारे में चर्चा में उनका जवाब बस इतना सा था कि इश्वर,रब,अल्लाह सब एक ही नाम को बोलने के अलग-अलग तरीके हैं। ईश्वर तो एक ही है बस यह हमारे देखने का नजरिया है जो इन सबको अलग-अलग दिखाता है। हम तो बस उर ऊपर वाले के नाम पर कदम उठाते है बाके तो सब काम कराने वाला वही है जो सबका मालिक है अब ये आपके डिपेंड करता है कि आप उसको किस नाम से याद करते हैं।कौमी एकता

डॉ गुरमीत सिंह कई सालों से कौमी एकता को लेकर प्रयास करते रहे हैं। मौजूदा समय में वह केजीएमयू के एक्जीक्यूटिव काउंसिल के मेम्बर हैं।

यहियागंज गुरुद्वारे का ऐतिहासिक महत्व

यह गुरुद्वारा 300 साल पुराना है। साल 1672 में सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी पटना साहिब जाते समय दो महीने के लिए यहाँ रुके थे। उनसे पहले नौवें गुरु तेग बहादुर जी भी साल 1671 में यहाँ तीन दिन ठहरे थे।

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