कोल्हापुर गए और वहां की साड़ियां ना खरीद के लाए तो आपका घूमना रहा बेकार

कोल्हापुर, महाराष्ट्र का एक मशहूर शहर, अपने रंग-बिरंगे परिधान और चप्पलों के साथ-साथ और भी कई चीज़ों के लिए मशहूर है। यहां के खाने-पीने से लेकर घूमने-फिरने की जगहों तक, सब कुछ बहुत खास है। यहां आने वाले पर्यटकों का दिल भरता नहीं यहां की संस्कृति की खूबसूरती को देख कर। महाराष्ट्र के इस सुंदर शहर में आपको बहुत सी चीज़े आकर्षक लगेंगी। कोल्हापुर एक प्राचीन शहर है जिसपर कई साल पहले भोसले छत्रपति का शासन था। तो चलिए जानते हैं क्या है इस प्राचीन शहर में पर्यटकों के लिए खास।

कोल्हापुर

खाना, जो ज़रूरी है खाना 

जगह कोई भी हो लेकिन ट्रिप को यादगार बनाने के लिए उस जगह का सबसे मशहूर और लज़ीज़ खाना ट्राय करना कभी ना भूलें। और बात जब कोल्हापुर की हो ही रही है तो कोई यहां के मीसल को कैसे भूल सकता है भला। महाराष्ट्र की ये मशहूर डिश कई तरीके की होती है- फडतरे मिसळ, खासबाग मिसळ, बावडा मिसळ और भी बहुत कुछ। ये तो रही शाकाहारी खाने की बात, अब नॉन-वेज में यहां क्या है खाने के लिए ये जान लें। तांबडा रस्सा (मटन से बनी एक डिश), मटन का अचार और कीमा राइस बॉल्स, कोल्हापुर के मांसाहारी व्यंजनों में सबसे मशहूर है। कोल्हापुर आने वाला हर शक्स इनका स्वाद चखना नहीं भूलता।
कोल्हापुरी साज
कोल्हापुरी साज एक तरह का गले में पहनने वाला आभूषण है। ये एक पांपरिक गहना है जिसे पहनने की शुरुआत सदियों पहले कोल्हापुर से हुई थी और अब महाराष्ट्र के अलावा अन्य राज्यों में भी इसे खूब पसंद किया जाता है। पारंपरिक रूप से तो ये इसमें 21 पत्तियां (पेंडेंट) होती हैं लेकिन महिलाएं इसे रोज़मर्रा में पहनने के लिए सिर्फ 10 या 12 ही पत्तियों का ही बनवाती हैं। ये आभूषण बहुत सुंदर दिखता है। इसका डिज़ाइन पर्यटकों को बहुत लुभाता है इसलिए अक्सर पर्यटक इसके डिज़ाइन जैसा ही आर्टिफिशियल नेकलेस बनवा लेते हैं।

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दाजिपुर वाइल्डलाइफ

सैंक्चुअरी दाजिपुर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी कोल्हापुर की वन्य जीवन को दर्शाता एक बहुत सुंदर पर्यटन स्थल है। जहां दिनभर शहर के प्रदूषित वातावरण में सांस लेना भी दूभर हो जाता है, ऐसे में यहां आकर आप खुली हवा में ना सिर्फ सांस ले सकते हैं बल्कि जंगली जन-जीवन को इतने करीब से देखने का मौका भी मिलेगा। दाजिपुर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी सुबह 10:00 बजे से शाम पांच बजे तक खुली रहती है। सैंक्चुअरी में प्रवेश करने के सिर्फ 30 रुपये लगते हैं लेकिन अगर आप अंदर घूमने के लिए कोई जीप या गाड़ी लेते हैं तो इसके लिए आपको अलग से एक व्यक्ति के 100 रुपये देने पड़ेंगे। वादा किया!अब योजना बनाओ.प्रतिमाह रु. 365*मे 1 करोड़ जीवन कवर पायें. नये साल का संकल्प, नये घर के अच्छे स्वास्थ्य का. Canara HSBC OBCजीवन बीमा|प्रतिमाह रु.365*मे 1करोड़ का जीवन कवर पाये

कोल्हापुरी चप्पल

कोल्हापुर का नाम सुनते ही सबसे पहले ज़हन में यहां की मशहूर चप्पलों का ख्याल आता है। कोल्हापुरी चप्पलें पूरे देश में जानी मानी और सदियों पुरानी हैं। भारत के अलावा अब विदेशों में भी इनका व्यापार किया जाता है। भार्तीयों के अलावा अब विदेशियों की भी पसंद बन चुकी है ये कोल्हापुरी चप्पलें। भारत में ये चप्पलें आपको बहुत आसानी से मिल जाती हैं। चमड़े से बनी ये चप्पलों को मशीनों से नहीं, बल्कि हाथों से बनाया जाता है। विविधता और आकर्षण को ध्यान में रखते हुए इन चप्पलों को रंगा जाता है। कोल्हापुरी चप्पल बनाने वाले अपनी इस कला को विरासत के रूप में अपनी अगली पीढ़ी को सौंप जाते हैं। कोल्हापुरी चप्पलें बहुत से प्रकार की होती है जैसे, रोज़ मर्रा में पहनने वाली साधारण चप्पल, पार्टी में पहनने के लिए कई तरह की सैंडल और जूतियां। पर्यटक चाहे भार्तीय हो या विदेशी, ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोल्हापुर आने आएं और इनमें से किसी कोई भी चप्पल ना खरीदे।
कोल्हापुरी साड़ी
कोल्हापुर की दूसरी मशहूर चीज़ जो यहां आए हर पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करती है वो है सहां की साड़ी। कोल्हापुरी रेशम से बनी साड़ियों को देखकर तो हर महिला का दिल करता है कि एक बार इस बेहतरीन सिल्क की साड़ी को ज़रूर पहने। इन साड़ियों को बनाने के लिए उच्च क्वालिटी का रेशम इस्तेमाल किया जाता है। ये अच्छी क्वालिटी वाला रेशम महंगा होता है इसलिए इससे बनी साड़ी भी काफी महंगी होती है। इन साड़ियों के रंग विदेशी पर्यटकों को भी बहुत पसंद आते हैं और एक ना एक साड़ी तो ज़रूर खरीदते ही हैं। कोल्हापुरी साड़ी आपको महाराष्ट्र में किसी भी साड़ी की दुकान पर बहुत आराम से मिल जाएगी। इन साड़ियों की शुरुआत 1500 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक की हो सकती है।

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महालक्ष्मी मंदिर
कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर 18 शक्ति पीठों में से एक है। ये मंदिर दक्षिण पुणे 252 किमी मील दूर पंचगंगा नदी के तट पर स्थित है। माना जाता है कि इस स्थान पर शक्ति प्रकट होती है और ये स्थान शक्ति के 6 पवित्र घरों में से एक है जहां पूजा करने वालों को अपनी इच्छाओं से मुक्त किया जा सकता है। महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापुर के प्रसिद्ध मंदिरों की श्रेणी में आता है। यहां के स्थानिय लोग महालक्ष्मी को अंबाबाई के नाम से भी बुलाते हैं। अंबाबाई का अर्थ है दिव्य माता। कोल्हापुर आने वाले पर्यटक भी इस मंदिर के एक बार साक्षी तो ज़रूर बनते हैं।
ज्योतिबा मंदिर
कोल्हापुर पर्यटन पर निकले लोगों के लिए ज्योतिबा मंदिर के दर्शन ज़रूर करना चाहिए। ये मंदिर 3214 पीट की ऊंचाई पर स्थित है। ज्योतिबा तीन देवताओं- ब्रह्मा विष्णु महेश, का एक अवतार है। कहा जाता है कि रत्नासुर नाम के राक्षस को मारने के लिए ब्रह्मा विष्णु महेश के अवतार, ज्योतिबा का जन्म हुआ। ये एक प्राचीन मंदिर है और पर्यटकों को अपनी ओर काफी आकर्षित करता है। मंदिर के अभयारण्य तक पहुंचने के लिए आपको 100 से भी ज़्यादा सीढ़ियों से होकर जाना होगा।
अखाड़ा
कोल्हापुर की मशहूर चीज़ों की लिस्ट में एक दिलचस्प चीज़ और है जो स्थानिय हो है पर्यटक, सबका ध्यान आकर्षित करती है और वो है, अखाड़ा। जी हां, ये कुश्ती वाला अखाड़ा ही है जहां हट्टे-कट्टे पहलवानों के बीच कुश्ती होती है। कोल्हापुर में बहुत से कुश्ती के अखाड़े हैं।
इन अखाड़ों की कुश्ती देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी आते हैं। इन अखाड़ों में बहुत सारी मिट्टी होती है जिसपर पहलवान एक दूसरे से कुश्ती करते हैं। ये कुश्ती टीवी पर दिखाई रैस्लिंग से बिल्कुल अलग है और दिलचस्प भी। बैल-गाड़ी की सवारी पुराने ज़माने में तो बैल गाड़ी की सवारी की जाती थी लेकिन कलयुग में ऐसे बहुत ही कम क्षेत्र बचे हैं जहां आपको बैल गाड़ी की सवारी करने को मिल जाए।

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इनमें से एक कोल्हापुर है। जी हां, कोल्हापुर में आज भी कई जगहों पर बैल गाड़ियां चलती हैं। एक शहर होने के बाबजूद यहां बैल गाड़ियों का चलना पर्यटकों को काफी आकर्षक लगता है। इन बैल गाड़ियों की सवारी किए बिना आपकी ट्रिप अधूरी है।
पन्हाला किला
पन्हाला किला उत्तर पश्चिम कोल्हापुर से 20 किमी दूर पन्हाला में स्थित है। ये सह्याद्री पर्वत श्रृंखला के पास स्थित है जो महाराष्ट्र बीजापुर से तटीय इलाकों में एक प्रमुख व्यापार मार्ग था। ये किला दक्षिण महाराष्ट्र के बड़े किलों में से एक है। किले के अंदर एक मंदिर भी है, ये मंदिर छत्रपति शिवाजी का है। कहा जाता है कि, इस किले में ही शिवाजी के दुश्मनों ने उनके आगे अपने घुटने टेक दिये थे। इस किले का इतिहास पर्यटकों को यहां आने के लिए आकर्षित करता है।

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