चायवाले मोदी को टक्कर देने आया ये शख्‍स

केएम यादव कानपुर। सरकार और भ्रष्‍टाचार के खिलाफ हर कोई बोलता है। लेकिन आवाज कोई नहीं उठाता। अब यूपी के कानपुर का एक शख्स अपनी आवाज बुलंद करने आ गया है। उसने अपने अंदाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चायवाले पेशे को सीधी टक्कर दी है। उसने सिर्फ चाय नहीं बेची बल्कि भ्रष्‍टाचार से लड़ने के लिए लोगों की ताकत भी बना। कानपुर में चौबेपुर गांव के इस शख्‍स का नाम केएम यादव है।

केएम यादव का अनूठा अंदाज

पेशे से वकील केएम यादव अपने गांव की दिक्कतों से रूबरू है। सरकार का पैसा गांव तक आने से पहले कैसे अमीरों के खजाने भरता है, केएम यादव यह जानते हैं।

केएम ने इसका तोड़ निकाल लिया है। उन्होंने सरकार के दिए सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) का इस्तेमाल करना शुरू किया है। इसका तरीका भी बड़ा अनूठा है। पेशे से वकील केएम यादव ने अपनी चाय की दुकान भी शुरू की है और यहीं वह लोगों को आरटीआई की ताकत के बारे में बताते हैं। केएम ने इस दुकान का नाम आरटीआई टी स्टॉल रखा है।

केएम यादव जानते हैं कि भ्रष्‍टाचार की पोल खोलने के लिए आरटीआई एक अहम हथियार है। साल 2005 से लागू हुआ यह कानून तमाम सरकारों को हिला चुका है। जनता के लिए बनाई गई योजनाओं में होने वाले गड़बड़झाले का खुलासा करने के लिए केएम आरटीआई का इस्तेमाल कर रहे हैं।

उन्होंने गांववालों की तरफ से अब तक 800 आरटीआई दाखिल की हैं। सूचना के इस प्रहरी का नाम गांव का हर शख्‍स जानता है। आरटीआई टी स्टॉल पर रोजाना चाय की चुस्कियों के साथ केएम यादव और गांववाले बैठकर राय-मशविरा करते हैं।

गांव के लिए आए बजट का एक-एक रुपया कहां गया, गांववाले इसकी जानकारी आरटीआई के जरिए हासिल कर रहे हैं। आरटीआई से जानकारी लेने का गुर उन्हें केएम यादव सिखाते हैं।

यादव साल 2010 से यह काम कर रहे हैं और इसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी तक छोड़ दी। सूचना के इस प्रहरी ने अपनी ओर से भी 200 आरटीआई दाखिल की हैं। इनमें जमीन के विवाद, लोन स्कीम, पेंशन स्कीम से जुड़ी जानकारियां मांगी गई हैं। इन सवालिया दस्तावेजों में कुछ पर जवाब मिले हैं।

इन आरटीआई का फायदा यह हुआ है कि चौबेपुर गांव में सरकारी योजनाओं पर ठीक से अमल किया जाता है। आसपास के गांववाले भी केएम के अंदाज से वाकिफ हैं और आरटीआई की मदद लेने लगे हैं।

एक किस्सा बताते हुए केएम कहते हैं, ‘’एक दुकान का ठेकेदार सरकारी दर से ऊंची दर पर अनाज बेच रहा था। मैंने अनाज की वास्तविक क़ीमत जानने के लिए आरटीआई आवेदन डाला। ठेकेदार जिस क़ीमत पर अनाज बेचता है,  वास्तविक क़ीमत उससे 20 फ़ीसदी कम है। इस मामले में अधिकारियों को कार्रवाई करनी पड़ी क्योंकि मेरे पास आरटीआई से हासिल की सही सूचना थी।

केएम एक तेज तर्रार वकील माने जाते हैं। वह जॉब के दौरान महंगाई जैसे मुद्दे पर कोर्ट पर लम्बी बहस करते थे। लेकिन आखिर में जब उन्हें आरटीआई की ताकत का पता चला तो उन्होंने अपनी जिंदगी को नई दिशा दे दी।

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