कृष्ण को समझें ही नहीं, महसूस करें

हम अक्सर कृष्ण की बात करते हैं। कभी सोचा है कि कृष्ण आखिर हैं कौन? कृष्ण एक बहुत नटखट बालक हैं। वह एक बांसुरी वादक हैं और बहुत अच्छा नाचते भी हैं। वह अपने दुश्मनों के लिए भयंकर योद्धा हैं। कृष्ण एक ऐसे अवतार हैं, जिनसे प्रेम करने वाले हर घर में मौजूद हैं। वह एक चतुर राजनेता और महायोगी भी हैं।
कृष्ण को अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग तरीकों से देखा और अनुभव किया है। इसे समझने के लिए दुर्योधन का उदाहरण लेते हैं। इतिहास उसे एक ऐसे शख्स की तरह देखता है, जो बहुत ही गुस्सैल, लालची और असुरक्षित चरित्र था। वह हमेशा सबसे ईर्ष्या करता रहा और सबका बुरा चाहता रहा। वह दुर्योधन, कृष्ण के बारे में कहता है, ‘कृष्ण एक बहुत ही मूढ़ व्यक्ति है, जिसके चेहरे पर हमेशा एक शरारती मुस्कान रहती है। वह खा सकता है, पी सकता है, गा सकता है, प्रेम कर सकता है, झगड़ा कर सकता है, बड़ी उम्र की महिलाओं के साथ गप्पें मार सकता है और छोटे बच्चों के साथ खेल भी सकता है। ऐसे में, कौन कहता है कि वह ईश्वर है?’

कृष्ण

बालक कृष्ण की सखी और प्रेमिका राधा उनको बिल्कुल अलग तरीके से देखती थीं। राधा कौन थीं? गांव की एक साधारण-सी लड़की, जो दूध का काम करती थीं। लेकिन राधा के नाम के बिना कृष्ण का नाम अधूरा माना जाता है, क्योंकि कृष्ण के प्रति उनमें अत्यंत श्रद्धा और प्रेम था। हम कृष्ण-राधे कभी नहीं कहते हैं, हम कहते हैं राधे-कृष्ण। गांव की एक साधारण-सी लड़की इतनी महत्वपूर्ण हो गई, जितने कि स्वयं कृष्ण। और कहीं-कहीं तो राधा कृष्ण से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गईं। कृष्ण के बारे में राधा कहती हैं, ‘कृष्ण मेरे भीतर हैं। मैं कहीं भी रहूं, वह हमेशा मेरे साथ हैं। वह किसी के भी साथ रहें, तब भी वह मेरे साथ हैं।’

कृष्ण के चाचा अक्रूर एक बुद्धिमान और सज्जन पुरुष थे। उन्होंने कृष्ण के बारे में अपनी सोच को इस तरह बताया है, ‘इस युवा बालक को देखकर मुझे लगता है, मानो सूर्य, चंद्र, तारे, सब कुछ उसके चारों तरफ चक्कर काट रहे हों। जब वह बोलता है, तो ऐसा लगता है कि मानो कोई शाश्वत और अविनाशी आवाज सुनाई दे रही हो। अगर इस संसार में आशा नाम की कोई चीज है, तो वह स्वयं कृष्ण ही है।’

अलग-अलग लोगों ने कृष्ण के अलग-अलग रूप को देखा और समझा है। किसी के लिए वह भगवान हैं, तो किसी के लिए छलिया। कोई उनके अंदर एक प्रेमी के दर्शन करता है, तो किसी को उनमें योद्धा नजर आता है। इसका मतलब यह हुआ कि उनके एक नहीं, कई व्यक्तित्व हैं।

कृष्ण तत्व को गहराई से जानने के लिए, उसका रस पाने के लिए और कृष्ण की चेतना को अपने भीतर अनुभव करने के लिए हमें लीला की जरूरत है। लीला का मतलब क्या है? दरअसल, यह रसिक जनों का रास्ता है। गंभीर लोगों के लिए यह नहीं है। जब हम रस और आनंद की बात करते हैं, तो हम केवल हल्के-फुल्के मजाक की बात नहीं करते। रस का मतलब है, जीवन के एक अथाह और गंभीर पहलू की खोज करना और उसको जानना। लेकिन इस खोज का तरीका क्रीड़ापूर्ण और मजाकिया होगा, मस्ती से भरा होगा। ऐसा नहीं हुआ, तो आप कृष्ण को महसूस ही नहीं कर पाएंगे।

कभी आपने सोचा है कि जीवन के गंभीर पहलुओं से दुनिया के ज्यादातर लोग आज तक अछूते क्यों हैं? क्योंकि वे रसिया नहीं हैं, उन्हें क्रीड़ापूर्ण ढंग से जीना नहीं आता, वे मस्ती का अनुभव नहीं कर पाते। भीम कृष्ण के भक्त थे। जालंधरा नाम की एक युवती कृष्ण से गोपनीय तरीके से मिलना चाहती थी। उसे लगा कि भीम उसे कृष्ण से मिलवा सकते हैं। एक बार रात के अंधेरे में चुपचाप वह भीम के पास आई।

भीम को लगा कि वह उनसे मिलने आई है। उन्होंने सोचा, चलो अच्छा है। इस महिला से मिलना अच्छा अनुभव होगा। भीम मन ही मन खुश हो रहे थे, तभी उसने भीम से कहा कि उसे कृष्ण से मिलना है। भीम निराश हो गए और कहने लगे, ‘अगर तुम्हें कृष्ण से ही मिलना था, तो तुमने इतनी रात को मुझे यहां अकेले में क्यों बुलाया? जाओ और उनसे मिल लो। वह तो सुबह से शाम तक लोगों से मिलते रहते हैं। वह सभी महिलाओं, पुरुषों और बच्चों से मिलने और उनसे प्रेम करने को आतुर हैं। तुम जानती ही हो कि उनके पास तमाम औरतें आती हैं और पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगती हैं। क्या तुम्हें भी पुत्र चाहिए? जाओ और उनसे मिलो। तुम मेरे साथ यहां भला क्या कर रही हो?’

जिस रसिक और क्रीड़ापूर्ण व मजाकिया अंदाज की बात हमने अभी की है, वह यही है। इन लोगों का कृष्ण के प्रति बहुत ज्यादा झुकाव और समर्पण था। लेकिन कृष्ण के बारे में बात करने का उनका तरीका ऐसा ही था- बेहद मजाकिया और रस से भरा।

अगर आप भी इस क्रीड़ापूर्ण और रस से भरे मार्ग पर चलकर जीवन के तमाम पहलुओं की खोज करना चाहते हैं, तो आपको प्रेम से परिपूर्ण होना होगा। आपके दिमाग में आनंद और मस्ती हो, शरीर में जोश। जब ऐसा होगा, तभी लीला संभव है। लीला का मतलब सिर्फ किसी के साथ नाचना भर नहीं है। लीला का मतलब है कि आप जिंदगी के साथ नृत्य करने को इच्छुक हैं। आप अपने शत्रु के साथ भी नृत्य कर सकते हैं और उस शख्स के साथ भी, जिससे आप प्रेम करते हैं। यहां तक कि मृत्यु के क्षणों में भी आपकी नृत्य करने की इच्छा होती है। जब ऐसा होगा, तभी लीला की गुंजाइश हो सकती है।

अगर हम सब कुछ मस्ती में करना चाहते हैं, अगर हम लीला करना चाहते हैं, तो हमारा मन प्रेम से, दिमाग मस्ती से और शरीर जोश से भरा होना चाहिए। यह एक जुनून का रास्ता है और अगर आपके भीतर जुनून नहीं है, एक तरह का पागलपन नहीं है, तो आप इस रास्ते पर चल ही नहीं पाएंगे। अगर आपको ऐसा लगता है कि आप समझदार और संतुलित हैं, तो कृष्ण आपके लिए नहीं हैं। थोड़ा-सा उन्माद, थोड़ा-सा पागलपन तो चाहिए ही कृष्ण के रास्ते पर चलने के लिए।

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